तुर्की और सीरिया के निकट एक प्रायद्वीप साइप्रस जिसकी जनसंख्या लगभग 13 लाख लोगों की है उसने परिस्थितियों के परिवर्तन के चलते अचानक स्वयं को विश्व पटल पर देखा है। अपनी स्वतंत्रतता के पहले 51 वर्षों तक ग्रीक तुर्की साम्प्रदायिक मुद्दे में उलझे रहने के उपरांत जब इसने विश्व पटल पर काफी देर से दस्तक दी है तो इसके समक्ष सम्भावनायें और खतरे दोनों ही विद्यमान हैं।
साम्प्रदायिक समस्या का मूल 1570 से ही है जब ओटोमन साम्राज्य ने इस प्रायद्वीप और इसकी समस्त ग्रीक भाषी आर्थोडाक्स ईसाई जनसंख्या को विजित कर लिया। अगले तीन दशकों में अनातोलिया के आप्रवासियों के चलते तुर्की भाषी मुस्लिम अल्पसंख्यक उत्पन्न हुए। 1878 से 1960 तक ब्रिटिश शासन ने स्थिति को जस का तस बना रहने दिया। 1960 में जब साइप्रस स्वतंत्र हुआ तो तुर्क कुल जनसंख्या का 1\6 थे।
साइप्रस बमुश्किल अकेला ऐसा नस्ली तनाव का क्षेत्र था जिसे लंदन ने परिस्थितिवश कुंठा में ऐसे ही छोड दिया इस क्रम में भारत,इराक, फिलीस्तीन और सूडान के बारे में भी सोचा जा सकता है लेकिन यह अकेला ऐसा क्षेत्र था जहाँ इसने अपनी स्थाई भूमिका को बनाये रखा तथा पालक राज्यों तुर्की और ग्रीक के माध्यम से इस नव स्वतंत्र राज्य की गारण्टी ली।
इस शरारती व्यवस्था के चलते इन दोनों ही प्रायद्वीपों के समुदायों और पालक राज्यों के मध्य तनाव और अधिक बढ गया। यह तनाव 1974 में उबाल पर आ गया जब एथेंस ने समस्त साइप्रस को अपने में मिलाने करने का प्रयास किया और जवाब में अंकारा ने इस प्रायद्वीप के 37 प्रतिशत और उत्तरी भाग को अपने नियंत्रण में ले लिया। ग्रीक का प्रयास तो सफल नहीं रहा लेकिन तुर्की के नियन्त्रण के बाद एक नाममात्र " तुर्की गणराज्य का उत्तरी साइप्रस" की स्थापना की गयी जिसकी व्यवस्था तुर्की गणराज्य के 40,000 सैनिकों के द्वारा की जाती है। इसके बाद से हजारों आप्रवासी इस क्षेत्र मे बस चुके हैं और उन्होंने मूल रूप से इस प्रायद्वीप की भू जनांनिकी को विद्रूप कर दिया है।
साइप्रस कुल 35 वर्षों तक इसी स्थिति में विभाजित, गतिरोध के साथ अधिकतर शेष विश्व द्वारा उपेक्षित ही रहा जब तक कि हाल के दो घटनाक्रम ने इसकी यथास्थिति को बदल नहीं दिया।
पहला, वर्ष 2002 में तुर्की में एकेपी दल क्षेत्रीय एकाधिकार के आक्रामक कार्यक्रम के साथ सत्ता में आया।आरम्भ में तो इसनी मह्त्वाकाँक्षा को सीमित रखा लेकिन जून 2011 में भारी चुनावी सफलता के बाद इसने इसे लागू करना आरम्भ कर दिया और इस क्रम में तुर्की की सेना पर राजनीतिक नियन्त्रण स्थापित कर दिया और इसके साथ ही इसकी मन्शा खुलकर सामने आ गयी। क्षेत्रीय मह्त्वाकाँक्षा के इस अभियान के अनेक आयाम हैं जिसमें इजरायल के साथ तनाव बढाने से लेकर हाल में ही प्रधानमंत्री की उत्तरी अफ्रीका की अत्यन्त उल्लासपूर्ण यात्रा तक शामिल है लेकिन प्रमुख प्रयास उत्तरी भूमध्यसागर में तुर्की शक्ति को बढाना है। इसलिये अब एकेपी की मह्त्वाकाँक्षा ने साइप्रस पर तुर्की के अधिकार को सामान्य समस्या से अधिक एक व्यापक मुद्दे के मुख्य आयाम के रूप में प्रस्तुत किया है।
