इस समय जबकि मध्य पूर्व शासन की अपदस्थता और नागरिक विद्रोहों से विनाश की अवस्था में है तो वहीं तुर्की अपने प्रभावी आर्थिक विकास, लोकतांत्रिक व्यवस्था , सेना पर राजनीतिक नियंत्रण और सेक्युलर व्यवस्था के चलते एक माडल प्रस्तुत करता है।
लेकिन वास्तव में तुर्की ईरान के साथ इस क्षेत्र के लिये अत्यंत खतरनाक राज्य भी है। इसके कारणों को देखिये ।
बिना नियंत्रण के इस्लामवादी - 29 जुलाई 2011 को जब तुर्की के पाँच में से चार चीफ आफ स्टाफ ने अचानक त्यागपत्र दे दिया तो उन्होंने साथ ही 1923 में कमाल अतातुर्क द्वारा स्थापित गिये गणराज्य के प्रभावी अंत के संकेत भी दे दिये। उसी दिन तुर्की में एक नये गणराज्य का आरम्भ हो गया जिसका नेतृत्व प्रधानमन्त्री रिसेप तईप एरडोगन और उनकी एकेपी पार्टी के उनके इस्लामवादी सहयोगी करते हैं। अब सेना सुरक्षित रूप से उनके अधीन है और ऐसी स्थिति में एकेपी के विचारक इस्लामी व्यवस्था की अपनी मह्त्वाकाँक्षा के लिये कार्य कर सकते हैं।
अधिक बुरा विपक्ष- यह विडम्बना है कि सेक्युलर तुर्क एकेपी की अपेक्षा कहीं अधिक पश्चिम विरोधी हैं। संसद के दो अन्य राजनीतिक दल सीएचपी और एम एच पी एकेपी की कुछ आधुनिक योजनाओं का विरोध करते है जैसे कि सीरिया को लेकर नीति और नाटो की रडार व्यवस्था को अपने यहाँ स्थान देना।
तेजी से बढता आर्थिक पतन – तुर्की ऋण संकट का सामना कर रहा है जिस पर ग्रीक और अन्य देशों के संकट के चलते ध्यान नहीं गया है। जैसा कि व्याख्याकार डेविड गोल्डमैन ने संकेत किया है कि एरडोगन और एकेपी ने देश को आर्थिक संकट की ओर धकेल दिया है, बैंक ऋण काफी ऊपर चला गया है जबकि वर्तमान खाते का घाटा काफी ऊँचा हो चला है जो कि अस्थिरता की सीमा तक जा चुका है। राजनीतिक दल की संरक्षक मशीनरी ने उपभोग के अस्थाई उच्चस्तर को बनाये रखने के लिये अल्पावधि के काफी भारी भरकम ऋण लिये जिसके चलते इसे जून 2011 के चुनाव में भारी सफलता प्राप्त हुई। गोल्डमैन ने एरडोगन को " तीसरे विश्व का शक्तिशाली व्यक्ति" कहा है और तुर्की की तुलना 1994 के मैक्सिको और 2000 के अर्जेंटीना से की है जब " अल्पावधि के विदेशी मुद्रा प्रवाह की सहायता से अल्पकालिक आर्थिक उच्चता प्राप्त की गयी जिसके चलते कालांतर में मुद्रा का अवमूल्यन करना पडा और ये देश गम्भीर आर्थिक संकट में पड गये" ।
फैलती जा रही कुर्द समस्या – तुर्की के 15 से 20 प्रतिशत नागरिक स्वयं को कुर्द के रूप में चिन्हित करते हैं जो कि एक ऐतिहासिक समस्या है यद्यपि अधिकाँश कुर्द आत्मसात हो चुके हैं लेकिन 1984 में अंकारा के विरुद्ध आरम्भ हुआ अलगाववादी विद्रोह अभी हाल में अधिक मुखर राजनीतिक नेतृत्व और अधिक आक्रामक गुरिल्ला आक्रमणों द्वारा कहीं अधिक तीव्र हो चला है।
