इकोनोमिस्ट ने डरहम विश्वविद्यालय के अनौस एहतेशामी और डैनियल पाइप्स से प्रस्ताव पर बोलने को कहा, " मिस्र एक वर्ष के भीतर लोकतंत्र बन जायेगा" एह्तेशामी का उत्तर यहाँ पढा जा सकता है। श्रीमान पाइप्स की प्रतिक्रिया निम्नलिखित है।
दो कारणों से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि मिस्र का अरब गणतंत्र अगले वर्ष तक लोकतांत्रिक स्थित में नहीं जा सकेगा।
पहला, लोकतंत्र निर्वाचन प्रक्रिया सम्पन्न कराने से अधिक की स्थिति है इसके लिये सिविल सोसाइटी का विकास, इसका अर्थ अनेक जटिल और इच्छा के विपरीत कानून के शासन को स्थापित करना , एक स्वतंत्र न्यायपालिका, अनेक राजनीतिक दल, अल्पसंख्यक अधिकार, स्वयंसेवी संगठन , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ,आंदोलन और एकत्रता। लोकतंत्र एक सीखने वाली पद्धति है न कि स्वभाव इसके लिये स्वभाव और व्यवहार में अनेक सुधार लाने होते हैं जैसे कि नियंत्रित होने का स्वभाव, मूल्यों की समानता, विविध विचारों के लिये सम्मान , एक स्वामिभक्त विपक्ष की अवधारणा और नागरिक उत्तरदायित्व का भाव।
इसके साथ ही निर्वाचन प्रकिया का ऐसा अभ्यास हो कि उसे पूरी तरह सही बनाया जा सके। आदर्श स्थिति यह है कि देश नगरपालिका स्तर से निर्वाचन प्रक्रिया आरम्भ करता हुआ राष्ट्रीय स्तर तक जाता है, यह विधायिका से कार्यपालिका तक जाता है। इसके साथ ही प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिये , राजनीतिक दलों को परिपक्व होना चाहिये , न्यायाधीश अपने आप में मामलों का निर्णय कर सकें।
समाज का ऐसा बदलाव कुछ महीनों या वर्षों में नहीं आ सकता, पिछले अनुभव यही बताते हैं कि ऐसा होने में दशकों का समय लगता है। यह बात तो समझ से परे है कि मिस्र जिसे कि लोकतन्त्र का अत्यंत कम अनुभव है वह इन तत्वों के अनेक पहलुओं को समेट कर बारह माह में एक पूर्णरूपेण लोकतान्त्रिक व्यवस्था के रूप में स्थापित हो जायेग।
दूसरा, कोई भी चित्रण क्यों न किया जाये लोकतंत्र आता हुआ नहीं दिखता।
- यदि होस्नी मुबारक सत्ता में बने रह पाते हैं जो कि होता नहीं दिखता तो वह पहले से और भी अधिक दमनकारी हो जायेंगे। जैसा कि उनके पहले के कार्यों से दिखायी पडता है कि वह शांतिपूर्वक नहीं जायेंगे।
- यदि सेना प्रमुख रूप से सत्ता के केंद्र में आ जायेगी जैसा कि वह 1952 में तख्ता पलट के बाद से रही है तो नये नियुक्त उपराष्ट्रपति उमर सुलेमान सम्भवतः नये राष्ट्रपति होंगे । वह व्यवस्था में परिवर्तन करेंगे ,मुबारक के समय के अनेक पद दुरूपयोग को समाप्त करेंगे लेकिन मिस्र की जनता को सत्ता में वास्तविक भागीदारी नहीं मिलेगी। 1992 में अल्जीरिया का उदाहरण हमारे समक्ष है जब सेना समर्थित सरकार ने इस्लामवादियों का दमन किया था।
- यदि इस्लामवादी सत्ता में आते हैं तो वे 1979 के ईरान की भाँति क्रांति का सूत्रपात करेंगे तो ऐसी स्थिति में ईश्वर की सम्प्रभुता के नीचे जनता की राजनीतिक भागीदारी आ जायेगी। इस्लामवादियों की निर्वाचन को सत्ता में पहुँचने के रूप में प्रयोग करने की उनकी मन्शा के कारण इस्लामवादी आंदोलन के अंतर्निहित लोकतंत्रविरोधी स्वरूप की अवहेलना नहीं की जा सकती। 1992 में एक अमेरिकी अधिकारी के दूरदर्शी शंब्दों के अनुसार इस्लामवादी एक कार्यक्रम को आगे बढा रहे हैं कि, " एक व्यक्ति, एक मत, एक समय"
चाहे विशेष रूप से देखें या फिर अस्पष्ट रूप से देखें मिस्र के लोगों के सामने ऊबड खाबड मार्ग है और अपने नेताओं को चुनने की कोई सम्भावित स्थिति दिखती भी नहीं।