दूसरा, जून 2010 में इजरायल के भूमध्यसागर के आत्यंतिक आर्थिक क्षेत्र में तथा साइप्रस के विशेष आर्थिक क्षेत्र में गैस और तेल के भण्डार की खोज ने अचानक साइप्रस को विश्व के ऊर्जा बाजार में एक खिलाडी बना दिया है। साइप्रस वालों का कहना है कि यह 300 खरब क्यूबिक फीट है जिसकी कीमत 4 खरब अमेरिकी डालर है। इन आँकडों ने अनेक उत्सुकताओं को आकर्षित किया है विशेष रूप से अंकारा को जो कि भविष्य की गैस आय में अपने अंश की माँग कर रहा है। इसके अतिरिक्त एकेपी की विस्तारित होती इजरायल विरोधी भावना और विदेश मंत्री अहमत देवतोग्लू की रणनीतिक मह्त्वाकाँक्षा से संकेत मिलता है कि तुर्की अब इजरायल नियंत्रित जल क्षेत्र में भी अपना दावा बना रहा है।
इन दो घटनाक्रमों , तुर्की की बढती महत्वाकाँक्षा और सम्भावित खरबों के गैस भण्डार ने साइप्रस और इजरायल को आत्म रक्षा के लिये सम्पर्क में ला दिया है। सरकार में , मीडिया में और व्यवसाय से जुडे प्रमुख ग्रीक साइप्रसी लोगों ने अभी हाल की मेरी प्रायद्वीप की यात्रा में इजरायल के साथ आर्थिक और रक्षा सम्बन्ध बनाने की इच्छा व्यक्त की।
उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी ने पाँच प्रकल्पों का प्रस्ताव किया, साइप्रस के गैस क्षेत्र से संयुक्त पाइपलाइन , एक मेथानोल का प्रकल्प, जिसके साथ ही इसकी तरलता का संयंत्र हो , 1,000 मेगावाट का विद्युत संयन्त्र हो, एक रणनीतिक भण्डार हो और सभी साइप्रस में स्थित हों। एक मीडिया उद्यमी ने सुझाव दिया कि गैस भण्डार इजरायल के बेचे जायें और इसका उत्तरदायित्व इजरायल की कम्पनियों पर हो।
सुरक्षा की दृष्टि से अनेक मध्यस्थों ने सुझाव दिया कि इजरायल के साथ सम्पूर्ण गठबंधन किया जाये। साइप्रस को इजरायल की अधिक सक्षम सेना, अर्थव्यवस्था और कूटनीतिक प्रभाव का लाभ प्राप्त होगा। इजरायल जिसने कि साइप्रस की ओर से पहले ही सुरक्षा के प्रयास आरम्भ कर दिये हैं उसे अपनी भूमि से 185 मील (300 किलो मीटर) की दूरी पर पाफोस में एक हवाई आधार मिल जायेगा जो कि यूरोपियन संघ का सदस्य है।
ऐसे किसी भी गठबंधन से साइप्रस की गुटनिरपेक्ष और काफी मन्द कूटनीति की विरासत समाप्त हो सकेगी जिसके द्वारा उसने सरकारों को समझाने का प्रयास किया कि तुर्की गणराज्य के उत्तरी साइप्रस को मान्यता न दे यद्यपि इस रणनीति का उसे बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ है।
तुर्की का अति आत्मविश्वासी और सम्भावित रूप से मसीहाई नेतृत्त्व धीरे धीरे दुष्ट स्वरूप लेता जा रहा है और इस अवसर पर वाशिंगन,ब्रुसेल्स, एथेंस और मास्को की मह्त्वपूर्ण भूमिका बनती है कि वे साइप्रस और इजरायल के सम्बन्धों को प्रेरित करें और एकेपी नीत तुर्की आक्रामकता को घटायें।