पादरी टेरी जोंस द्वारा फ्लोरिडा में गैंसेविले के अपने चर्च में कुरान की प्रतियाँ जलाने की योजना के सम्बंध में यह जोर देकर कहने का विषय है कि यह एक अरुचिकर कार्य है जो विद्रूप परम्परा की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही दो अन्य बिंदुओं को भी स्पष्ट करना होगा कि, अमेरिका में पुस्तक खरीद कर उसे जलाना पूरी तरह विधिसम्मत है। दूसरा, डेविड पेट्रियस, राबर्ट गेट्स ,एरिक होल्डर , हिलेरी क्लिंटन और बराक ओबामा ने जोंस को अपनी योजना रद्द करने का दबाव केवल इसलिये डाला क्योंकि उन्हें भय है कि यदि वे अपनी योजना पर आगे बढेंगे तो अमेरिकावासियों के विरुद्ध मुस्लिम हिंसा हो सकती है। निश्चित तौर पर श्रीमान जोंस ने कुरान जलाने की अपनी योजना रद्द कर दी है फिर भी इस योजना को लेकर हुई हिंसा में 5 अफगानी और 14 कश्मीरी मारे जा चुके हैं।
इस हिंसा का स्रोत इस्लामी कानून शरियत है जो कि इस बात पर जोर देता है विशेष रूप से इस्लाम और कुरान को विशेषाधिकार प्राप्त है। इस्लाम किसी भी ऐसे मुस्लिम या गैर मुस्लिम को बर्बरतापूर्वक दण्डित करता है जो कि इस्लाम की पवित्रता को लाँघने का प्रयास करता है। मुस्लिम बहुल देशों में सामान्य रूप से यह विशेषाधिकार परिलक्षित होता है, उदाहरण के लिये पाकिस्तान में ईशानिंदा कानून 295-c के अनुसार मुहम्मद के सम्बंध में अपमानजनक शब्द कहने वाले को मृत्युदण्ड दिया जाता है।
यह बात भी कम मह्त्व की नहीं है कि शरियत अन्य धर्मों की पवित्रता को निम्नतर स्तर पर रखता है, इस परम्परा का प्रदर्शन बामियान में बुद्ध की प्रतिमायें ध्वस्त कर किया गया साथ ही यहूदी जोसेफ गुम्बद तथा नेटिविटी का ईसाई चर्च। वर्ष 2003 के इस आदेश के अनुसार कहा गया कि मुस्लिम के लिये बाइबिल शौच के उपरांत ही उपयुक्त है। इस प्रकार की रिपोर्ट है कि मई में ईरानी अधिकारियों ने सैकडों बाइबिल की प्रतियाँ जला दीं। यह असन्तुलन कि इस्लाम हर प्रकार से छूट प्राप्त करे और अन्य धर्मों को निम्नतर आँका जाये यह प्रवृत्त्ति मुस्लिम बहुल देशों में लम्बे समय से चली आ रही है।
इसके बाद 1889 में अयातोला खोमैनी ने इस दोहरे मापदंड को अचानक पश्चिम की ओर बढाते हुए आदेश दिया कि सलमान रश्दी को उनके उनकी पुस्तक सेटेनिक वर्सेस के कुछ अंशों के लिये मृत्यु दंड दिया जाये। इसके साथ ही खोमैनी ने रश्दी नियम स्थापित कर दिया जो कि अभी तक जारी है। इस नियम के अनुसार वे मानकर चलते हैं कि जो भी, " इस्लाम , पैगम्बर और कुरान का विरोध" करता है उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिये और अन्य जो भी इस निंदा के साथ सम्बद्ध हो उसे भी मृत्युदंड दिया जाना चाहिये और सभी मुसलमानों को इस धमकी को मूर्त रूप देने के लिये अनौपचारिक ढंग से गुप्तचर नेटवर्क के अंतर्गत शामिल होना चाहिये।
यह तो स्वतः स्पष्ट है कि ये नियम पश्चिमी जीवन की मूलभूत अवधारणा का खंडन करते हैं और वह है अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। संक्षिप्त रूप से इसे इस प्रकार कह स्कते हैं, " मैं आपके विचारों से असहमत हूँ लेकिन इसे व्यक्त करने के आपके अधिकार की रक्षा के लिये जीवन पर्यंत प्रयास करता रहूँगा" । इस स्वतंत्रता के अंतर्गत त्रुटियाँ करने के बाद उनकी रक्षा का अधिकार अंतर्निह्ति है, साथ ही असहमत होने और निंदा करने का भी।
