इजरायल के हिंसक और क्रूर कब्जे की धारणा को छोड़कर कभी-कभी अपने नेताओंम सहित फिलीस्तीनी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे फिलीस्तीनी अथॉरिटी के मुकाबले इजरायल को पसंद करते हैं. यहां उनकी कुछ ऐसी ही अवधारणायें प्रस्तुत हैं.
हिंसा पर नियंत्रण - फिलीस्तीनी अथॉरिटी की पुलिस ने जब हमास समर्थक एक व्यक्ति के घर पर छापा मारा और उसके 70 वर्षीय पिता सहित उसे घर से बाहर घसीट लिया तो पिता ने पुलिस पर चिल्लाते हुए कहा कि “कायरों ऐसा तो हमारे साथ यहूदी भी नहीं करते..” . पुत्र जब फिलीस्तीनी अथॉरिटी की जेल से बाहर आया तो उसने जेल को इजरायल से बदतर बताया. यासर अराफात के एक विरोधी ने कहा कि इजरायली सैनिक पहले आंसू गैस छोड़ते हैं फिर हवा में रबड़ की गोलियां चलाते हैं उसके बाद ही हथियार चलाते हैं लेकिन फिलीस्तीनी पुलिस तो तत्काल गोली चलाना शुरु कर देती है .
कानून का शासन - गाजा के नेता हैदर अब्द अश शफी ने एक बार कहा कि क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मध्य रात्रि में इजरायली सेना द्वारा दरवाजा खटखटाने पर लोग खुश होंगे . लेकिन ऐसा ही हुआ जब गाजा में लड़ाई शुरु हुई तो लोग खुश थे क्योंकि इजरायली सेना ने कर्फ्यू लगा दिया था . हमास के अबू मर्जोक ने अराफात को यहूदी नेताओं से भिन्न बताया. “हम देखते हैं कि इजरायल का विपक्ष प्रधानमंत्री बराक की आलोचना करता है और गिरफ्तार नहीं किया जाता लेकिन फिलीस्तीनी अथॉरिटी तो पहले ही मामले में लोगों को गिरफ्तार कर लेती है .”
लोकतंत्र – 1999 के चुनाव ने जिसमें निवर्तमान प्रधानमंत्री हार गए थे उसने बहुत से फिलीस्तीनी पर्यवेक्षकों को प्रभावित किया था . स्तंभकारों ने सत्ता के इस सहज़ बदलाव का उल्लेख किया और फिलीस्तीन के लिए भी ऐसी ही अपेक्षा की . फिलीस्तीनी अथॉरिटी के सूचना मंत्रालय के महा-निदेशक हसन अल काशिफ ने कहा कि उन्हें इजरायल से इस विषय में ईर्ष्या होती है और अपने भविष्य के राज्य के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था चाहते हैं क्योंकि इसके विपरीत हमारे यहां तो कुछ नेता हमेशा के लिए स्वयं ही सत्तासीन रहना चाहते हैं. Terrorist democratic front for the liberation of Palestine के नेता नईफ हवात्मा की इच्छा है कि फिलीस्तीनी अथॉरिटी में मतदान के आधार पर चीजों का निर्णय हो .
अल्पसंख्यक अधिकार – ऐसे दौर में जबकि फिलीस्तीन की राजनीति ने इस्लामी स्वरुप ग्रहण कर लिया है तो ईसाई और सेक्यूलर मुसलमान इजरायल का संरक्षण चाहते हैं .एक फिलीस्तीनी ईसाई ने घोषणा की कि जब फिलीस्तीनी राज्य अस्तित्व में आएगा तो यहूदी शत्रु के विरुद्ध बना गठबंधन समाप्त हो जाएगा और बदला लेने का समय आ जाएगा जिससे हमारी भी वही स्थिति होगी जो लेबनान में ईसाईयों की और मिस्र में कॉप्ट लोगों की हुई यह कहते हुए दुख होता है लेकिन इजरायल का कानून हमारा संरक्षण करता है .
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – कैसी विडंबना है कि गाजा में रहने वाले वकील नईम सलामा को फिलीस्तीनी अथॉरिटी ने इस लिए गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने लिखा कि फिलीस्तीन को इजरायल का लोकतांत्रिक मानक अपनाना चाहिए . अपने जोखिम के लिए उन्होंने जेल यात्रा की .एक इजरायल विरोधी आलोचक हसान अशरावी ने कहा कि इजरायल को फिलीस्तीनी राजनीति को कुछ चीजें सिखानी चाहिए विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता .गाजा समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के निदेशक और ख्यातिलब्ध मनोविज्ञानी इयाद अल सराज ने स्वीकार किया की इजरायली कब्जे के समय वह शत् प्रतिशत स्वतंत्र थे .
आर्थिक लाभ – इजरायल में विशेषकर जेरुसलम में रहने वाले फिलीस्तीनी इजरायल की आर्थिक सफलता , सामाजिक सेवा और अन्य लाभों की प्रशंसा करते हैं. पश्चिमी बैंक और गाजा इलाके के मुकाबले इजरायल में वेतन पांच गुणा अधिक है तथा इजरायल की सामाजिक सुरक्षा का मुकाबला फिलीस्तीन से हो ही नहीं सकता . इजरायल से बाहर रहने वाले फिलीस्तीनी आर्थिक सुविधा चाहते हैं. इजरायल की सरकार ने जब एक क्षेत्र को बाड़ से घेर दिया तो पश्चिमी तट के कस्बे कलकीलिया में रहने वाले एक निवासी ने चिल्लाकर कहा कि हमें एक बड़ी जेल में बंद कर दिया .
इन टिप्पणियों से जाहिर होता है कि फिलीस्तीनी इजरायल के चुनावों के फायदे , कानून का राज , अल्पसंख्यक अधिकार , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अच्छे जीवन स्तर की प्रशंसा करते हैं . फिलीस्तीनी अथॉरिटी के राजनीतिक अतिवाद और आतंकवाद के बीच फिलीस्तीन के कुछ लोग सामान्य जीवन भी जीना चाहते हैं .दुर्भाग्यवश ऐसे लोगों की कोई राजनीतिक आवाज़ नहीं है .समय आ गया है कि फिलीस्तीनी भलेमानस सामने आकर अपनी बात कहें और लोगों को सुनाएं कि इजरायल का अस्तित्व समस्या नहीं समाधान है .