"अमेरिकी सरकार का अब तक का सबसे मूर्खतम कार्यक्रम" गत वर्ष जिसे मैंने कहा था कि यह फिलीस्तीनी अथारिटी की सैन्य शक्ति को बढाने का प्रयास है। थोडा कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण है लेकिन यह विवरण इसलिये उपयुक्त बैठता है क्योंकि इन प्रयासों से अमेरिका और उसके इजरायली साथियों के शत्रुओं की लड्ने की क्षमता बढती है।
सबसे पहले , इस कार्यक्रम के बारे में आरम्भ में कुछ जान लें जिसका खाका हाल में सेंटर आफ नीयर ईस्ट पालिसी रिसर्च स्टडी के डेविड बेडेनिन और अर्लेन कुशनेर ने खींचा है।
2004 के अंत में यासिर अराफात की मृत्यु के कुछ ही दिनों के बाद अमेरिकी सरकार ने अमेरिकी सुरक्षा समन्वय विभाग की स्थापना कर फिलीस्तीनी सेना( जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सेना या कुव्वत अल अम्न अल वतनी कहते हैं) को सुधारने, तैनाती , प्रशिक्षण और लैस करने के साथ उन्हें राजनीतिक रूप से उत्तरदायी बनाने के कार्य का आरम्भ किया। इसके पूरे कार्यकाल में इस कार्यालय का नेतृत्व लेफ्टिनेन्ट जनरल कीथ डेटन ने किया। वर्ष 2007 से अमेरिका के करदाताओं ने 100 मिलियन अमेरिकी डालर की सहायता इसके लिये दी है। अमेरिकी सरकार की अनेक एजेंसियाँ इसमें लगी हैं जिसमें कि विदेश विभाग का कूट्नीतिक सुरक्षा विभाग भी शामिल है , गुप्तचर सेवा और सैन्य विभाग की शाखायें भी इसमें शामिल हैं।
फिलीस्तीनी अथारिटी की सेना की कुल संख्या3,000 सैनिकों की है जिसमें कि कुल चार बटालियन हैं जिनकी कुल 2,100 सैनिक संख्या ने जाँच को पार किया है जिसके अनुसार उनके आपराधिक या आतंकवादी सम्बंध नहीं है और ये सभी सैनिक जार्डन के अमेरिकी स्थल पर 1,400 घंटे का प्रशिक्षण ले चुके हैं। वहाँ वे छोटी टुकडियों की रणनीति से आपराधिक स्थल के अन्वेषण से लेकर प्राथमिक चिकित्सा और मानवाधिकार कानून तक का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।
इजरायल की अनुमति से इन सैनिकों को हेब्रान, जेनिन और नाबलुस में तैनात किया गया है। अभी तक यह प्रयोग काफी सफल रहा है और इसकी व्यापक प्रशंसा हुई है। सीनेटर जान केरी ( मैसचुयेट्स के डेमोक्रेट ) ने इस कार्यक्रम को अत्यंत उत्साहवर्धक बताया है और न्यूयार्क टाइम्स के थामस फ्रीडमैन ने अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित इन सैनिकों में इजरायल के लिये सम्भावित फिलीस्तीनी शांति सहयोगियों को देखा है।
इन सब गतिविधियों को देखकर मैं यह भविष्यवाणी करता हूँ कि ये सैनिक इजरायल के लिये युद्ध सहयोगी हैं न कि शांति सहयोगी। इन सेनाओं की अनेक मामलों में भूमिका के बारे में सोचिये:
कोई फिलीस्तीनी राज्य नहीं: डेटन ने अत्यंत गर्व से अमेरिकी प्रशिक्षित सेना को " फिलीस्तीनी राज्य की नींव" बताया है जो कि उस राजनीति के आधार पर कह रहे हैं जिसके अनुसार उनकी अपेक्षा है कि 2011 में यह राज्य अस्तित्व में होगा। यदि ऐसा न हुआ जैसा कि अनेक बार पहले भी हो चुका है कि निर्धारित समय पर फिलीस्तीनी राज्य का उदय न हुआ? डेटन स्वयं को भी सावधान करते हैं " बडा खतरा" इसका पूर्वानुमान तो यही है कि यह नवीन प्रशिक्षित सेना इजरायल के विरुद्ध भी रुख कर सकती है।
