काफी प्रचार और शोर शराबे के बीच अगस्त के आरम्भ में व्हाइट हाउस ने policy paper on methods to prevent terrorism जारी किया और कहा यह गया कि इस नीति का निर्माण पिछले दो वर्षों से हो रहा था। इन दस्तावेजों पर बराक ओबामा ने व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर किये थे और इस बात का भी दावा जोर शोर से किया था कि " इसमें समुदायों की शक्ति" सामने आयेगी और साथ ही यह " कट्टरपंथी हिंसा के द्वारा उत्पन्न किये गये खतरे के प्रति हमारी समझ को अधिक सशक्त करेगा" और दस्तावेज को रोग का इलाज माना गया।
लेकिन इस शांति के पीछे आतंकवाद प्रतिरोध के प्रति कहीं अधिक क्षति पहुँचाने वाली और खतरनाक दृष्टि थी। इस प्रपत्र का आयात आतंकवाद प्रतिरोध को लेकर हो रही तीन बहसों में से पूरी तरह गलत पक्ष लेने की आधारभूमि पर टिका है। इस बह्स में एक ओर उत्तरादायित्वपूर्ण दक्षिणपंथी ( कुछ विवेकी उदारवादी) हैं, तो दूसरी ओर वामपंथी, इस्लामवादी और बहुसंस्कृतिवादी हैं।
पहली बह्स समस्या के स्वरूप को लेकर है। उत्तरादियत्वपूर्ण दक्षिणपंथी एक व्यापक खतरे की ओर संकेत करते हैं जो इस्लामवाद के रूप में एक वैश्विक विचारधारागत आंदोलन है जिसने 11 सितम्बर के आक्रमण के बाद कुल 23,000 आतंकवादी आक्रमणों को समस्त विश्व में प्रेरित किया है। इस्लामवादी इस बात से इन्कार करते हैं कि उनकी विचारधारा हिंसा को प्रोत्साहित करती है और वे इन 23,000 आक्रमणों को अपराधी , सनकी या फिर दिग्भ्रमित मुसलमानों के कृत्य बताते हैं। पश्चिमी वामपंथी और बहुसंस्कृतिवादी उनकी सहायता करते हैं और इसके लिये अपने काडर , रचनात्मकता,आर्थिक सहायता और संस्थान इन इस्लामवादियों के उत्तरदायित्व से इंकार करने की सहायता में लगाते हैं।
अमेरिका के हाउस आफ रिप्रेसेंटेटिव में हुई सुनवाई के दौरान यह मतभेद अधिक मुखर हुआ। गृहभूमि सुरक्षा (Homeland Security) समिति के अध्यक्ष पीटर किंग ( न्यूयार्क के रिपब्लिकन) ने इस बात पर जोर दिया कि पूरी तरह मुस्लिम कट्टरपंथ पर ध्यान दिया जाये। मिसीसिपी के उच्च स्तरीय डेमोक्रेट बेनी थोमसन ने इस पर आपत्ति जताई और ध्यान दिलाया कि " अमेरिका में अनेक घरेलू कट्टरपंथी गुट भी हैं जो कि इस्लामवादियों से अधिक सक्रिय हैं जिसमें नव नाजी, पर्यावरण कट्टरवादी, टैक्स विरोधी गुट और कई अन्य शामिल हैं " । उन्होंने इस सुनवाई में आग्रह किया कि इसमें , " घरेलू कट्टरपंथी गुटों का भी व्यापक आधार पर परीक्षण हो और उनकी विचारधारागत अंतर्धारा कुछ भी क्यों न हो? "
किंग ने इस आग्रह को ठुकरा दिया और यह कहकर इसका प्रतिवाद किया, " यह सत्य है कि कट्टरपंथी तत्व हैं और हमारे पूरे इतिहास में राजनीतिक हिंसा की छिटपुट घटनायें होती रही हैं लेकिन 11 सितम्बर को अल कायदा का आक्रमण और इस्लामी जिहाद से हमारे देश को जारी खतरा कहीं अधिक गम्भीर है जो कि अमेरिका की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहा है" ।
दूसरी बह्स इस बात पर आधारित है कि शत्रु की पहचान कैसे की जाये। दक्षिणपंथी और उत्तरदयित्वपूर्ण दल सामान्य रूप से आतंकवाद के बारे में बात करते हैं और जिहाद तथा आतंकवाद का उल्लेख करते हैं फिर भी न्यूयार्क पुलिस विभाग ने वर्ष 2007 की अपनी रिपोर्ट Radicalization in the West: The Homegrown Threat में प्रथम पंक्ति में ही " इस्लाम आधारित आतंकवाद से खतरे" की बात कही है। इस्लामवादी और उनके सहयोगी अन्य सभी पर बात करते हैं - हिंसक कट्टरपंथ , अल कायदा तथा अल कायदा का सहयोगी नेटवर्क , विदेशी धरती पर आपातकालीन आपरेशन, मानव निर्मित आपदा तथा मेरा प्रिय " सुरक्षा और विकास के लिये वैश्विक संघर्ष" । बहुसंस्कृतिवादी शक्तियों ने काफी गहरी पैठ बना ली है जैसे कि 2009 में फोर्ट हूड में हुए गोलीकाण्ड में जब मेजर निदाल हसन ने कुल 14 लोगों की हत्या कर दी थी तो अमेरिका के सुरक्षा अनुसंधान विभाग ने जब अपनी रिपोर्ट Protecting the Force बनाई तो इसमें न तो आतंकवादी का नाम और न ही उसके स्पष्ट इस्लामवादी प्रेरणा का कोई उल्लेख किया गया था।
