अरब भाषी अन्य दिखावटी ग़णतंत्र की भाँति शक्तिशाली होस्नी मुबारक जिनकी अवस्था 82 वर्ष की है वे अस्वस्थ चल रहे हैं और शीघ्र की सत्ता में अपने 30 वर्ष पूरे करने वाले हैं और वह पारिवारिक विरासत को बढाना चाहते हैं।
हो भी क्यों न ? हफीज अल असद ने अपने पुत्र बशर को सीरिया का शासन करने के लिये नियुक्त किया । सद्दाम हुसैन की भी इच्छा थी कि उनका पुत्र उनका उत्तराधिकारी बने ( जबतक कि अमेरिकी की सेना हस्तेक्षप नहीं किया) लीबिया और यमन के तानाशाहों की भी ऐसी ही मंशा है।
होस्नी को अपने 47 वर्षीय बैंकर पुत्र गमाल जिनकी कि सत्ता पर कोई पकड नहीं है उन्हें अधिकार दिलाने के लिये दो शक्तिशाली प्रतिद्वन्दी शक्तियों से संघर्ष करना होगा। 1952 में सत्ता पलट से सत्ता प्राप्त करने के बाद से सेना ने अपना नियंत्रण स्थापित रखा है और आगे भी सत्ता में बने रहने की उसकी इच्छा है। मुस्लिम ब्रदरहुड जिसे कि 1954 के बाद से सेना ने कुचला है वे अपने लिये अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब वे सत्ता के लिये बोली लगा सकें। इसके अतिरिक्त अमेरिकी सरकार का स्थितियों पर अच्छा नियंत्रण है।
जब कि मिस्र के लोग अस्वस्थ होस्नी के समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो लोगों को इस बात की चिंता है और सुगबुगाहट है कि वह अपनी शर्तों पर जाते हैं तो आगे होगा क्या? साक्ष्यों के आधार पर लिखते हुए भी सतर्क होकर कह रहा हूँ कि ऐसा लगता है वे गमाल को मिस्र के ईसाइयों जिन्हें कि काप्ट के रूप में जाना जाता है उनके ऊपर ही इनकी सत्ता की सवारी करायेंगे।
इस निष्कर्ष पर आने के लिये कुछ साक्ष्य हैं। पहला, काप्ट पर जो अनेक आक्रमण हुए हैं उनका शासन से सम्बंध है।
- क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर काप्ट पर हुए आक्रमण में जिसमें कि 7 काप्ट मारे गये उसमें संसद का सदस्य शामिल रहा।
- सुरक्षा बलों ने " अल्लाहू अकबर" के आदेश के साथ एक विवादित चर्च के निर्माणाधीन स्थल पर आक्रमण किया।
- अपने कार्य पर न रहने वाले एक पुलिसवाले ने काप्ट पर ट्रेन में आक्रमण किया और " अल्लाहू अकबर" का नारा लगाया और एक को मौत के घाट उतार दिया।
दूसरा, काप्ट को मारने के मामले में शायद ही किसी मुसलमान को कानूनी रूप से दन्डित किया जाता है। उदाहरण के लिये 1999 में दूसरे कोशेह नरसन्हार में 20 काप्ट को मारने के मामले में किसी भी मुसलमान पर आरोप नहीं लगा , जबकि एक मुस्लिम को साथी मुस्लिम को दुर्घटनावश मारने के आरोप में 13 वर्ष का कारावास हुआ।
तीसरा, सुरक्षा बल के लोग उन काप्ट पर शारीरिक रूप से आक्रमण करते हैं जो कि उत्पीडन का विरोध करते हैं जबकि इस्लामवादियों को सामूहिक नरसंहार के द्वारा बिना बाधा के काप्ट को भयभीत करने का परोक्ष समर्थन होता है।
