ऐसा प्रतिदिन नहीं होता कि जब एकदम नये देश का नेता अपनी पहली विदेश यात्रा विश्व के सबसे अधिक घिरे देश की राजधानी जेरूसलम के रूप में करे परंतु दक्षिणी सूडान के राष्ट्रपति सल्वा कीर ने अपने विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ दिसम्बर के अंत में यही किया। इजरायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने इस यात्रा को अत्यंत " आंदोनलकारी ऐतिहासिक क्षण" बताया। इस यात्रा से इस बात को बल मिला है कि दक्षिणी सूडान जेरूसलम में अपना दूतावास स्थापित करने वाला है और ऐसा करने वाली विश्व की वह पहली सरकार होगी।
यह अस्वाभाविक घटनाक्रम एक अस्वाभाविक कथा का परिणाम है.
आज के सूडान ने उन्नीसवीं शताब्दी में स्वरूप ग्रहण किया था जब ओटोमन साम्राज्य ने इसके उत्तरी क्षेत्र को नियन्त्रण में लिया और इसके दक्षिणी क्षेत्र को विजित करने का प्रयास किया। ब्रिटेन ने काहिरो से शासन करते हुए आधुनिक राज्य का खाका 1898 में तैयार किया और अगले पचास वर्षों तक उत्तरी मुस्लिम और ईसाई –प्रकृतिवादियों वाले दक्षिणी क्षेत्र पर अलग अलग शासन किया। 1948 में उत्तरी भाग के दबाव के आगे झुकते हुए ब्रिटिश शासन ने दोनों प्रशासन को उत्तरी नियंत्रण में खारतोम के अन्तर्गत कर दिया और इस प्रकार सूडान में मुस्लिम प्रभाव हो गया और अरबी इसकी आधिकारिक भाषा हो गयी।
इसी प्रकार 1956 में स्वतन्त्रता प्राप्त होते ही यहाँ गृह युद्ध आरम्भ हो गया जब दक्षिणी क्षेत्र के लोग मुस्लिम प्रभुत्व से मुक्त होने के लिये संघर्ष करने लगे। उनके लिये यह सौभाग्य की बात थी कि प्रधानमंत्री डेविड बेन गूरियन की " क्षेत्रीय नीति" ने मध्य पूर्व में गैर अरब लोगों के लिये इजरायल के समर्थन का मार्ग प्रशस्त किया जिसमें कि दक्षिणी सूडान भी शामिल था। इजरायल की सरकार ने 1972 तक चले सूडान के गृह युद्ध में सहायता दी जो कि उनके नैतिक , कूटनीतिक सहायता और सशस्त्र सहायता का मुख्य आधार रहा।
श्रीमान कीर ने जेरूसलम में इस योगदान को सराहा और कहा, " इजरायल ने सदैव ही दक्षिणी सूडान के लोगों की सहायता की है। आपके सहयोग के बिना हमारा उत्थान सम्भव नहीं था। दक्षिणी सूडान की स्थापना में आपने हमारे साथ संघर्ष किया है" । इसके उत्तर में श्रीमान पेरेज ने 1960 के आरम्भ में पेरिस में अपनी उपस्थिति को याद किया जब उन्होंने प्रधानमंत्री लेवी एस्कोल के साथ दक्षिणी सूडान के नेताओं के साथ इजरायल के प्रथम सम्पर्क का आरम्भ किया था।
सूडान का गृह युद्ध 1956 से 2005तक रुक रुक कर चलता रहा। समय के साथ उत्तरी मुस्लिम दक्षिण के अपने साथी देशवासियों के प्रति क्रूर होते चले गये और इसके परिणामस्वरूप 1980-90 के दशक में नरसंहार , गुलामी और ह्त्याकाण्ड जैसे दृश्य सामने आये। अफ्रीका के अनेक दुखद प्रसंगों की भाँति ऐसी समस्याओं ने भी दयाभावी पश्चिमी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं छोडा सिवाय अमेरिका के दो आधुनिक स्वतंन्त्रतावादियों के जिन्होंने असाधारण प्रयास किये ।
