अपने लम्बे इतिहास में शायद पहली बार यमन ने बाहरी विश्व के लिये खतरा उत्पन्न किया है। मुख्य रूप से यह खतरा दो प्रकार से है।
पहला, 15 जनवरी को आरम्भ हुए राजनीतिक उठा पटक से पहले ही यमन की हिंसा की लपट पश्चिमवासियों तक पहुँचने लगी थी। जैसा कि राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह की कमजोर सरकार का नियंत्रण देश के एक छोटे भाग तक ही सीमित है तो हिंसा यमन के निकट ( जैसे कि अमेरिकी और फ्रांसीसी जहाजों पर आक्रमण ) और सुदूर ( अनवर अल अवलाकी द्वारा टेक्सास, मिचीजन और न्यूयार्क में भडकाये गये आतंकवाद) तक दिखी । 4 जून को श्रीमान सालेह द्वारा लगभग पलायन करने की स्थिति कि जब वे चिकित्सा के लिये सउदी अरब की यात्रा कर रहे हैं तो केंद्रीय सरकार की शक्ति और भी क्षीण होगी। यमन अब हिंसा के निर्यात का अधिक बडा केंद्र बनने की तैयारी में है।
लेकिन दूसरा खतरा मस्तिष्क को अधिक झकझोरने वाला है वह है अद्वितीय ढंग से यमन का खाली होना जिससे कि लाखों की संख्या में अप्रशिक्षित और अनागंतुक शरणार्थी जिसमें कि अधिकाँश इस्लामवादी हैं पहले तो मध्य पूर्व में और फिर पश्चिम में आर्थिक शरण की माँग कर रहे हैं।
इस समस्या का आरम्भ विनाशकारी जलाभाव से हुआ है। इस विषय के विशेषज्ञ गेरहार्ड लिचेनहेलर ने वर्ष2010 में लिखा कि किस प्रकार देश के अनेक पहाडी क्षेत्रों में , " जलाशयों में उपलब्ध जल कम होकर प्रति व्यक्ति चौथाई गैलन रह गया। इन जलाशयों को इतने गहरे तक खोदा गया कि जलस्तर प्रति वर्ष 10 से 20 फीट नीचे गिरता गया, इससे कृषि को खतरा उत्पन्न हो गया और प्रमुख शहरों में सुरक्षित पीने के जल की पर्याप्त मात्रा का अभाव हो गया है । साना विश्व का पहला राजधानी शहर होगा जो कि पूरी तरह सूख गया है" ।
और केवल साना ही नहीं जैसा कि लंदन टाइम्स के मुख्य शीर्षक ने कहा है, " यमन ऐसा पहला देश होगा जहाँ कि जल का अभाव उत्पन्न होगा" । इस स्तर की अतिशय स्थिति आधुनिक समय में उत्पन्न नहीं हुई थी जबकि इसी परिपाटी मे सूखे सीरिया और इराक में भी हुए हैं।
स्तम्भकार डेविड गोल्डमैन ने संकेत दिया है कि खाद्य संसाधनों के अभाव के चलते मध्य पूर्व में बडी संख्या में लोगों के भूखा रहने का संकट उत्पन्न हो गया है और इसमें भी यमन में आरम्भ हुई अशांति से पूर्व ही एक तिहाई यमन के लोग भूख से पीडित थे । यह संख्या तेजी से बढ रही है।
आर्थिक स्थिति के सिकुडने की सम्भावना दिनों दिन बढ्ती ही जा रही है। तेल की आपूर्ति तो इस स्तर तक घट गयी है कि, " ट्रक और बस पेट्रोल स्टेशन पर बढी संख्या में लोग घन्टों तक भीड में लगे रहते हैं , जबकि जल की कमी और बिजली की कटौती तो रोजमर्रा का अंग बन चुका है" । उत्पादक गतिविधि अपेक्षाकृत पतनोन्मुख है।
मानों जल और खाद्य कोई बडी चिंता नहीं थी कि यमन विश्व में जन्मदर के मामले में सबसे आगे है और इसने संसाधनों के संकट को और भी गम्भीर कर दिया है। प्रत्येक स्त्री का संतान उत्पत्ति का औसत 6.5 है और प्रत्येक 6 में से 1 स्त्री हर समय गर्भवती ही रहती है। ऐसी भविष्यवाणी की जा रही है कि 2.4 करोडकी जनसंख्या अगले 30 वर्षों में दुगुना हो जायेगी।
राजनीति समस्या को अधिक गम्भीर बना देती है। यदि यह मान भी लें कि श्रीमान सालेह का शासन इतिहास का विषय हो गया है ( सउदी उन्हें नहीं जाने देंगे और साथ ही अनेक घरेलू विरोधी भी उनके विरुद्ध उठ खडे हुये हैं) तो उनके उत्तराधिकारी को उस छोटे से भाग पर शासन करने में भी कठिनाई होगी जिस पर अभी उनका शासन है।
अनेक धडे विरोधाभासी उद्देश्य के साथ सत्ता के लिये संघर्ष कर रहे हैं , सालेह की सेना, उत्तर में हूती विद्रोही , दक्षिण में अलगाववादी , अला कायदा तरीके की शक्तियाँ , एक युवा आंदोलन , सेना, अग्रणी कबीलाई और अहमर परिवार। एक ऐसा देश जो कि वास्तव में " कबीलाई व्यवस्था पर आधारित है और सैन्य अधिनायकवादी जैसा दिखता है" वहाँ सोमालिया और अफगान की तर्ज पर अराजकता की सम्भावना अधिक दिखती है न कि गृह युद्ध की।
यमन के इस्लामवादी इस्लाह राजनीतिक दल से लेकर जो कि संसदीय चुनाव में भाग लेता है सउदी सेना से टक्कर लेने वाले हूती विद्रोही और अरब प्रायद्वीप में अल कायदा तक बिखरे हैं। उनकी बढ्ती शक्ति ईरान समर्थित राज्यों और संगठनों के " प्रतिरोध खंड" को बल प्रदान करती है । यदि यमन में शिया सुन्नी पर भारी पड्ते हैं तो इससे तेहरान को ही लाभ होगा।
कुल मिलाकर पर्यावरणिक , आर्थिक, राजनीतिक, विचारधारागत संकट यमन से एक असाधारण , सामूहिक और दुर्भाग्यपूर्ण पलायन को प्रेरित करेगा और इससे एक विशाल यमन विरोधी प्रतिक्रिया की स्थिति उत्पन्न होगी।
व्यक्तिगत रूप से एक छात्र के रूप में 1972 में यमन के यात्रा कर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ था। एक ऐसी भूमि जिस तक पहुँचना अत्यंत कठिन था और औपनिवेशक इसके कुछ ही भाग तक प्रवेश कर सके उसने अपनी परम्परा, अपनी विशिष्ट स्थापत्य, विशेष पहनावे को सँभाल कर रखा।
क्या बाहरी विश्व इस विनाश को रोक सकता है? नहीं, यमन की पहाडी स्थिति , संस्कृति और राजनीति सभी कुछ सैन्य हस्तक्षेप को लगभग असम्भव बनाती है और इस समय जबकि पश्चिम चुकी सी स्थिति में है और सउदी डरे से हैं तो कोई भी इस डहती अर्थव्यवस्था का दायित्व अपने ऊपर नहीं लेना चाहेगा। न ही राज्य आगे बढकर लाखों लाख आवश्यकता के मारे शरणार्थियों को लेना चाहेगा। इस घोर अंधकार मे यमनवासी अपने साथी स्वयं ही हैं।