काप्ट के साथ यह व्यवहार मुबारक की सम्भावित विरासत के लिये दो प्रकार से लाभदायक है , एक तो यह अत्यंत सुविधापूर्ण ढंग से इस्लामवादी हिंसा को शासन से अलग रखता है और साथ ही यह मुबारक को मिस्र , अमेरिका और अन्य लोगों को यह स्मरण कराने में सहायता करता है कि वह मिस्र में इस्लामवादी आतंकवाद से लडने के लिये और स्थिरता के लिये कितने आवश्यक है, इसी कारण उन्होंने नव वर्ष की पूर्व संध्या पर अलेक्जेंड्रिया में चर्च पर हुए बम धमाके के तत्काल बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। एक ओर मिस्र जब अराजकता की ओर है तो इससे यमन की तर्ज पर अमेरिका के हस्तक्षेप की आशंका बढती है तो बात आगे बढेगी और इससे गमाल को सुविधा होगी।
इसी प्रकार नव वर्ष की पूर्व सन्ध्या पर पोप बेनेडिक्ट 16 द्वारा अलेक्जेंड्रिया में काप्ट पर हुए बम आक्रमण के बाद अन्तरराष्ट्रीय संरक्षण की बात कहने पर मुबारक के शासन ने वेटिकन सिटी से अपने राजदूत को वापस बुला लिया। इसकी प्रतिक्रिया में सरकार ने घोषणा की कि, " वह अपने घरेलू मामलों में किसी भी गैर मिस्र वर्ग का हस्तक्षेप किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेगा" ।
काप्ट को लेकर खेला गया जुआ सफल रहा है, अमेरिका की नीति ने मुबारक के समक्ष समर्पण कर दिया , जैसा कि कैरो विश्वविद्यालय में अमेरिकी राजनेताओं द्वारा 2 जून को दिया गया भाषण स्पष्ट करता है।
जून 2005 को कैरो के अमेरिकी विश्वविद्यालय में तत्कालीन विदेश मन्त्री कोंडोलिजा राइस ने मिस्र के लोगों से कहा कि वे अपनी सरकार से लोकतंत्र की माँग करें। " वह दिन आ रहा है जब कि एक ऐसा विश्व जो कि पूरी तरह मुक्त और लोकतांत्रिक हो असम्भव माना जाता था अब सम्भव दिखता है" । दशकों तक मिस्र में रहे मार्शल ला के बारे में उन्होंने कहा कि या फिर माँग की कि, " जब कानून का शासन आपातकालीन घोषणाओं का स्थान लेगा" । उन्होंने मुबारक का आह्वान किया कि, " वे अपने देश की जनता और समस्त विश्व से से किये गये वायदे को पूरा करें और अपनी जनता को चयन की स्वतन्त्रता प्रदान करें" निश्चित रूप से मुबारक ने इस भाषण को पसंद नहीं किया।
वर्ष 2009 में कैरो विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए बराक ओबामा ने इस आह्वान को उलट दिया। उन्होंने घोषणा की कि, " सरकार की कोई भी प्रणाली किसी देश पर किसी दूसरे देश द्वारा थोपी नहीं जा सकती और शालीनतापूर्वक स्वीकार किया कि, " अमेरिका इस बात की पूर्वकल्पना नहीं कर सकता कि सभी के लिये सही क्या है" वर्ष 2009 में मिस्र में अमेरिका के राजदूत मार्गरेट स्कोबे ने तो ,इस बात को ही मान लिया कि , " मिस्र के अनेक लोग बोलने के लिये स्वतंत्र है" । काप्ट के मुद्दे पर शासन को बचाव देते हुए उन्होंने जोर दिया कि कुछ हद तक यह समस्या मिस्र के मुस्लिम और ईसाई के मध्य है और ये मामले " भेदभाव के हैं" सरकार की कार्रवाई इसमें शामिल नहीं है।
यह पूरी तरह समर्पण और चाटुकारिता है। इसके बजाय वाशिंग़टन को चाहिये कि वह तत्काल बडे मुबारक को संदेश दे कि वंशानुगत दावे का त्याग करें और समाज के सैन्यीकरण को कम करें। कानूनसम्मत इस्लामवाद से संघर्ष करें । अपनी काप्टिक प्रजा की रक्षा करें।