इजरायल के साथ युद्ध की ताक में - गमाल अब्दुल नसीर और सद्दाम हुसैन की परम्परा का पालन करते हुए तुर्की प्रधानमंत्री ने इजरायल विरोधी लफ्फाजी के द्वारा स्वयं को अरब राजनीतिक सितारा बनाने का प्रयास आरम्भ कर दिया है। लोग यह सोचते हुए भी भयभीत होते हैं और मानते हैं कि इससे पूर्व ही वह अपना तेवर त्याग देंगे।मई 2010 में गाजा में एक विरोधी जहाज को अंकारा ने समर्थन दिया जिसमें अपनाये गये आक्रामक तेवर के चलते इजरायल की सेना ने आठ तुर्की नागरिकों और तुर्क नस्ल के व्यक्ति को मार गिराया और इस घटना का भरपूर उपयोग कर तुर्की ने अपने देश में यहूदी राज्य के विरुद्ध घरेलू स्तर पर आक्रोश भड्काया। एरडोगन ने इस घटना को युद्ध भड्काने के लिये पर्याप्त करार दिया और आवश्यकता पड्ने पर इजरायल के साथ युद्ध की भाषा भी कही और इसके साथ ही एक बार फिर गाजा के लिये जहाज भेजने की बात की और यदि आवश्यकता हुई तो इस बार सेना के संरक्षण में।
तुर्क विरोधी खेमे को उत्तेजित करता – तुर्की की शत्रुता ने कुर्द के साथ इजरायल के साथ ऐतिहासिक सम्बंधों में फिर से गर्मी ला दी है और ग्रीक, साइप्रस और अर्मीनिया के साथ इसके ठंडे पडे सम्बंधों में भी फिर से गर्मी ला दी है। इन सम्बंधों का प्रभाव स्थानीय स्तर पर ही नहीं होगा ऐसी खेमेबंदी से वाशिंगटन में भी तुर्कों के लिये कठिनाईयाँ बढ जायेंगी।
भूमध्यसागर में ऊर्जा भण्डार पर मुखर रूप से अधिकार का प्रदर्शन – इजरायल से बाहर कार्यरत कम्पनियों ने इजरायल, लेबनान और साइप्रस के मध्य स्थित क्षेत्र लेवियाथन में गैस और तेल के बडे भण्डार की खोज की है। जब साइप्रस की सरकार ने इसे निकालने की बात की तो एरडोगन ने बदले में तुर्की सेना और वायुसेना भेजने की बात कहकर धमकी दी। यद्यपि यह विवाद अभी अत्यंत आरम्भिक दौर में है लेकिन इसमें विशाल संकट की सम्भावना छिपी है। मास्को ने साइप्रस के साथ एकता का प्रदर्शन करते हुए अपनी सब मैरीन पहले ही भेज दी है।
अन्य अंतर्राष्ट्रीय समस्यायें – अंकारा ने यूरोपियन संघ के साथ जुलाई 2012 में अपने सम्बन्ध रोक देने की धमकी दी है, जबकि साइप्रस को घूमकर राष्ट्रपतित्व मिलने वाला है। तुर्की सेना ने सीरिया के सैन्य जहाज को जब्त कर लिया है। तुर्की द्वारा उत्तरी इराक को जीत लेने की धमकी के चलते बगदाद के साथ उसके सम्बन्ध अत्यंत खराब हो गये हैं। वैसे तो तुर्की और ईरान दोनों ही भले इस्लामवादी स्वरूप के हों , दोनों का ही कुर्द विरोधी एजेंडा हो और दोनों के मध्य व्यापार भी बढ रहा हो लेकिन दोनों की ऐतिहासिक प्रतिद्वंदिता, विरोधाभाषी प्रशासनिक शैली और प्रतिद्वन्दी मह्त्वाकाँक्षाओं ने सम्बंधों में कटुता ला दी है।
वैसे तो विदेशमंत्री अहमत देवतोग्लू कहते हैं कि " तुर्की सभी घटनाओं के केंद्र में सही स्थिति में है" लेकिन एकेपी के शत्रुता के भाव ने पडोसियों के साथ " शून्य समस्या" की उनकी नीति को व्यापक शत्रुता और सम्भावित सैन्य टकराव ( सीरिया, साइप्रस और इजरायल) में बदल दिया है । जैसे ही आर्थिक संकट उत्पन्न होगा एक समय का नाटो का औदाहरणिक सदस्य और भी भटक जायेगा और इसके संकेत स्वरूप एरडोगन को अपने मित्र ह्वुजो शावेज को अंगीकार करते देखा जा सकता है।
यही कारण है कि मैं ईरान के परमाणु हथियार के साथ ही एक दुष्ट तुर्की को भी इस क्षेत्र का सबसे बडा खतरा मानता हूँ।