तीसरी बह्स यथोचित प्रतिक्रिया देने की है। इस्लामवादी, वामपंथी और बहुसंस्कृतिवादी भीड ने समाधान इस बात में खोजा है कि मुसलमानों के साथ साझेदारी की जाये, एक साथ नागरिक अधिकारों पर जोर दिया जाये , सम्यक प्रक्रिया अपनाई जाये, भेदभाव को मिटाने का प्रयास हो, सद्भाव बढाया जाये और प्रतिक्रिया को रोका जाये। उत्तरदायित्वपूर्ण दक्षिणपंथी इन उद्देश्यों से सहमत हैं लेकिन इन्हें सेना और कानून प्रवर्तन तरीकों के पूरक के रूप में देखते हैं जैसे कि खुफिया सूचनायें एकत्र करना, गिरफ्तारियाँ, लम्बे समय तक हिरासत में रखना, दूसरे देशों को सौंपना, दण्डित करना आदि।
लेकिन 4,600 शब्दों की यह अत्यन्त घटिया ढंग से लिखी गयी असंगठित व्हाइट हाउस रिपोर्ट अत्यंत आडम्बरपूर्ण तौर पर इन तीन बहसों में इस्लामवादी , वामपंथी और बहुसंस्कृतिवादियों के पक्ष की वकालत करती है।
- समस्या का स्वरूप ? " नव नाजी और अन्य सेमेटिक विरोधी घृणा गुट , नस्लवादी सर्वोच्चतावादी तथा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू आतंकवादी गुट"
- शत्रु को नाम देना ? इस प्रपत्र में कहीं भी इस्लामवाद का उल्लेख नहीं किया गया है। इसके शीर्षक Empowering Local partners to prevent violent extremism in the United States में इस्लामवाद का उल्लेख करने से परहेज किया गया है।
- यथोचित प्रतिक्रिया ? " जिस प्रकार कि हम समुदायों की सुरक्षा के विषयों में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं (जैसे गुटों की हिंसा में, विद्यालयों में गोलीकाण्ड में, मादक पदार्थ अपराध में और घृणा से जुडे अपराधों में) और सरकारी अधिकारियों के साथ तालमेल बिठाकर , मेयर के कार्यालय से तालमेल स्थापित कर, कानून प्रवर्तन द्वारा, समुदायों को संगठित कर, निजी क्षेत्रों के लोगों की सेवायें लेकर उसी प्रकार हमें हिंसा के कट्टरपंथ और आतंकवाद भर्ती पर भी सम्बन्धों के द्वारा और कुछ पुराने औजार और समाधान से इस समस्या का हल करना चाहिये"।
समुदायों की सुरक्षा से जुडा मुद्दा उठाना विचार के स्तर पर अभाव को दर्शाता है जैसा कि लास एंजेल्स टाइम्स ने इसे विश्व्सनीयता का अभाव कहकर खारिज कर दिया है। रिपोर्ट ने न्याय विभाग के " व्यापक गैंग माडल" की प्रंशसा करते हुए उसे लचीला ढाँचा बताया है जिसने कि गुटीय आधारित अपराध को कम किया है। गुटों के साथ संघर्ष के लिये तो यह सुखद सूचना है लेकिन गुट तो आपराधिक व्यवसाय है जबकि इस्लामवादी हिंसा तो विचारधारागत युद्ध है। गुटीय सदस्य तो गुंडे होते हैं जबकि इस्लामवादी तो प्रतिबद्ध होते हैं। इनकी तुलना तो समस्या को एकदम से तोडमरोड देती है। हाँ यह सही है कि दोनों ही हिंसा के मार्ग का अनुसरण करते हैं लेकिन एक तकनीक का दूसरे पर प्रयोग करना वैसे ही है जैसे कि पेस्ट्री बनाने वाले को आग बुझाने वाले को सुझाव देने को कहना ।
एकमात्र शब्द सशक्त करना के द्वारा यह माना गया है कि इस्लामवाद का खतरा एक छोटे सा गुट " अल कायदा और उसके सहयोगी और उससे लगाव रखने वाले ही हमारे देश के लिये गम्भीर आतंकवादी खतरा हैं" । यह इस्लामवादी आंदोलन के उस 99 प्रतिशत की अवहेलना करता है जो कि अल कायदा से सम्बद्ध नहीं है जैसे कि वहाबी आंदोलन, मुस्लिम ब्रदरहुड, हिज्ब उत तहरीर, ईरानी सरकार, हमास, हिज्बुल्लाह, जमात उल फुक्रा और इसके अतिरिक्त अन्य स्वयंभू भेडियों का कहना ही क्या? रिपब्लिकन सू मायरिक ( उत्तरी केरोलिना के रिपब्लिक) ने उचित ही कहा है कि इस नीतिगत प्रपत्र ने जितने उत्तर नहीं दिये है उससे अधिक तो प्रश्न खडे कर दिये हैं।
