अरब इजरायल संघर्ष को चलाने वाले मुद्दों में कोई भी इतना अधिक दुष्प्रचारित, केंद्रीय , प्रमुख , शास्वत, भावनात्मक और जटिल नहीं है जितना कि उन लोगों की स्थिति जो लोग फिलीस्तीनी शरणार्थी के रूप में जाने जाते हैं।
तेल अवीव विश्वविद्यालय के निजा नाचमियास के अनुसार इस अद्भुत मामले का आरम्भ संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के मध्यस्थ फाल्क बर्नाडोटे के समय से होता है। उन्होंने 1948 में फिलीस्तीन छोड कर गये ब्रिटिश मैन्डेट के अरबों का संदर्भ लेते हुए कहा कि चूँकि संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णय से इजरायल की स्थापना हुई जिससे कि ये शरणार्थी बने इस कारण इनकी सहायता का दायित्व भी इसी ( यू एन ) का है। वैसे तो यह विचार अनुचित है लेकिन आज तक यही जीवित और शक्तिशाली है और इस बात की व्याख्या करने में सहायक है कि आखिर संयुक्त राष्ट्र संघ फिलीस्तीनी शरणार्थियों को इतना मह्त्व क्यों देता है जिनका अपना राज्य विलम्बित है।
बर्नडोटे की विरसत को सत्य सिद्ध करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ से फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये विशेष संस्थाओं की नियुक्ति की। इनमें से 1949 में स्थापित फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता और कार्य एजेंसी सबसे मह्त्वपूर्ण है। इसके साथ दोनों ही बाते हैं कि यह अकेला संगठन है जो कि विशेष रूप से विशेष लोगों के सम्बंध में कार्य करता है ( संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग सभी गैर फिलीस्तीनी शरणार्थियों का ध्यान रखता है) और दूसरा यह ( स्टाफ की दृष्टि से) सबसे बडा यू एन संगठन है।
फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता और कार्य एजेंसी या यूएनआरड्ब्ल्यूए अत्यंत स्पष्ट शब्दों में अपने को परिभाषित करता है, " फिलीस्तीनी शरणार्थी वे लोग हैं जून 1946 से मई 1948 मध्य तक फिलीस्तीन जिनका निवास स्थान था और 1948 के अरब इजरायल संघर्ष के चलते जिनकी जीविका और घरबार नष्ट हो गये"। इन शरणार्थियों की श्रेणी ( आरम्भ में जिनमें कुछ यहूदी भी थे) पिछले 64 वर्षों में काफी घट गयी है। यदि यूएनआरडब्ल्यूए की ( अतिरंजित) संख्या को स्वीकार भी कर लें तो मौलिक फिलीस्तीनी शरणार्थियों की संख्या जो कि 750,000 थी उनमें से कुछ ही अंश अब जीवित है 150,000।
यूएनआरडब्ल्यूए के स्टाफ ने तीन महत्वपूर्ण कदम उठाकर विगत वर्षों में फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा को बढाने का कार्य किया है। पहला, वैश्विक परिपाटी के विपरीत इसने उन लोगों को शरणार्थी का दर्जा जारी रखा जिनमें से अनेक अरब के नागरिक भी बन गये( विशेष रूप से जार्डन)। दूसरा, इसने 1965 में ऐसा निर्णय लिया जिसकी अधिक चर्चा नहीं हुई कि " फिलीस्तीनी शरणार्थियों" की परिभाषा बढाते हुए पुरुष शरणार्थियों की अगली पीढी को भी शरणार्थी का दर्जा दे दिया एक ऐसा