हिजबुत तहरीर नामक इस्लामवादी संगठन संपूर्ण विश्व को इस्लामी कानून की परिधि में लाना चाहता है तथा इजरायल के विरुद्ध आत्मघाती हमलों की वकालत करता है .ग्रेट ब्रिटेन में आलोचनाओं के पश्चात् इसने ब्रिटेन के विश्विद्यालयों में “इस्लामोफोबिया रोको ” अभियान के अंतर्गत गुप्त रुप से मोर्चा खोल रखा है . इसका खुलासा संडे टाइम्स ने किया .
आप इनसे पूछिए क्या रोका जाए ? इस्लामोफोबिया शब्द की खोज ब्रिटेन में एक दशक पूर्व 1996 में स्वघोषित Commission on British Muslims and Islamophobia ने की थी . इस शब्द का वास्तविक अर्थ “ इस्लाम से असम्यक् भय है .” परंतु इसका उपयोग मुसलमानों के विरुद्ध पूर्वाग्रह के रुप में किया जाता है तथा जीवन के प्रत्येक भाग को स्पर्श करने वाले 500 फोबिया के साथ इसे भी गिना जाता है .
इस वाक्य ने भाषा विज्ञानियों और राजनेताओं के मध्य भी स्वीकृति प्राप्त कर ली है . यहां तक की दिसंबर 2004 में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासचिव ने Confronting Islamophobia ( इस्लामोफोबिया से टक्कर ) शीर्षक के एक सम्मेलन की अध्यक्षता की तथा मई में यूरोपीय शिखर सम्मेलन की समिति ने इस्लामोफोबिया की निंदा की.
इस शब्द ने अनेक कठिनाइयां उत्पन्न कर दी हैं.पहला तो वास्तव में “ इस्लाम से असम्यक भय ” तब उत्पन्न होता है जब आज इस्लाम के नाम पर गैर – मुसलमानों और खुद मुसलमानों के विरुद्ध मौखिक और शारीरिक तरीके से विश्वव्यापी आक्रामकता अपनाई जाती है.किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि उचित मात्रा में भय किसको किससे है? दूसरा यद्यपि मुसलमानों के विरुद्ध पूर्वाग्रह निश्चित रुप से है फिर भी इस्लामोफोबिया दो अलग- अलग रुझान को इंगित करता है – इस्लाम से भय तथा कट्टरपंथी इस्लाम से भय. मैंने व्यक्तिगत रुप से इस समस्या को अनुभव किया है . बार-बार कट्टरपंथी इस्लाम विचारधारा न कि इस्लाम धर्म पर लिखने के बाद भी ब्रिटेन में मुझे मूक इस्लामोफोबिया पुरस्कार का उप-विजेता चुना गया तथा अमेरिका का अग्रणी इस्लामोफोबिक बताते हुए इस्लामोफोब का अवतार माना गया( जबकि मैं इस्लामवादीफोब हूं) .तीसरा इस्लामोफोबिया
की धारणा को आगे बढ़ाने वाले आदतन समस्या को बढ़ा –चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं-
कानून प्रवर्तन – ब्रिटेन के मुसलमान बार-बार पुलिस द्वारा भेद –भाव की शिकायत करते हैं लेकिन केनॉन मल्लिक की रिपोर्ट इस्लामोफोबिया की इस कल्पना को पूरी तरह परास्त करती है .
सांस्कृतिक – वर्जीनिया स्थित ग्रेजुएट स्कूल ऑफ इस्लामिक एंड सोशल साइंसेज के अध्यक्ष दावा करते हैं कि मुसलमानों के बीच ऐसे साहित्य की बाढ़ है जो मुसलमानों के विरुद्ध घृणा से भरे हैं.अध्यक्ष तहा जबीर अल –अलवानी के अनुसार उपन्यास, फिल्में , पुस्तकें और शोध सभी मुस्लिम विरोध से परिपूर्ण हैं . सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यासों में हीं एक हजार इसी प्रकार के हैं. यह मानना मुश्किल है.केवल कुछ मुट्ठी भर पुस्तकें ही ऐसी होंगी (उदाहरण के लिए –Leon Uris – The Haj)
भाषा विज्ञान – जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इस्लामी अध्ययन के प्रोफेसर सैय्यद हुसैन नसर ने संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया
से टक्कर विषय पर मुख्य भाषण देते हुए ( ABODE ) जैसे अंग्रेजी शब्द का मूल अरबी से बताने की कोशिश की जबकि यह शब्द प्राचीन मिस्र से निकला है न कि अरबी से .
