इस्लामी केंद्र जिसे ग्राउंड जीरो मस्जिद कोरडोबा भवन और पार्क 51 कहा जा रहा है उस पर उठा विवाद अमेरका में इस्लाम के भविष्य और उससे अधिक स्तर तक उसका परिणाम होने वाला है।
यह बहस जितनी अप्रत्याशित है उतनी ही असाधारण भी है। कोई भी सोच सकता है कि अमेरिकी राजनीति को स्पर्श करने वाला और इस्लाम को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का कार्य आतंकवाद का कृत्य होगा। या फिर इसकी खोज कि इस्लामवादी अमेरिका की सुरक्षा सेवा में घुसपैठ कर चुके है या फिर सर्वेक्षण के परिणाम से चौंक जायें या फिर राष्ट्रपति का क्षमाप्रार्थी भाषण ।
लेकिन अभी तक किसी भी सांकेतिक घटना ने राजनीति को इस कदर प्रभावित नहीं किया था जितना वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के पूर्व स्थल के निकट एक मस्जिद बनने की सम्भावना ने। आरम्भ में जो एक स्थानीय विषय के रूप में आया वह कुछ ही माह के भीतर राष्ट्रीय बहस में बदल गया और जिसके विदेश नीति पर प्रभाव सम्भावित हैं। इसकी सांकेतिक स्थिति अन्य पश्चिमी देशों की स्थिति की परिपाटी में आती है जो कि वहाँ स्थापित हैं। वर्ष 1989 से ही फ्रांस में महिलाओं के ढके रहने की परम्परा बहस का विषय रहा है। स्विटजरलैंड ने मीनारों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया है। थियो वान गाग की ह्त्या ने नीदरलैंड को प्रभावित किया है और इसी प्रकार मुहम्मद के कार्टून के प्रकाशन ने डेनमार्क को।
यह बात ध्यान देने की है कि इस्लामिक केंद्र की स्थापना को लेकर सप्ताहों तक चले विवाद के उपरांत ही व्यक्तियों, संगठनों और इस प्रकल्प को आर्थिक सहायता देने का विषय सामने आया जो कि निश्चित रूप से इस केंद्र की स्थापना के स्थल से अधिक मह्त्व का है। व्यक्तिगत रूप से ग्राउंड जीरो के साथ उदार मुस्लिम संस्थाओं के जुडाव पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मैं किसी भी इस्लामवादी संस्थान के किसी भी स्थल पर निर्माण पर आपत्ति दर्ज करता हूँ। बिडम्बना है कि ग्राउंड जीरो केंद्र की निकटता एक भावनात्मक विषय बन जाता है और भावनाओं को उकसाता है, इससे लम्बे समय के लिये अमेरिका में मुस्लिमों के हितों को क्षति होती है।
भावनावाद के इस नये युग से अमेरिका में इस्लामवाद के लिये कठिन चरण का आरम्भ होता है। हालाँकि एक संगठित शक्ति के रूप में उनकी शुरूआत 1963में मुस्लिम स्टूडेंट एसोसियेशन के निर्माण से होती है जो कि 1990 के मध्य में राजनीतिक हुआ जबकि वे अमेरिका के सार्वजनिक जीवन में एक शक्ति बनकर उभरे।
मैं इस्लामवादियों से तब से ही लड रहा हूँ और तब स्थितियाँ अत्यंत खराब थीं। उस समय यह मेरी और स्टीवन एमर्सन की अकेले हजारों इस्लामवादियों के विरुद्ध लडाई थी। हमें पर्याप्त बौद्धिक समर्थन नहीं मिलता था न ही धन, मीडिया रुचि या पीछे से राजनीतिक समर्थन था। हमें अत्यंत निराशाजनक स्थिति का सामना करना पड्ता था।