फिलीस्तीनी राज्य: फिलीस्तीनी अथारिटी ने कभी भी इस बात से इंकार नहीं किया है कि इजरायल को नष्ट करना उनका उद्देश्य है, फिलीस्तीनी मीडिया वाच द्वारा जो कुछ भी दस्तावेज के रूप में संक्षिप्त रूप में सामने लाया गया है उससे तो इसके झलक सामने आती है। मान लीजिये फिलीस्तीनी अथारिटी को राज्य प्राप्त हो जाता है तो यह अपने ऐतिहासिक लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास नई चमकीली अमेरिकी प्रशिक्षित सैनिक और अस्त्रों से करेगा।
फिलीस्तीनी अथरिटी हमास को पराजित कर देता है: इसी प्रकार यदि फिलीस्तीनी अथारिटी गाजा स्थित अपने इस्लामवादी विरोधी हमास के ऊपर हावी हो जाता है तो यह हमास के सैनिकों को भी अपनी सेना में शामिल कर लेगा और फिर दोनों को एक साथ इजरायल पर आक्रमण का आदेश देगा। विरोधी संगठन अपने स्वरूप में, तरीके में और लोगों के मामले में कुछ अलग सा दिख सकता है लेकिन वे दोनों ही इजरायल को समाप्त करने के उद्देश्य में साझे हैं ।
हमास फिलीस्तीनी अथारिटी को पराजित करता है: यदि फिलीस्तीनी अथारिटी के ऊपर हमास हावी होता है तो यह कम से कम डेटन के कुछ लोगों को अपने में शामिल कर लेगा और उन्हें यहूदी राज्य को नष्ट करने के प्रयास में लगा देगा।
हमास और फिलीस्तीनी अथारिटी एक साथ सहयोग करते हैं: यहाँ तक कि डेटन कल्पना करते हैं कि वे एक ऐसी सेना बना रहे हैं जो कि हमास से लडेग़ी तो जब मिस्र प्रायोजित वार्ता में हमास के साथ सत्ता में सहयोग के लिये फिलीस्तीनी अथारिटी भाग ले रही है तो इस बात की सम्भावना भी बनती है कि अमेरिका प्रशिक्षित सेनायें और हमास एक साथ इजरायल पर आक्रमण कर दें।
बिना किसी इच्छा के बने कानून से उपजे परिणाम भी एक तदर्थ सन्तोष प्रदान कर देते हैं: वाशिंगटन फिलीस्तीनी अथारिटी की सेनाओं को प्रायोजित कर रहा है और तेहरन हमास को प्रायोजित कर रहा है , फिलीस्तीनी सेनायें विचारधारागत रूप से अधिक विभाजित हैं जिससे कि इजरायल को क्षति पहुँचाने की उनकी क्षमता शायद कमजोर पड जाये।
इसे तो स्वीकार करना चाहिये कि डेटन के लोग अभी कार्य में हैं। लेकिन भविष्य कुछ भी हो राज्य, राज्य न हो, हमास फिलीस्तीन अथारिटी को पराजित करे, फिलीस्तीन अथारिटी हमास को पराजित करे या फिर दोनों एक दूसरे के साथ सहयोग करें कुछ भी हो ये सैनिक अपनी बंदूकें इजरायल की ओर तान देंगे। जब यह सब होगा तो डेटन और जिन अन्य मेधावी लोगों ने इजरायल की शत्रु सेना तैयार की है वे पूरी तरह मुकर जायेंगे और कहेंगे, " कोई भी इस परिस्थिति की कल्पना नहीं कर सका था"
ऐसा नहीं है: हमारे मध्य से ही कुछ लोग इसे देख पा रहे हैं और इसके प्रति सावधान कर रहे हैं। इससे भी गम्भीर बात तो यह है कि 1993 के ओस्लो समझौते के बाद भी फिलीस्तीनी नेताओं की इजरायल को नष्ट करने का अभियान समाप्त नहीं हुआ है।
डेटन के इस मिशन को उससे पूर्व रोक दिया जाना चाहिये कि यह अधिक क्षति पहुँचाये। अमेरिकी कांग्रेस को चाहिये कि वह तत्काल प्रभाव से अमेरिकी सुरक्षा समन्वय विभाग की आर्थिक सहायता को काट दे।