ऐतिहासिक – सेमेटिक विरोधी भावना ( Anti Semitism ) वाक्यांश का प्रयोग स्पेन में रहने वाले अरब वासियों के विरुद्ध भाव व्यक्त करने के लिए किया जाता था जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों से जोड़ा गया ( ऐसा श्री नसर ने अपने भाषण में कहा ) यह मूर्खतापूर्ण बात है . सेमेटिक विरोधी भावना ( Anti Semitism ) 1879 से पहले की बात नहीं है जब इसे विलहेम मार द्वारा सृजित किया गया था और सदैव से इसका प्रयोग विशेषरुप से यहूदियों के विरुद्ध घृणा के लिए ही होता रहा है .
चौथा – हिजबुत तहरीर द्वारा इस्लामोफोबिया रोको शब्द को तोड़ –मरोड़ कर स्वयं ही इस शब्द के साथ छल किया गया है जैसा कि संडे टाइम्स के लेख में वर्णन किया गया है कि देखने में तो इस अभियान का उद्देश्य लंदन बम कांड के बाद उभरे मुस्लिमविरोधी पूर्वाग्रह से लड़ना है लेकिन इसी पत्र ने लंदन के ब्रनेल विश्वविद्यालय के एंथनी ग्ली को उद्धृत किया है कि वास्तव में इसका उद्देश्य सेमेटिक विरोधी भावना , हिन्दूविरोधी भावना , सिक्ख विरोधी भावना , समलैंगिकता विरोधी भावना तथा महिला विरोधी भावना को फैलाना व पश्चिम के प्रभाव को रोकना है.
अंत में इर्शाद मंजी जैसे उदारवादी मुसलमान को इस्लामोफोब कहना इस वाक्य के साथ धोखा है जैसा कि चार्ल मूर डेली टेलीग्राफ में लिखते हैं कि उदारवादी मुसलमान इस बात से भयभीत हैं कि इस्लामवादी उनके धर्म को कहां ले जा रहे हैं.
ये लोग इस्लाम से सर्वाधिक डरे हुए लोग हैं ( अल्जीरिया , डाफूर , इराक , इरान और अफगानिस्तान के बारे में सोचिए )
उनके पास इतना साहस और शब्द नहीं है कि आधुनिक विश्व में इस्लाम के समक्ष आई इस चुनौती का वे सामना कर सकें. श्री मलिक के अनुसार इस्लामोफोबिया का आरोप इस्लाम के आलोचकों को चुप कराना तथा अपने ही समुदाय में सुधार के लिए प्रयासरत मुसलमानों को भी चुप कराना है .यासमीन अली भाई ब्रॉउन इससे भी बड़े लक्ष्य की ओर संकेत करते हैं कि इस्लामोफोबिया का प्रयोग प्राय: समाज को ब्लैकमेल करने के लिए किया जाता है .
मुसलमानों को चाहिए कि वे इस अविश्वसनीय वाक्यांश से पीछा छुड़ाकर कुछ गंभीर आत्मालोचन करें.उन लोगों पर आरोप लगाने के बजाए जो भविष्य में शिकार बनने को लेकर सशंकित हैं . उन्हें (मुसलमानों को ) इस पर विचार करना चाहिए कि किस प्रकार इस्लामवादियों ने उनके धर्म को ऐसी विचारधारा में बदल दिया है जो हत्या पर जश्न मनाती हैं( अल-कायदा –तुम्हें जान प्यारी है –हमें मौत प्यारी है ) उन्हें कोई रणनीति विकसित कर इस अधिनायकवाद से लड़ना चाहिए.