अभी कुछ दिनों पूर्व तुर्की के विदेश मन्त्री अहमद देवताग्लू ने बहकते हुए दावा किया कि, " यदि विश्व आग की चपेट में है तो तुर्की आग बुझाने वाले की भूमिका में है। मध्य पूर्व की स्थिरता में तुर्की बडी भूमिका देख रहा है" ।
अंकारा के लिये ये मह्त्वाकाँक्षायें नयी हैं। 1990 के दशक में इसने संतोषपूर्वक नाटो की अपनी बाध्यताओं को पूरा किया था और वाशिंगटन के नेतृत्त्व को स्वीकार कर लिया था। 1996 आते आते इजरायल के साथ सम्बंध फलने फूलने लगे। कुल मिलाकर तुर्की की नीति मुस्लिम लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव स्थापित करने वाली शासनवादी, इस्लामवादी और षडयंत्रकारी मानसिकता के लिये एक अपवाद के रूप में थी। ऐसे में देश के राजनीतिक नेता भ्रष्ट रहे या फिर वे उछल कूद करते रहे और यह एक गौण विषय हो गया।
हालाँकि ये त्रुटियाँ काफी भारी पडीं और लम्बे समय से स्थापित राजनीतिक दल ध्वस्त हुए और इस्लामवादी राजनीतिक दल Adalet ve Kalkınma Partisi ए के पी को नवम्बर 2002 में विजय प्राप्त हुई। मार्च 2003 में इराक युद्ध से पहले ही नई सरकार ने संकेत दे दिया कि नये युग का आरम्भ हो चुका है और उसने तुर्की राज्यक्षेत्र से अमेरिकी सेना को अनुमति नहीं दी।
अगले आठ वर्षों में तुर्की की विदेश नीति धीरे धीरे सामान्य रूप से पश्चिम के और विशेष रूप से अमेरिका, फ्रांस और इजरायल के विरुद्ध होती गयी और यहाँ तक कि इसने सीरिया, ईरान और लीबिया के साथ अपने सम्बन्धों में नयी ताजगी लायी। यह परिवर्तन विशेष रूप से मई 2010 में दिखाई दिया जब अंकारा ने अपने परमाणु कार्यक्रमों के चलते प्रतिबंधों की अवहेलना कर जाने में तेहरान की सहायता की और मावी मरमारा नीत जहाजों के द्वारा इजरायल की प्रतिष्ठा को ध्वस्त किया।
लेकिन मध्य पूर्व को लेकर अंकारा की पूरी मह्त्वाकाँक्षा का स्वरूप तो 2011 आरम्भ में सामने आया जब पूरा क्षेत्र भारी उथल पुथल से जूझने लगा। तुर्क अचानक सर्वव्यापी हो गये और उनकी हाल की गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
एक उदाहरण के रूप में सामने आना: तुर्की के राष्ट्रपति अब्दुल्ला गुल का मानना है कि तुर्की मध्य पूर्व पर, " महान और अविश्वसनीय प्रभाव डाल सकता है" और इस बात को मानने वाले भी हैं। उदाहरण के लिये ट्यूनीशिया में हाल में कानूनी दर्जा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल अनहादा के नेता राचेद घनौची ने माना है, "हम तुर्की के अनुभव से सीख ले रहे हैं विशेषकर जो शांति उन्होंने देश में इस्लाम और आधुनिकता के मध्य स्थापित की है" ।
ईरान को एक आर्थिक जीवन रेखा प्रदान करना: फरवरी में गुल ने तेहरान की राजकीय यात्रा की जिसमें उनके साथ बडी संख्या में उद्योगपति भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे जिसे कि जेम्सटाउन फाउंडेशन ने कहा, " तुर्की ईरान के लिये एक प्रमुख आर्थिक जीवन रेखा बन रहा है"। इसके साथ ही गुल ने ईरान की रानजीतिक प्रणाली की प्रशंसा की।
