पिछले सप्ताह बिनयामिन नेतन्याहू को एक बडी सफलता मिली जिसकी अधिक चर्चा नहीं हुई जब बराक ओबामा ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण नीतिगत परम्परा के आरम्भ से अपने कदम वापस खींच लिये। इस कदम वापसी से अमेरिका और इजरायल के सम्बंध उस प्रकार विनाश की दिशा में नहीं बढेंगे जिसकी आशंका मुझे हो रही थी।
चार माह पूर्व नये अमेरिकी प्रशासन ने एक नीति का उद्घाटन किया जिसने कि अचानक ही इजरायल की बस्तियों में विकास को रोकने पर अधिक जोर दिया। ( हालाँकि बस्ती शब्द का प्रयोग मुझे प्रिय नहीं है) अमेरिकी अधिकारी इजरायल की आवसीय इमारतों को न केवल पश्चिमी तट में रोकना चाहते थे वरन इसे पूर्वी जेरूसलम में भी रोकना चाहते थे जो कि लगभग तीस वर्षों से कानूनी रूप से इजरायल का अंग है।
विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने 27 मई को इसका आरम्भ किया और घोषणा की कि अमेरिका के राष्ट्रपति " बस्तियों पर रोक देखना चाहते हैं केवल कुछ बस्तियाँ नहीं, केवल प्राकृतिक विकास का अपवाद ही नहीं" सद्भावना बढाने के लिये " इस बिंदु पर अधिक जोर देने की हमारी मंशा है" । 4 जून को ओबामा ने कहा, " अमेरिका इजरायल की बस्तियों को जारी रखने की विधायिकता को स्वीकार नहीं करता….. यह अवसर है कि जब इन बस्तियों को रोका जाना चाहिये" । एक दिन के बाद उन्होंने फिर से दुहराया , " बस्तियाँ शांति में बाधा हैं" । 17 जून को क्लिंटन ने दुहाराते हुए कहा, " हम बस्तियों पर रोक देखना चाहते हैं" और वह भी प्रभावी रूप से।
बस्तियों पर जोर देने का प्रभाव कूटनीति पर होना ही था। प्रसन्न होकर फिलीस्तीन अथारिटी के महमूद अब्बास ने इजरायल के लिये अमेरिका की माँग पर प्रतिक्रिया दी और घोषित किया कि, " अमेरिका विश्व का नेता है……. मैं इस बात की प्रतीक्षा करूँगा कि इजरायल बस्तियों पर रोक लगाये"। यह ध्यान देने योग्य है कि अब्बास ने 1992 से इजरायल के छह प्रधानमंत्रियों से बातचीत की है और प्रत्येक बार किसी भी अवसर पर बस्तियों को रोकने का प्रस्ताव नहीं रखा लेकिन आखिर क्यों वे ओबामा से कम इस माँग को रखें?
