यदि मिस्र में घटनायें उसी प्रकार घटती हैं जैसा कि आशा की जा रही है तो भी आगे का भविष्य अस्पष्ट ही रहेगा। उत्साहजनक भाग समाप्त हो चुका है और चिन्ताओं का दौर आरम्भ हो चुका है।
आइये तीन अच्छे समाचारों के साथ आरम्भ करते हैं: होस्नी मुबारक जो कि मिस्र के शक्तिशाली व्यक्ति थे और आपत्ति के दौर में थे सौभाग्यवश उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है। इस्लामवादी जो कि मिस्र को ईरान की दिशा में धकेल सकते हैं उनकी वर्तमान घटनाक्रम में अत्यंत छोटी भूमिका है और वे सत्ता से दूर हैं। सेना जिसने कि पर्दे के पीछे से 1952 से ही शासन किया है वह ऐसी संस्था है जो कि प्रदर्शनकारियों की माँग के अनुरूप सरकार को ढाल सकती है।
अब समस्या देखें। सेना ही अपने आपमें एक छोटी समस्या का प्रतिनिधित्व करती है। पिछले छह दशकों से नियन्त्रण स्थापित रखने के साथ ही इसने चीजों को बिगाडा भी है। मिस्र के लेखक तारिक उस्मान ने अपनी पुस्तक Egypt on the Brink: From Nasser to Mubarak ( येल विश्वविद्यालय से प्रकाशित) में इस बात को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से रखा है कि किस प्रकार मिस्र का प्रभाव घटा है। जो भी सूचकाँक चयनित किया जाये फिर वह जीवन स्तर से लेकर नरम स्तर पर शक्ति का प्रभाव हो मिस्र आज की स्थिति में अपने पूर्ववर्ती राजाओं से काफी पीछे है। उस्मान ने 1950 के वैश्विक कैरो को आज के " भीडभाड वाले ,शात्रीय तृतीय विश्व के शहर" के विपरीत पाया है। उन्हें इस बात पर भी निराशा व्यक्त की है कि किस प्रकार एक देश जो कि एक समय , " शांति का दिशानिर्देशक था वह मध्य पूर्व में उग्रता की उत्पाद भूमि में परिवर्तित हो चुका है"
मुस्लिम ब्रदरहुड सबसे बडी समस्या को प्रस्तुत करता है। 1928 में स्थापित विश्व के सबसे बडे इस्लामवादी संगठन ने लम्बे समय तक सरकार के साथ टकराव से स्वयं को बचाकर रखा और इस तथ्य को छुपाया कि वह मिस्र में एक इस्लामी क्रांति लाने की मह्त्वाकाँक्षा रखता है। ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इस आशा को और मुखर स्वर दिया जब उन्होंने दावा किया कि मिस्र में चल रहे घटनाक्रम से " एक नया मध्य पूर्व उभर रहा है जिसमें कि जायोनिस्ट या इजरायलवादी राज्य नहीं होगा और अमेरिका का हस्तक्षेप भी नहीं होगा" । इसी खतरे की ओर मुबारक ने स्वयं भी संकेत किया, " हम देख रहे हैं कि अमेरिका ने जैसा लोकतंत्र ईरान में संचालित किया है और हमास ने गाजा में यही मध्य पूर्व का भाग्य है ...... अतिवाद और क्रांतिकारी या कट्टरपंथी इस्लाम" ।
इस मामले में अमेरिकी प्रशासन ने एक नौसिखिये की भाँति किसी प्रकार भी चिंता नहीं प्रकट की। बराक ओबामा ने मुस्लिम ब्रदरहुड के खतरे को नजरअंदाज किया और इसे , " मिस्र में केवल एक खेमा" बताया, वहीं राष्ट्रीय गुप्तचर के निदेशक जेम्स क्लैपर ने तो वास्तव में ब्रदरहुड की प्रशंसा की, "एक विविधतावादी गुट, जो कि अधिकाँशतः सेक्युलर है और जिसने हिंसा छोड दी है और मिस्र में राजनीतिक व्यवस्था को बेहतर करने के प्रयास में लगा है" ।