लीबिया में विदेशी प्रयासों को बाधित करना: 2 मार्च से तुर्की सरकार ने मुवम्मर अल कद्दाफी के शासन के विरुद्ध किसी भी प्रकार के सैन्य हस्तक्षेप का विरोध आरम्भ किया , 14 मार्च को देवताग्लू ने कहा, " विदेशी हस्तक्षेप से विशेष रूप से सैन्य हस्तक्षेप से समस्या और गम्भीर ही होती है, शायद उन्हें इस बात का भय है कि उत्तरी तुर्की में कुर्दों को बचाने के लिये भी ऐसी ही कार्रवाई हो सकती है। जब 19 मार्च को सैन्य अभियान आरम्भ हुआ तो तुर्की सैनिकों ने इसमें भाग नहीं लिया। तुर्की के विरोध के चलते लीबिया में नाटो की कार्रवाई 31 मार्च तक आरम्भ न हो सकी और उसके बाद अनेक शर्तों के साथ मार्ग दिया।
कद्दाफी का समर्थन: तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन ने कद्दाफी की इस बात में सहायता की कि वे भावनात्मक दावे कर सकें ( तुर्की ऐसे किसी भी अभियान का अंग नहीं बनेगा जिसमें लीबिया के लोगों पर बंदूक चलायी जाये) और कुछ व्यावहारिक प्रस्ताव दे सकें ( कद्दाफी राष्ट्रपति की नियुक्ति कर अपने शासन को बचा सकें ) । हुर्रियत समाचार पत्र के अनुसार अंकारा ने यह प्रस्ताव भी किया " लीबिया में मानवीय सहायता को बाँटने में शामिल हो बेनगाज़ी हवाई अड्डे का प्रबंधन देखे और नौसेना की तैनाती कर बेनगाज़ी और क्रीट के ग्रीक प्रायद्वीप पर नियंत्रण रखे" । इसकी कृतज्ञता में कद्दाफी ने उत्तर दिया, " हम सभी ओटोमन हैं" । लेकिन इसके विपरीत लीबिया के विद्रोही भडक गये और तुर्की की सरकार के विरुद्ध मार्च कर दिया।
दमिश्क की सहायता: जनवरी में अंकारा सीरिया के सैनिकों के प्रशिक्षण के लिये तैयार हो गया, मार्च में एरडोगन ने सार्वजनिक रूप से सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को सुझाव दिया कि सत्ता कैसे बनाये रखी जाती है शायद उन्हें इस बात का भय था कि सीरिया के 14 लाख कुर्द अधिक स्वायत्तता प्राप्त कर लेंगे और तुर्की के लगभग 15 लाख कुर्दों के मध्य भी अस्थिरता उत्पन्न करेंगे।
जायोनिज्म या इजरायलवाद विरोध : अंकारा इजरायल को अस्वीकार्य और अविधिक सिद्ध कराने के मामले में एक अग्रणी नेता के रूप में उभरा है। देवतोग्लू ने इजरायल के लुप्त होने की बात कहते हुए इसके शत्रुओं को एकत्र करने का प्रयास किया है । सरकार समर्थित एक संगठन ने नये गाज़ा स्वतन्त्र जहाज अभियान के द्वारा 15 जहाजों की योजना बनाई है और उपप्रधानमंत्री ने लीबिया की भाँति इजरायल में बम वर्षा की बात की है।
अंकारा की मह्त्वाकाँक्षा पर विराम लगाना आवश्यक है। ईरानी शासन के विपरीत यह कम भडकाऊ अंदाज में अत्यन्त बुद्धिमानी से मुस्लिम देशों को अपने इस्लामवादी स्वरूप में ढालना चाहता है। आरम्भिक प्रयास पूरी तरह सफल रहे हैं और पूरी तरह प्रभावी और अधिकतर बिना चर्चा में आये।
ए के पी के मार्ग को अवरुद्ध करने के प्रभावी तरीकों में कुछ इस प्रकार हैं: अंकारा की , " नव ओटोमन" नीतियों के प्रति अप्रसन्नता प्रकट की जाये, सार्वजनिक रूप से इस बात पर प्रश्न उठाये जायें कि क्या तुर्की के कार्यकलाप नाटो की सदस्यता से मेल खाते हैं, जून 2011 के चुनावों में धीरे से विरोधी दलों को प्रोत्साहित किया जाये, इस अवसर पर ए के पी के शत्रुवत या अमित्रवत व्यवहार को देखते हुए उत्तरी तुर्की में कुर्दों के उठ खडे होने से कुर्दों के नागरिक अधिकारों के नाजुक प्रश्न पर फिर से विचार किया जाना चाहिये।