ओबामा की इस आज्ञा से इजरायल में उनकी लोकप्रियता से कहीं अधिक लोकप्रियता नेतन्याहू की बढी। इससे भी आगे पश्चिमी तट में बस्तियों के विकास पर तदर्थ रोक लगाने के नेतन्याहू के प्रस्ताव से उनकी लिकुड पार्टी में विद्रोह की स्थिति आ गयी, जिसका नेतृत्व डैनी डेनन ने किया।
ओबामा प्रशासन के मेधावी इस बात को नहीं भाँप पाये कि इस प्रकार दोनों ओर से स्थिति को कठोर बना देने से उनके नौसिखियेपन को यह भारी पड सकता है और दो वर्ष में अरब इजरायल संघर्ष को निपटाने की योजना खटाई में पड सकती है। 22 सितम्बर को उनका वास्तविकता से पाला पडा जब उन्होंने अब्बास और नेतन्याहू को एक साथ प्रायोजित किया और चित्र खिंचवाने वाले इस अवसर पर ओबामा ने बढचढकर कहा कि इजरायल फिलीस्तीन संघर्ष के समाधान की दिशा में , " हमने प्रगति की है" और इस बात के संकेत दिये कि , " इजरायल ने बस्तियों को सीमित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने पर चर्चा की है"
नेतन्याहू द्वारा दी गयी थोडी रियायत के लिये शांत रूप से उनकी प्रशंसा के आठ शब्दों का काफी मह्त्व है:
- अमेरिका और इजरायल के सम्बंधों में अब बस्तियाँ प्रमुख बहस का विषय नहीं हैं और उनकी भूमिका फिर से परेशान करने वाली लेकिन द्वितीय श्रेणी की रह गयी है।
- अब्बास जो कि लगातार बस्तियों पर नियंत्रण की बात कहते आये हैं उनके लिये कुछ भी नहीं बदला और अचानक उन्होंने स्वयं को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पाया जो कि त्रिकोण में घिर गया है।
- ओबामा प्रशासन का केंद्रीय वामपंथी खेमा जो कि जेरूसलम के साथ कार्यव्यवहार का इच्छुक है और जैसा कि मेरे सहयोगी स्टीवन जे रोसेन ने पाया कि इस खेमे ने अति वामपंथी खेमे को पराजित कर दिया है ( जो कि यहूदी राज्य को दबाना चाहता है)
यह बिडम्बना है कि ओबामा के समर्थकों ने उनकी असफलता को भाँप लिया है लेकिन उनके आलोचक इसे भाँपने में असफल रहे हैं। जैसा कि वशिंगटन पोस्ट के सम्पादकीय ने ओबामा द्वारा परिस्थिति का गलत आकलन करने की बात कही है, गार्डियन के स्तम्भकार जोनाथन फ्रीडलैण्ड ने पाया है कि, " ओबामा के मित्र इस बात से चिंतित हैं कि उन्हें उस क्षेत्र में मुँह की खानी पडी है जहाँ कि वे मुद्दों की चुनौती का सामना कर रहे हैं" ।
इसके विपरीत ओबामा के आलोचक बैठक के एक दिन बाद की इस घोषणा पर अधिक जोर दे रहे हैं , " अमेरिका इजरायल के बस्तियों को जारी रखने की विधायिकता को स्वीकार नहीं करता" जो कि हर प्रकार से बस्तियों पर रियायत की लम्बे समय से चली आ रही नीति को उलटने की बात कहते हुए नहीं दिखता। इन आलोचकों में से अनेक जिनका मैं सम्मान करता हूँ उन्होंने कुछ सुखद समाचार नहीं देखे: संयुक्त राष्ट्र संघ के लिये अमेरिका के पूर्व राजदूत जान बोल्टन ने कहा, " ओबामा ने इजरायल का सर काट लिया" जबकि लिकुड पार्टी में नेतन्याहू के आलोचकों ने उनके ऊपर आरोप लगाया कि, "उन्होंने समय से पूर्व ही अमेरिका की नीतिगत परिवर्तन का समारोह मना लिया"। ऐसा नहीं है नीति की हवा कभी भी परिवर्तित हो सकती है, लेकिन पिछले सप्ताह जिस प्रकार वास्तविकता के समक्ष समर्पण किया गया है उससे यह दिख्नता है कि बदलाव सम्भव है।
मैंने इजरायल को लेकर ओबामा की नीति को लेकर गम्भीर चिंता व्यक्त की है इसलिये जब अच्छी सूचना आती है तो इसे मह्त्व दिया जाना चाहिये और इसका उल्लास मनाया जाना चाहिये। बीबी( नेतन्याहू) की प्रशंसा की जानी चाहिये कि वे आगे भी अमेरिकी नीति को सही मार्ग पर ले जाने में सफल हो सकेंगे।
अगला एजेंडा मध्य पूर्व का मुख्य विषय है जिसका नाम है ईरान का परमाणु संवर्धन ।