मेरी सबसे निम्नतर स्थिति 1999 में आई जब अमेरिकी विदेश सेवा से सेवामुक्त अधिकारी रिचर्ड कर्टिस ने कैपिटल हिल में " अमेरिका में मुस्लिम समुदाय की सम्भावना" विषय पर बोलते हुए इसकी तुलना सातवीं शताब्दी में अरब में मुह्म्मद की लडाई से की। उन्होंने सीधे सीधे भविष्यवाणी की कि जिस प्रकार एक बार मुहम्मद सब पर भारी पडे थे उसी प्रकार अमेरिका के मुसलमान भी। हालाँकि कर्टिस ने इजरायल के प्रति नीतियों के बदलाव के सम्बंध में बोला था लेकिन उनकी बात में अमेरिका को इस्लामवादियों द्वारा हथिया लेना भी अंतर्निहित था। उनकी भविष्यवाणी पर कोई तर्क नहीं किया जा सकता।
11 सितम्बर की घटना एक खतरे की घण्टी थी और इसने निराशाजनक स्थिति को समाप्त किया। अमेरिका के लोगों ने न केवल उस दिन की भयानक हिंसा की घटना को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी, वरन इस्लामवादियों द्वारा इस आक्रमण के लिये अमेरिका की विदेश नीति को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति को भी और हिंसा के लिये बराक ओबामा के निर्वाचन को या फिर फिर इस बात से इंकार करने पर कि घटना करने वाले मुस्लिम थे या फिर आक्रमण के लिये व्यापक मुस्लिम समर्थन की भी नकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
अमेरिका के विद्वानों, स्तम्भकारों, ब्लाग लिखने वाले , मीडिया के लोगों और कार्यकर्ताओं ने इस्लाम के बारे में जानना आरम्भ किया , इस समुदाय के विकास को जाना एक ऐसा समुदाय जो कि लगभग आंदोलन बन चुका है। इस्लामी केंद्र को लेकर चला विवाद यह प्रदर्शित करता है कि यह एक राजनीतिक शक्ति बन चुका है, जो कि अब कहीं अधिक आक्रोशपूर्ण और पौरूष युक्त रूप से परेशानियाँ खडी कर रहा है जो पिछले दशक के मुकाबले अधिक है।
काफी ऊर्जावान ढंग से पिछले माह पीछे धकेलने की घटना ने मुझे कुछ अंशो में प्रसन्न किया है जो लोग इस्लामवाद और इसके कार्यों को अस्वीकार करते हैं उनकी संख्या बहुमत में है और बढती जा रही है। पिछले पंद्रह वर्षों में पहली बार मैं स्वयं को विजेता पक्ष में अनुभव कर रहा हूँ ।
लेकिन मुझे एक चिंता है और वह है पक्ष का बढता इस्लाम विरोधी तेवर। इस्लामवादियों द्वारा दिग्भ्रमित किये जाने पर कि " उदारवादी इस्लाम" जैसी कोई वस्तु नहीं है मेरे सहयोगी प्रायः इस्लाम ( आस्था) और इस्लामवाद ( एक क्रांतिकारी स्वप्निल विचारधारा जो कि पूरी तरह इस्लामी कानून को लागू करना चाहती है) उसके मध्य अंतर नहीं कर पाते। यह न केवल बौद्धिक त्रुटि है वरन इसमें नीतिगत खामी भी है। सभी मुसलमानों पर निशाना लगाना मूल पश्चिमी अवधारणा के विरुद्ध है , मित्रों को शत्रुओं के साथ मिला देता है और इस तथ्य की ओर से ध्यान नहीं जा पाता कि मुस्लिम अकेले ही इस्लामवाद के मर्ज की दवा हैं। जैसा कि मैं प्रायः कहता हूँ कि क्रांतिकारी या कट्टरपंथी इस्लाम समस्या है और उदार इस्लाम समाधान है।
एक बार यह पाठ पढ लिया जाये तो नई ऊर्जा के साथ इस्लामवाद की पराजय मद्धिम ही सही दिखने लगती है।