परिवर्तन जिसके चलते फिलीस्तीनी शरणार्थी दर्जा अगली पीढी को चलता ही रहेगा। अमेरिकी सरकार जो कि इस एजेंसी को सबसे अधिक आर्थिक सहायता देती है उसने इस भारी परिवर्तन का आंशिक विरोध ही किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इसे 1982 में स्वीकृति दे दी , इसके अनुसार " अब फिलीस्तीनी शरणार्थियों की परिभाषा में आधिकारिक रूप से पुरुष फिलीस्तीनी शरणार्थियों की वंशज आते हैं जिसमें कि कानूनी रूप से गोद लिये बच्चे भी शामिल हैं" । तीसरा, यूएनआरडब्ल्यूए ने सूची देखकर छह दिन के युद्ध से शरणार्थियों की सूची बढा दी, आज की तिथि में वे कुल फिलीस्तीनी शरणार्थियों का 1\5 बनते हैं।
इन परिवर्तनों का नाटकीय परिणाम है। अन्य सभी शरणार्थी जनसन्ख्या के विपरीत जहाँ कि लोगों के बस जाने या मर जाने के बाद संख्या घट जाती है फिलीस्तीनी शरणार्थियों की संख्या बढ गयी है। यूएनआरडब्ल्यूए ने इस अजीब रुझान को संज्ञान में लिया है। " एजेंसी ने जब 1950 में कार्य आरम्भ किया था यह 750,000 फिलीस्तीनी शरणार्थियों की आवश्यकताओं के लिये कार्य कर रही थी । आज कुल 5 मिलियन या पाँच करोड शरणार्थी इस एजेंसी की सेवा के लिये तत्पर हैं"। इससे भी आगे यूएनआरडब्ल्यूए के पूर्व महानिदेशक सलाहकार जी लिंडसे यूएनआरडब्ल्यूए की परिभाषा का पाँच मिलियन का आँकडा केवल आधा आँकडा है भविष्य में और भी फिलीस्तीनी शरणार्थी होने की अहर्ता रखते हैं।
दूसरे शब्दों में छह दशक में पाँच गुना संख्या कम होने के स्थान पर यूएनआरडब्ल्यूए के पास शरणार्थियों की संख्या 7 गुना अधिक हो गयी। यह संख्या और भी बढ सकती है क्योंकि यह भावना बढ रही है कि महिला शरणार्थियों को भी शरणार्थी दर्जा मिलना चाहिये। तब तो यहाँ तक होगा कि 40 वर्षों में वास्तविक फिलीस्तीनी शरणार्थी मर चुके होंगे और छ्द्म शरणार्थी भरते चले जायेंगे। इस आधार पर तो " फिलीस्तीनी शरणार्थी" स्तर अनिश्चित ही हो जायेगा। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो जैसा मिडिल ईस्ट फोरम के स्टीवन जे रोसन ने कहा है, " यदि यूएनआरड्ब्ल्यूए के स्तर का अनुपालन हुआ तो सभी मानव फिलीस्तीनी शरणार्थी बन जायेंगे"
क्या फिलीस्तीनी शरणार्थी स्तर कोई स्वस्थ चीज है, इस प्रकार इसके शास्वत होने से शायद की कोई लाभ है। लेकिन इस स्तर का विनाशकारी परिणाम दो पक्षों के लिये है, इजरायल जो कि उस श्रेणी के लोगों से परेशान है जिनके जीवन को इस असम्भव स्वप्न के नीचे दबाकर नष्ट कर दिया गया है कि वे अपने दादा परदादा के देश वापस लौटेंगे और शरणार्थी स्वयं जिनका जीवन पराश्रित, शिकायत, आक्रोश और निर्थकता में अंतर्निहित है।
द्वितीय विश्व युद्ध के शरणार्थी ( जिसमें मेरे माता पिता भी थे) कब के स्थापित हो चुके हैं और बस चुके हैं , फिलीस्तीनी शरणार्थी पहले ही बहुत समय तक इस स्तर में रह चुके हैं और इससे पहले कि यह और अधिक क्षति पहुँचाये इस संख्या को कम करते हुए वास्तविक स्थिति सामने लानी चाहिये