मोहम्मद कार्टून पर लोगों के आवेश का दीर्घगामी परिणाम क्या होने वाला है ? मेरी भविष्यवाणी है कि यह सभ्यताओं के संघर्ष को सामने नहीं ला रहा है.वरन् उन्हें अलग-अलग दिशाओं में धकेल रहा है.यह विभाजन जो अनेक वर्षों से पनप रहा है उसके घातक परिणाम होंगें.विरोध के संकेत सर्वत्र दिख रहे हैं.
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व्यापार – दोनों दिशाओं में बहिष्कार विद्यमान है. जहां अमेरिकी सरकार ने ईरानी उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है वहीं इरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने कहा है कि उनकी सरकार कार्टून प्रकाशित करने वाले देशों के साथ आर्थिक संबंधों को समाप्त करेगी और उनपर पुनर्विचार करेगी.अनेक मुस्लिम देशों ने डेनमार्क के साथ व्यापार को निलंबित कर दिया है जबकि कैनडा की मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों ने डेनमार्क के उत्पादों को हटा दिया है .पाकिस्तान के मेडिकल एशोसिएशन ने भी यूरोप के पांच देशों की दवाओं का बहिष्कार करने की घोषणा की है .
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उपभोक्ता सामग्री – धीरे-धीरे मुसलमान पश्चिम की उपभोक्ता सामग्री के स्थान पर अपनी सामग्री ला रहे हैं.वे बड़े स्तनों की भड़कीली गुड़ियों के स्थान पर सामान्य फुला रमजाने गुड़िया खरीद रहे हैं.फ्रांस में Burger King के स्थान पर Beurger King हलाल खाद्य सामग्री उपलब्ध करा रहा है और इसी प्रकार मक्का कोला ने कोक और पेप्सी का स्थान ले लिया है. सी.एन.एन और बी.बी.सी के मुकाबले अल-जजीरा अपना अंग्रेजी भाषा चैनल ला रहा है .
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आर्थिक निवेश – आर्थिक खातों के बंद होने और आतंकवादी इकाईयों की पहचान होने के बाद मुसलमान अपने मूलधन का बड़ा हिस्सा पश्चिम से बाहर ले गए हैं और इसका निवेश दुनिया के अन्य देशों में या फिर पूर्वी एशिया में किया है .11 सितंबर से पहले मध्यपूर्व के तेल निर्यातकों का अमेरिका में वार्षिक निवेश 25 विलियन डालर का था जो अब 1 विलियन प्रतिवर्ष हो गया है .
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आप्रवास – 11 सितंबर की घटना के कारण मुसलमानों की पश्चिमी यात्रा में काफी बाधायें आने लगी हैं इसलिए बहुत कम मुस्लिम व्यापारी कार्यकारी , छात्र, अस्पताल के मरीज, सम्मेलनों में जाने वाले और कार्यकर्ता यहां आते हैं.
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पर्यटन – इस्लामवादियों की क्रूरता की अनेक घटनाओं (60 जापानियों , जर्मन और स्विस पर्यटकों की लक्सर में 1997 में ह्त्या ,2003 में सहारा में 32 जर्मन तथा अन्य यात्रियों के अपहरण ) के चलते पहले ही स्वत: पश्चिम के लोगों ने मुस्लिम देशों की यात्रा से बचना शुरु कर दिया है .कार्टून विरोध के बाद उपजी हिंसा के बाद डेनमार्क ने अपने नागरिकों को 14 मुस्लिम देशों में यात्रा न करने की चेतावनी दी है .स्कैन्डेनेविया की पर्यटन कंपनियों ने उत्तरी अफ्रीका की अपनी यात्रा रद्द कर दी है.
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विदेशी सहायता – लेबनान , पाकिस्तान और फिलीस्तीनी अथॉरिटी में सहायता कार्यकर्ताओं के विरुद्ध आक्रामक कारवाई के बाद इन देशों के कार्यकर्ता वापस बुला लिए गए हैं चेचन्या ने डेनमार्क में विदेशी सहायता मिशन निकाल दिया गया हैऔर ईराक के परिवहन मंत्री ने भविष्य में पुनर्निमाण के कार्य में डेनमार्क से किसी भी प्रकार की सहायता लेने से मना कर दिया है .
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दूतावास – 1979 में तेहरान में अमेरिकी दूतावास की घेराबन्दी से लेकर पिछले महीने डेनमार्क तथा यूरोप के अन्य दूतावासों पर मुस्लिम देशों में हुए हमले के बाद ये दूतावास इस पर विचार कर रहे हैं कि इनकी सशस्त्र किलेबन्दी की जाये,मुख्य कस्बों से हटाकर इन्हें कम महत्व के क्षेत्रों में रखा जाये या फिर कुछ मामलों में इन्हें बन्द ही कर दिया जाये.
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सेवायें उपलब्ध कराने वाले पश्चिमी – दुबई स्थित जायेद विश्विद्यालय ने अमेरिका के प्रोफेसर क्लावडी कीपोज को नौकरी से निकाल दिया क्योंकि वह अपने छात्रों को मोहम्मद का कार्टून वितरित कर रहा था. फिलीस्तीनी अरबवासियों की तोड़फोड़ के चलते Temporary International Presence in Hebron के विदेशी कार्यकर्ताओं को हेब्रान छोड़ना पड़ा.
इन घटनाओं से संकेत मिलता है कि मलेशिया के प्रधानमन्त्री अब्दुल्ला अहमद बदावी का आकलन सत्य है कि पश्चिम और मुस्लिम विश्व के मध्य गम्भीर विभाजन है या फिर और आक्रामक शब्दों में कहें तो जैसा प्रभावशाली सुन्नी इमाम युसुफ अल करदावी ने कहा है कि हमें यूरोप वासियों को बताना चाहिए कि हम तुम्हारे बिना जीवित रह सकते हैं लेकिन तुम हमारे बिना नही.
क्या मानवीय संपर्क , व्यापारिक संपर्क और कूटनीतिक संपर्क घटने से यह विभाजन और गहराएगा और मुस्लिम विश्व और पीछे खिसक जाएगा .जैसा कि मैंने 2000 में लिखा था “ कोई भी सूचकांक क्यों न अपनाया जाए मुसलंमान नीचे की ओर ही खिसकते जायेंगे चाहे सैन्य रक्षता , राजनीतिक स्थिरता , आर्थिक विकास , भ्रष्टाचार , मानवाधिकार ,स्वास्थ्य , जीविता या शिक्षा के संबंध में .”
संपर्क समाप्त होने से मुस्लिम स्थिति और भी बदतर हो जाएगीविश्व के सबसे आधुनिक ,शक्तिशाली और विकसित देशों के साथ संपर्क कम होने से इन सूचकांकों में उनकी स्थिति बदतर ही होगी और उस स्थिति में पहुंच जायेंगे जहां आत्मदया ,ईर्ष्या, विरोध , क्रोध और आक्रामकता होगी.विशेष रुप से जब वे पूर्व आधुनिक युग से मुस्लिम सफलता की तुलना करते हैं तो प्राय: वर्तमान अवसादों की व्याख्या वे कट्टरपंथी इस्लाम के साथ अपनी पहचान में करते हैं. सबकी भलाई इसी में है कि मुसलमान आधुनिकता के रास्ते पर चलें न कि एकाकी रास्ते पर.