1990 के मध्य में क्रिश्चियन सोलिडैरिटी इंटरनेशनल के जान ईबनर ने हजारों गुलामों को मुक्त कराया तथा अमेरिकन एंटी स्लेवरी ग्रुप की ओर से चार्ल्स जेकब्स ने अमेरिका में " सूडान अभियान" चलाकर अनेक संगठनों का व्यापक गठबंधन बनाया। जैसा कि सभी अमेरिकी गुलामी को अभिशाप मानते हैं तो इन स्वतंत्रतवादियों ने दक्षिण और वामपंथ का एक अद्वितीय गठबंधन बनाया जिसमें बार्ने फ्रैंक और सैम ब्राउनबैक, अमेरिकी कांग्रेस के अश्वेत समूह और पैट राबर्टसन , अश्वेत पादरी और श्वेत धर्मांतरणवादी। इसके विपरीत लुइस फराखान पूरी तरह बेनकाब हो गये जब उन्होंने सूडान में गुलामी होने की बात को ही नकार दिया।
स्वतंत्रतावादियों के प्रयासों को सफलता 2005 में मिली जब जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने खारतोम पर दबाव डाला कि वह 2005 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करे ताकि युद्ध समाप्त हो और दक्षिणी क्षेत्र के लोगों को स्वतंत्र होने के लिये मत का अवसर प्राप्त हो। उन्होंने जनवरी 2011 में पूरे उत्साह के साथ ऐसा किया और 98 प्रतिशत लोगों ने सूडान से अलग होने के लिये मत दिया और इससे छह माह पश्चात दक्षिणी सूडान गणतंत्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया जिसे कि श्रीमान पेरेज ने " मध्य पूर्व के इतिहास में एक मील का पत्थर बताया"।
इजरायल के लम्बे समय के निवेश का लाभ मिला है। दक्षिणी सूडान उस नयी क्षेत्रीय रणनीति में पूरी तरह उपयुक्त बैठता है जिसमें कि साइप्रस, कुर्द, बरबर और शायद एक दिन उत्तर इस्लामवादी ईरान भी शमिल हो। दक्षिणी सूडान के चलते प्राकृतिक ससाधनों पर पहुँच हो सकेगी विशेष रूप से तेल। नील नदी के जल की वार्ता में इसकी भूमिका से मिस्र पर भी कुछ दबाव बन सकेगा । व्यावहारिक लाभ से परे नया गणतंत्र अपनी निष्ठा, समर्पण और उद्देश्यके प्रति लगन के द्वारा गैर मुस्लिम जनता द्वारा इस्लामी साम्राज्यवाद के प्रतिरोध का प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत करता है । इस प्रकार दक्षिणी सूडान का जन्म तो इजरायल को ही प्रतिध्वनित करता है।
यदि कीर की जेरूसलम की यात्रा वास्तव में मील का पत्थर है तो दक्षिणी सूडान को अपनी दरिद्रता, अंतरराष्ट्रीय संरक्षण और बीमार संस्थाओं की स्थिति से बाहर निकल कर आधुनिकता और वास्तविक स्वतंत्रता की ओर आना होगा। इस मार्ग पर चलने के लिये आवश्यक है कि नेतृत्व राज्य के नवीन संसाधनों का शोषण करने या खारतोम को विजित कर नया सूडान निर्मित करने का स्वप्न देखने के स्थान पर सफल राज्य की नींव रखे।
इजरायल और अन्य पश्चिमवासियों के लिये इसका अर्थ कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में सहायता प्रदान करना है और उन्हें यह सलाह देना है कि सुरक्षा और विकास पर ध्यान केंद्रित करें परंतु अपनी इच्छा के युद्ध से बचें। एक सफल दक्षिणी सूडान वास्तव में एक क्षेत्रीय शक्ति बन सकता है और न केवल इजरायल का वरन समस्त पश्चिम का एक शक्तिशाली मित्र हो सकता है।