इस अज्ञानता से तो यही लगता है कि अमेरिका की नीति पूरी तरह अव्यवस्था की स्थिति में है। जून 2009 में ईरान में लगभग क्रांति की सी स्थिति में ओबामा प्रशासन मौन बना रहा ताकि तेहरान की सदिच्छा प्राप्त की जा सके। लेकिन जब मुबारक जो कि मित्रवत तानाशाह रहे हैं जब उनपर आक्रमण हुआ तो इसने प्रभावी रूप से जार्ज ड्बल्यू बुश के " स्वतन्त्रता एजेंन्डे" को अपनाया और विपक्ष का सहयोग किया। एक तरह से तो श्रीमान ओबामा ने सडक पर प्रदर्शनकारियों को हमारे विरुद्ध ही सहयोग दिया है।
अमेरिकी दबाव, धीरे धीरे और मद्धिम मद्धिम रूप से इस बात को स्वीकर करते हुए कि लोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया में समाज का बदलाव अंतर्निहित है जिसमें कि महीनों नहीं वरन दशकों लगते हैं इसके लिये समाज को अधिक खुला करने की आवश्यकता होती है।
अगले चरण में मिस्र में क्या होगा और क्या मुस्लिम ब्रदरहुड नियंत्रण कर लेगा?
मिस्र की सडकों पर पिछले कुछ सप्ताहों में अनेक उल्लेखनीय, अप्रत्याशित और असाधारण चीजें घटित हुई हैं। एक नेतृत्वविहीन जनांदोलन ने बडी संख्या में सामान्य नागरिकों को एकत्र किया जैसा कि कुछ दिनों पूर्व ट्यूनीशिया में हुआ। यह विदेशियों के विरुद्ध नहीं भडका, न हि बलि का बकरा बनने वाले मिस्र के अल्पसंख्यकों के विरुद्ध , न ही इसने किसी क्रांतिकारी विचारधारा को समर्थन दिया, इसके बजाय इसने उत्तरदायित्व , मुक्ति और सम्पन्नता की माँग की। मुझ तक कैरो से जो सूचनायें आ रही हैं उनके अनुसार एक देशभक्ति, समन्वयवाद, सेक्युलरवादऔर व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की ओर ऐतिहासिक मोड है।
इसकी पुष्टि के लिये दो मतदानों पर दृष्टि डाल ली जाये: वर्ष 2008 में लिजा ब्लेड्स और ड्रिउ लिंजर ने अपने अध्ययन में पाया था कि 60 प्रतिशत मिस्रवासी इस्लामवादी विचारों के हैं। लेकिन पिछले सप्ताह पेचर मिडिल ईस्ट मतदान ने कैरो और एलेक्जेन्ड्रिया के केवल 15 प्रतिशत लोगों ने मुस्लिम ब्रदरहुड को समर्थन दिया और केवल1 प्रतिशत लोग इसके राष्ट्रपति के पक्ष में थे। इस भयानक परिवर्तन का एक संकेत यह भी है कि ब्रदरहुड ने अपने पैर खींचते हुए अपनी राजनीतिक मह्त्वाकाँक्षाओं को कम किया है और इसके युसुफ करदावी ने तो यहाँ तक कह दिया कि मिस्र की स्वत्रंता को बचाना शरियत कानून को लागू करने से अधिक महत्वपूर्ण है।
अभी यह कहना अत्यंत शीघ्रता होगी कि इस क्रांति में यह व्यवहार कैसे आया और यह कहाँ जायेगा लेकिन यह आज की सुखद सच्चाई है। अब सैन्य नेतृत्व का यह दायित्व है कि इसे अंजाम तक ले जाये। तीन लोगों पर विशेष निगाह होगी, उपराष्ट्रपति उमर सुलेमान, रक्षा मंत्री मोहम्मद हुसैन तंतावी और चीफ आफ स्टाफ सामी हफीज एनान। हम शीघ्र ही देखेंगे कि क्या सैन्य नेतृत्व ने कुछ सीखा है और परिपक्व हुआ है और यदि यह स्वीकार कर सके कि अपने स्वार्थी हितों के लिये काम करना पतन को ही आमन्त्रित करेगा।