सीरिया के विद्रोह ने मानवीय और भू राजनैतिक स्तर पर अनेक सम्भावनाओं के अवसर भी प्रदान किये हैं। पश्चिमी देशों को चाहिये कि वे तत्काल पूरे प्रयास से इस अवसर का लाभ उठाकर बशर अल असाद और उनके साथियों को बाहर का रास्ता दिखायें। एक बार जब वे इतिहास के कूडेदान में अपने उचित स्थान पर पहुँच जायेंगे तो इसके अनेक लाभ सामने आयेंगे।
विदेशी: खराब छवि के परंतु मेधावी हफीज अल असद ने दशकों तक सीरिया के असम्यक प्रभाव के द्वारा मध्य पूर्व का पराभव किया। उनके अयोग्य पुत्र बशर ने वर्ष 2000 तक इस परिपाटी को जारी रखा और इराक में आतंकवादियों को भेजा, लेबनान के प्रधानमंत्री रफीक अल हरीरी की ह्त्या करवाई, उनके पुत्र साद को सत्ता से अपदस्थ कराया , हमास और हिज्बुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों की सहायता की तथा रासायनिक और परमाणु हथियार विकसित किये। उनका सत्ता से हटना समस्त विश्व के लिये वरदान सिद्ध होगा।
लेकिन बशर की मुख्य अंतरराष्ट्रीय भूमिका तेहरान के प्रमुख सहयोगी की है। पश्चिमी लोगों द्वारा सीरिया और ईरान के परस्पर सहयोग को अधिक गम्भीरता से नहीं लेने के बाद भी यह पिछले तीस वर्षों से टिका है , जिसमें अनेक व्यक्तिगत और परिस्थितिजन्य उतार चढाव होते रहे हैं और इसी कारण वर्ष 2006 में जुबिन गूदार्जी ने दोनों पक्षों के बारे में कहा था, " व्यापक रूप से इनकी दीर्घावाधि की रणनीतिक चिंता अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता से उत्पन्न हुई है" ।
सीरिया के इंतिफादा ने पहले ही ईरान नीत " प्रतिरोध प्रखंड" को कमजोर कर दिया है जिससे कि तेहरान राजनीतिक रूप से असाद से दूर हो रहा है और ईरान के नेतृत्व में भी विरोध उभर रहा है। सीरिया के प्रदर्शनकारी ईरान के ध्वज को जला रहे हैं यदि (सुन्नी) इस्लामवादी दमिश्क में शासन में आ गये तो वे ईरान के साथ सम्बंध को त्याग देंगे और इससे मुल्लाओं की विशाल मह्त्वाकाँक्षा पर कुठाराघात होगा।
असद के शासन की समाप्ति के कुछ और भी परिणाम होंगे। बशर और तुर्की की ए के पार्टी ने इतने घनिष्ठ सम्बंध स्थापित कर लिये हैं कुछ विश्लेषकों की राय है कि असद के शासन से हट जाने से अंकारा की समस्त मध्य पूर्व रणनीति ही ध्वस्त हो जायेगी। सीरिया में कुर्द के मध्य उत्पन्न हुआ असन्तोष उनकी व्यापक स्वायत्तता का मार्ग प्रशस्त करेगा और इसके परिणामस्वरूप उनकी नस्ल के लोग अनातोलिया में भी एक अलग राज्य की माँग उठायेंगे , इस सम्भावना से अंकारा इतना चिंतिति है कि इसने उच्च स्तरीय यात्रियों को अनेक चरण में भेज कर दमिश्क के साथ इस विषय पर आतंक प्रतिरोध समझौता की बात चला दी ।
सीरिया में उथल पुथल से लेबनान को कुछ राहत मिली है जो कि 1976 से ही उसके अँगूठे के नीचे है। इसी प्रकार , दमिश्क के भटक जाने से इजरायल के रणनीतिकारों को कुछ ही समय के लिये सही देश की अन्य विदेशी समस्याओं की ओर ध्यान देने का अवसर प्राप्त हो गया है।
