मोमेंट पत्रिका ने पूछा , " पिछले कुछ महीनों में मध्य पूर्व लोकतांत्रिक विद्रोह, जनता के प्रदर्शनों, कठोर दमन , राजनीतिक उथल पुथल और अन्तरराष्ट्रीय सैन्य हस्तक्षेप की लपट में आ गया है जिसने इस क्षेत्र की परम्परागत समझ को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। इजरायल नये अस्थिर अरब जगत से घिरा होने के कारण और फिलीस्तीन के राज्य के स्वरूप ग्रहण करने की दिशा में बढने से सभी दिशाओं से अनिश्चितता की स्थिति का सामना कर रहा है । मोमेंट पत्रिका ने अरब के बसंत से उठे तूफान को सहन करने के लिये इजरायल के पास उपस्थित विकल्पों और अन्य स्थितियों पर मध्य पूर्व के अनेक विशेषज्ञों और चिन्तकों से राय जाननी चाही । इस सम्बंध में डैनियल पाइप्स का उत्तर यह रहा । सभी सोलह उत्तर यहाँ जानें
मध्य पूर्व की वर्तमान उथल पुथल ने इतनी दया दिखाई है कि यह इजरायल को केन्द्र में रखकर नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया में जायोनिज्म या इजरायलवाद के विरोध के पहलू की भूमिका अत्यंत संकीर्ण या यों कहें कि पूरी तरह न के बराबर रही है। मेरे लिये यह अत्यंत उल्लेखनीय बात है कि इजरायल ने कितनी छोटी भूमिका निभाई है।लेकिन इसके साथ ही इजरायल को इससे लाभ भी हुआ है कि ध्यान अन्य ओर है। इजरायल को इस पूरे मामले से बाहर रहना चाहिये कि जैसा उसने किया भी है।
वर्तमान उथल पुथल से फिलीस्तीन को भी इस निष्कर्ष पर पहुँचना होगा कि हिंसा से उन्हें सफलता नहीं मिलने वाली है और इसके सहारे वे वहाँ तक नहीं जा सकते जहाँ वे जाना चाहते हैं और वे भी क्षेत्र के अन्य लोगों की भाँति युद्ध की रणनीति को बदलकर अन्य अहिंसक राजनीतिक कार्यक्रमों की ओर ध्यान देंगे। इसमें इजरायल के शहरों, सीमाओं और सुरक्षा चौकियों की ओर अहिंसक जनमार्च शामिल हैं।
लेकिन बिडम्बना है कि यह परिवर्तन इजरायल के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकता है। कुछ अर्थों में इसे फिलीस्तीनी हिंसा से बल मिला है। कुछ अंशों में इस कारण कि हिंसा अत्यंत विद्रूप स्वरूप है और कुछ अर्थों में इसलिये कि इजरायल ने राजनीतिक क्षेत्र की अपेक्षा सैन्य क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है । राजनीतिक क्षेत्र में संघर्ष को परिवर्तित कर देने से इजरायल को हानि होगी। मुझे नहीं लगता कि इस परिवर्तन से इजरायल को कोई लाभ होने वाला है क्योंकि मुख्य लक्ष्य वही रहने वाला है और वह है यहूदी राज्य का विनाश।
मेरी आशा है कि इजरायल इस नये रूझान का सामना करने की तैयारी कर रहा होगा जिसमें खुफिया सूचनायें एकत्र करने से लेकर सुरक्षा बलों का ऐसा प्रशिक्षण शामिल है कि वे चतुर राजनीतिक तर्कों से प्रदर्शनकारियों को समझा सकें। अंतिम बिंदु अत्यंत मह्त्वपूर्ण है । पूर्व में अरब नेता अत्यंत बेहूदा और आतर्किक तर्क देते थे लेकिन अब उनमें सुधार हो रहा है और वे अधिक तार्किक और समझ की बात करते दिखते हैं। इजरायल को अस्वीकार्य करने का उनका राजनीतिक अभियान संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में सितम्बर के प्रस्ताव के बाद अधिक तीव्रता को प्राप्त होगा।