इस सशक्तीकरण प्रपत्र की बौद्धिक जडें 2004 के जार्ज सोरोस द्वारा आर्थिक सहायता प्रदत्त प्रयास Promising Practices Guide: Developing Partnerships Between Law Enforcement and American Muslim, Arab and Sikh Communities से जुडी हैं जिसे डेबोराह ए रामीरेज,साशा कोहेन ओ कोनेल और राबिया जफर ने बनाया था। इन लेखकों ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया था " आतंकवाद के विरुद्ध इस युद्ध का सबसे बडा खतरा यह है कि कम पहचान की संस्कृतियों और लोगों के विरुद्ध अत्यंत सफलतापूर्वक आक्रोश और भय का प्रचार हो सकता है" । उनके अनुसार सबसे बडा खतरा अपने हजारों दुर्गुणों के साथ इस्लामवादी आतंकवाद नहीं है वरन अमेरिकी लोगों का अल्पसंख्यकों के विरुद्ध सम्भावित पूर्वाग्रह है। जैसा कि वर्ष 2004 में मैंने कहा था, " आतंकवाद प्रतिरोध की दिशा में यह पथप्रदर्शक हो सकता है लेकिन इसका प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा से ध्यान ह्टाकर कुछ चुनिंदा समुदायों को विशेषाधिकार उपलब्ध कराना है" ।
यद्यपि प्रपत्र बिना किसी आपत्ति के अमेरिका के संवैधानिक मूल्यों पर जोर देते हुए मुसलमानों के साथ सहयोग बढाने की आवश्यकता बताता है परंतु यह इस्लामवादी और गैर इस्लामवादी मुसलमानों के मध्य विभेद करते हुए एक भी शब्द नहीं कहता। सशक्तीकरण प्रपत्र अत्यंत नाजुक ढंग से इस खतरनाक तथ्य को स्वीकार करता प्रतीत होता है कि इस्लामवादी संगठित अमेरिकी मुस्लिम नेतृत्व पर हावी हैं और उनके उद्देश्य आतंकवादियों से अधिक मिलते हैं न कि आतंकवाद प्रतिरोधियों से। रिपब्लिकन किंग ने सही ही चिन्ता व्यक्त की है कि व्हाइट हाउस दस्तावेज " कुछ कट्टरपंथी संगठनों और अमेरिकी मुस्लिम समुदाय के कुछ तत्वों की वैधानिक आलोचना की भी निंदा करता है" । तत्काल इस बात की आवश्यकता है कि शत्रु और मित्र की पहचान के लिये कुछ किया जाये।
निश्चित रूप से ओबामा प्रशासन द्वारा उस मुस्लिम समाज के साथ सहयोग की आकाँक्षा व्यक्त करने से जो कि संवैधानिक व्यवस्था को अस्वीकार करते हैं इस्लामवादी संगठनों की ओर से इस प्रपत्र पर हर्षित बयान आने थे। द काउंसिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस जो कि आतंकवाद को सहायता के लिये मंच है उसने इसकी प्रशंसा करते हुए इसे " वस्तुनिष्ठ और सम्पूर्ण" कहा , जबकि इसी से मिलते जुलते मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल ने इसे अत्यंत " उपयोगी" की संज्ञा दी।
इसके विपरीत इस्लाम में मतान्तरित होने वाले और वर्ष 2009 में सेना भर्ती केंद्र लिटिल राक अर्क में गोली चलाकर एक सैनिक की हत्या करने वाले कार्लोस ब्लेडसो के पिता मेल्विन ब्लेडसो ने इस रिपोर्ट पर कहा , " इससे समस्या का समाधान नहीं होने वाला है जब वे मुद्दे के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं" । काउंसिल आन फारेन रिलेशंस के एद हुसैन ने " चिंता की कोई बात "न बताकर इस पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि " प्रारम्भिक तौर पर मुसलमानों की भावना को आहत करने से बचा गया है" ।
संक्षेप में एक संगठन जो कि आतंकवादियों से सम्बद्ध है वह प्रशासन की इस छद्म आतंकवादी प्रतिरोध नीति पर अत्यंत प्रसन्नता का भाव व्यक्त करता है जबकि आतंकवादी का दुखी पिता इस पर व्यंग्य करते हुए इसे खारिज कर देता है। यही अपने आप में सब कुछ कह जाता है।
अब क्या जब एक अलग थलग अध्ययन को राष्ट्रीय नीति के रूप में सुशोभित कर दिया गया? कोई भी छोटा रास्ता नहीं है। जो भी सक्षम आतंकवाद प्रतिरोध नीति चाहते हैं उन्हें सरकार से वामपंथियों और बहुसंस्कृतिवादियों को बाहर करने का प्रयास करना चाहिये।