घरेलू: बशर अल असद ने 15 मार्च को अपने देश में आरम्भ हुए विद्रोह से कुछ ही सप्ताह पूर्व दिये गये एक साक्षात्कार में अत्यंत आत्मविश्वासपूर्वक ट्यूनीशिया और मिस्र में चल रहे घटनाक्रम के सम्बंध में अपनी प्रजा के संकटों की व्याख्या भी की थी, " जब भी आपके विरुद्ध विद्रोह होता है तो यह स्वतः स्पष्ट है कि हताशा से उभरा आक्रोश है"।
शब्द हताशा अपने आप में सीरिया के लोगों की कथा कहता है , 1970 से असद परिवार ने सीरिया पर स्टालिन पद्दति से नियंत्रण स्थापित कर रखा है और इराक के सद्दाम हुसैन से कुछ ही कम दमनकारी है। गरीबी, अत्यधिक नियंत्रण , भ्रष्टाचार, जडता, दमन, भय, अलग थलग स्थिति , इस्लामवाद, उत्पीडन तथा जनसंहार असद शासन की पहचान है।
पश्चिम के लोभ और सरलता से बहका दिये जाने के चलते बाहरी लोगों को वास्तविक स्थिति का आकलन दुर्लभ ही हो पाता है। एक ओर तो सीरिया का शासन सेंट एंड्र्यूज विश्वविद्यालय में सेंटर फार सीरियन स्टडीज की सहायता करता है तो वहीं दूसरी ओर एक अनौपचारिक सीरिया लाबी का भी अस्तित्व है। इसी कारण विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन बसर अल असद को सुधारवादी करार देती हैं और वहीं vogue पत्रिका इस उत्पीडक की पत्नी के ऊपर विशेष अंक प्रकाशित करती है ( शासनाध्यक्षों की पत्नियों में सर्वाधिक युवा, आकर्षक और चुम्बकीय व्यक्तित्व वाली)।
शासन की समाप्ति से एक खतरा उत्पन्न हो सकता है जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिये। ट्यूनीशिया और मिस्र की भाँति अपेक्षाकृत शालीन विद्रोह न होकर केवल असद परिवार और जिस अलवी समुदाय से ये आते हैं उसकी ओर मुडा है , एक उत्तर गुप्त इस्लामवादी सम्प्रदाय जो कि सीरिया की 1\8 जनसंख्या है उसने 1966 से ही सरकार पर प्रभाव स्थापित कर रखा है और इस कारण बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय में काफी विरोध का वातावरण है। सुन्नियों ने विद्रोह का आरम्भ किया और अलवी समुदाय के लोगों ने उन्हें प्रताडित किया और मारा। यह तनाव खूनी खेल को आमन्त्रण दे सकता है और यहाँ तक कि गृह युद्ध भी और इस सम्भावना के लिये बाहरी शक्तियों को तैयार भी रहना चाहिये और इसे मानना भी चाहिये।
जैसे जैसे सीरिया में गतिरोध की स्थिति और बढेगी और प्रदर्शनकारी सडकों पर भरेंगे और शासन उन्हें मारेगा , पश्चिम की नीति इस सम्बंध में निर्णायक परिवर्तन ला सकती है। न्यूयार्क के स्टीवेन कोल ने सही ही कहा है, " असद के साथ आशावादी लेन देन का अवसर समाप्त हो चुका है" । विश्लेषक ली स्मिथ ने सही ही पाया है कि अस्थिरता के भय को परे रख देना होगा " असद के शासन से अधिक बुरा और कुछ नहीं हो सकता" । समय आ गया है कि निर्दोष अलवी लोगों को बचाने के लिये और उस शैतान से कार्यव्यवहार के लिये जिसे हम नहीं जानते बशर को सत्ता से बाहर कर दिया जाये ।