अरबी शब्द “ जिहाद” का अर्थ क्या है ?इसका एक उत्तर पिछले सप्ताह मिला जब सद्दाम हुसैन ने अपने इस्लामी नेताओं से कहा कि वे समस्त विश्व के मुसलमानों से अपील करें कि वे “ दुष्ट अमेरिका ” के विरुद्ध जिहाद में भाग लें .बाद में सद्दाम हुसैन ने स्वयं अमेरिका के विरुद्ध जिहाद की धमकी दी .इससे ध्वनित होता है कि जिहाद एक “पवित्र युद्ध ”है . इससे भी अधिक स्पष्ट शब्दों में कहें तो इसका अर्थ गैर – मुसलमानों द्वारा शासित राज्य क्षेत्र की कीमत पर मुसलिम राज्य क्षेत्र का विस्तार करने का कानूनी , अनिवार्य और सांप्रदायिक प्रयास है . दूसरे शब्दों में जिहाद का उद्देश्य आज इस्लामिक आस्था का विस्तार नहीं वरन संप्रभु मुस्लिम सत्ता का विस्तार है (संप्रभुता के विस्तार से आस्था का विस्तार स्वाभाविक रुप से होगा ) इस प्रकार जिहाद नि:संकोच भाव से आक्रामक स्वरुप का है जिसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी पर मुस्लिम आधिपत्य की स्थापना है .
शताब्दियों से जिहाद के दो विविध अर्थ रहे हैं एक कट्टरपंथी और दूसरा नरमपंथी .पहले अर्थ के अनुसार जो मुसलमान अपने मत की व्याख्या कुछ दूसरे ढंग से करते हैं वे काफिर हैं और उनके विरुद्द भी जिहाद छेड़ देना चाहिए . यही कारण है कि अल्जीरिया , मिस्र और अफगानिस्तान के मुसलमान भी जिहादी आक्रमण का शिकार हो रहे हैं. जिहाद का दूसरा अर्थ कुछ रहस्यवादी है जो जिहाद की युद्ध परक कानूनी व्याख्या को अस्वीकार करता है और मुसलमानों से कहता है कि वे भौतिक विषयों से स्वयं को हटाकर आध्यात्मिक गहराई प्राप्त करने का प्रयास करें .
राज्य क्षेत्र के विस्तार के संबंध में जिहाद मुस्लिम जीवन का प्रमुख अंग रहा है.इसी कारण सन् 632 में मोहम्मद की मृत्यु के समय तक मुसलमान अरब प्रायद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित कर सके थे .इसी भाव के कारण मोहम्मद की मृत्यु की एक शताब्दी के पश्चात् उन्होंने अपगानिस्तान से स्पेन तक का क्षेत्र जीत लिया था .इसके बाद जिहाद ने मुसलमानों को भारत , सूडान , अनातोलिया और बाल्कन जैसे क्षेत्रों को जीतने के लिए प्रेरित किया .
आज जिहाद विश्व में आतंकवाद का सबसे बडा स्रोत बन चुका है .इससे प्रेरणा लेकर कुछ स्वयंभू जिहादी संगठनों ने संपूर्ण विश्व में आतंकवाद का अभियान चला रखा है – यहूदियों और क्रूशेडर्स के विरुद्ध जिहाद का अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक फ्रंट यह ओसामा बिन लादेन का संगठन है .
लश्कर जिहाद इंडोनेशिया में दस हजार से भी अधिक ईसाइयों की हत्या का उत्तरदायी संगठन .हरकत उल जिहादे इस्लामी –कश्मीर में सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है . पैलिस्टीनियन इस्लामिक जिहाद –सबसे क्रूर इजरायल विरोधी आतंकवादी संगठन . इजिप्टीयन इस्लामिक जिहाद- 1981 में अनवर अल सादात सहित अनेक की हत्या का जिम्मेदार .यमनी इस्लामिक जिहाद – कुछ दिनों पूर्व तीन अमेरिकी मिशनरियों की हत्या की .
परंतु जिहाद की सबसे डरावनी वास्तविकता इन दिनों सूडान में है जहाँ कुछ दिनों पूर्व तक सत्ताधारी दल ने भावनात्मक नारा दिया. “ जिहाद , विजय और शहादत ” करीब दो दशक तक सरकारी संरक्षण में जिहादियों ने गैर मुसलमानों पर आक्रमण किए उनकी संपत्तियों को लूटा और उनके पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया . इसके बाद जिहादियों ने हजारों औरतों और बच्चों को गुलाम बनाकर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को विवश किया .उनका जुलूस निकाला गया है , उन्हें मारा पीटा गया औऱ उनसे कठोर श्रम कराया गया.महिलाओं और बड़ी उम्र की लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उन्हें यौनाचार के लिए बंधक बनाकर रखा गया . सूडान का यह राज्य प्रायोजित जिहाद इस युग की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी रही है जिसमें बीस लाख लोगों की जान गई और 40 लाख लोग बेघर हो गए.
पिछले 1400 वर्षों के जिहाद के टकराव और मानवीय यातना के इतिहास के बाद भी कुछ अकादमिक और अपराध भाव से ग्रस्त इस्लामी दावा करते हैं कि जिहाद केवल रक्षात्मक युद्ध की आज्ञा देता है या फिर ये पूरी तरह अहिंसक है .
इस्लामिक अद्धययन् से जुड़े तीन अमेरिकी प्रोफेसरों ने जिहाद को यही रंग देते हुए इसकी कुछ इस तरह व्याख्या की है –
1. स्वयं के भीतर मौजूद सभी बुराईयों के खिलाफ लड़ने का प्रयास और समाज में प्रकट होने वाली ऐसी बुराईयों के विरुद्ध लड़ने का प्रयास .(इब्राहिम अबूराबी हार्ट फोर्ड सेमिनरी )
2. नस्लीय भेद-भाव के विरुद्ध लड़ना और औरतों के अधिकार के लिए प्रयास करना (फरीद एसेक औबर्न सेमिनरी )
3. एक बेहतर छात्र बनना, एक बेहतर साथी बनना , एक बेहतर व्यावसायी सहयोगी बनना और इन सबसे ऊपर अपने क्रोध को काबू में रखना (ब्रुस लारेंस ड्यूक विश्वविद्यालय)
यह तो अत्यंत अद्भूत होगा कि यदि जिहाद का विकास आक्रामकता के स्थान पर क्रोध को नियंत्रित करने के रुप में हो , लेकिन इसे एक काल्पनिक सच्चाई के रुप में अनुभव करने मात्र से ऐसा नहीं हो जाएगा .इसके विपरीत जिहाद के वास्तविक स्वरुप से आँखें मूंद लेना आत्मचिंतन और पुनर्व्याख्या के किसी भी गंभीर प्रयास को बाधित करने जैसा होगा .
जिहाद की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार करते हुए आतंकवाद , विजय और गुलामी से परे भी एक रास्ता है और वह है जिहाद से पीड़ित लोगों से माफी माँग कर जिहाद के अहिंसक इस्लामी आधार को विकसित कर हिंसक जिहाद पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाए .
दुर्भाग्यवश इस माहौल से बाहर आने की कोई प्रक्रिया नहीं चल रही है .हिंसक जिहाद तबतक चलता रहेगा जबतक इसे किसी उच्च स्तरीय सैन्य शक्ति से दबा नहीं दिया जाता .जिहाद को पराजित करने के बाद ही उदारवादी मुसलमानों की आवाज़ सामने आएगी और तभी इस्लाम को आधुनिक बनाने का दुरुह कार्य आरंभ हो सकेगा.