यदि रश्दी नियम ने आरम्भ में पश्चिम को चौंका दिया था तो उसके बाद से यह नया नियम बन चुका है। इस्लाम का विषय आता है तो अभिव्यक्ति की स्वत्रंत्रता 1989 से पूर्व की एक स्मृति बन कर रह जाती है। लेखक, कलकार और सम्पादक पूरी तरह इसे मानते हैं कि इस्लाम की आलोचना उनके जीवन के लिये खतरा बन सकती है।
पश्चिमी नेता कभी कभी इस्लाम का अपमान करने वालों के साथ खडे होते हैं। ब्रिटेन की प्रधनमन्त्री मार्गरेट थैचर ने 1989 में तेहरान के दबावों का सामना किया था और कहा था, " इस बात का कोई आधार नहीं है कि सरकार सेटेनिक वर्सेस के प्रतिबंध पर विचार करे"। अन्य सरकारों ने भी एकस्वर से संकल्प लिया कि, "किसी भी व्यक्ति के लेखन, प्रकाशन, विक्रय , खरीदने और पुस्तक पढने के अधिकार की रक्षा बिना किसी हिंसा के भय के की जायेगी" ।
इसी प्रकार वर्ष 2006 में जब कापेनहेगन के एक समाचार पत्र में मुहम्मद के कुछ अपमानजनक कार्टून प्रकाशित हुए थे और विरोध प्रदर्शन की बाढ आ गयी थी तो डेनमार्क के प्रधानमन्त्री एंडर्स फोग रासमसेन ने स्पष्ट किया था कि " यह सिद्धांत का विषय है" " एक प्रधानमन्त्री के रूप में मेरे पास प्रेस को सीमित करने का कोई अधिकार नहीं है और न ही ऐसा अधिकार मैं चाहता हूँ"
दोनों ही घटनाओं के चलते काफी मँहगे विरोध और हिंसा की स्थिति झेलनी पडी फिर भी सिद्धांत ठहर न सका। अन्य पश्चिमी नेताओं ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा में हिचकिचाहट दिखाई। आस्ट्रेलिया,आस्ट्रिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, ब्रिटेन और इजरायल तथा नीदरलैंड सभी सरकारों ने रश्दी नियम की अवहेलना करने वालों को जेल में डालने का प्रयास किया या सफलतापूर्वक ऐसा किया ।
ओबामा प्रशासन भी इस अपमानजनक सूची में शामिल हो गया है। श्रीमान जोंस के ऊपर इनका दबाव इस्लाम के सम्बंध में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करता है और परोक्ष रूप से यह बात स्थापित करता है कि अमेरिका में इस्लाम को विशेषाधिकार प्राप्त है जहाँ कि मुस्लिम अन्य लोगों को अपमानित कर सकते हैं लेकिन उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता। यह देश को धिम्मित्व की ओर ले जाता है जहाँ कि गैर मुसलमानों को इस्लाम की सर्वोच्चता को स्वीकार करना होता है। अंत में , श्रीमान ओबामा ने प्रभावी रूप से इस्लामी कानून को लागू कर दिया है एक ऐसा उदाहरण जिसके बाद अनिवार्य रूप से शरियत के प्रति उत्तरदायित्व के अन्य स्वरूप भी सामने आ जायेंगे।
श्रीमान ओबामा को श्रीमान रासमोसेन के पथ का अनुसरण करना चाहिये था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धान्त पर जोर देना चाहिये था। उनकी इस असफलता का अर्थ है कि अमेरिका के लोगों को यह स्वीकार करना होगा और अमेरिका सरकार द्वारा रश्दी नियम तथा शरियत के अन्य आयामों को लागू करने के प्रयासों का विरोध करना होगा।