अरब इजरायल मुद्दे पर ओबामा प्रशासन का कीर्तिमान चेतावनी के स्तर का नौसिखिया और खतरनाक है जिसके कारण मुझे इस मोर्चे पर भविष्य में भयानक असफलता की आशंका है| लेकिन इसने एक पूरी तरह नई और सकारात्मक नीति का अनुपालन किया है जिसके लिए इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए|
इजरायल को फिलीस्तीनयों के मुकाबले एक और रियायत देने के लिए बाध्य करने के स्थान पर मई के अंत में इजरायल के प्रधानमंत्री को इसलिए बुलाया गया की वे , " अरब के देशों को शान्ति के घेरे में लाएं" | अमेरिका के विशेष दूत जार्ज मिचेल और इजरायल के रक्षा मंत्री एहुद बराक ने इसका बीडा उठाया और उन अरब देशों को कूटनीतिक प्रकिया में लाने के प्रयास आरम्भ कर दिए| मध्य जुलाई में विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जोर देकर कहा , " अरब देशों का यह दायित्व है , वे इजरायल के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयास करें और अपने देश के लोगों को इस बात के लिए तैयार करें और वे शान्ति को अंगीकार करें और इस क्षेत्र में इजरायल के स्थान को स्वीकार करें"
एक माह उपरांत बराक ओबामा के घोषणा की उन्हें आशा है , " हम सुरक्षा और उकसावे के मामले में एक आंदोलन का आरंभ देखने की आशा कर रहे हैं जो न केवल इजरायल की तरफ से होगा वरन अरब के देश भी इजरायल के साथ कार्य व्यवहार की इच्छा जताएंगे" फोरेन पोलिसी पत्रिका के ब्लॉगर लौरा रोजेन ने बाद में बताया, व्हाइट हाउस से यह पुष्ट किया गया " ओबामा ने इजरायल के साथ विश्वास बढाने के उपायों को आरम्भ करने के लिए कम से कम अरब और उसके आस पास के सात देशों को पत्र लिखा" ( इनमें बहारें, मिस्र, जार्डन , मोरक्को, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल थे)
ऐसे ही एक पत्र में जो ७ जुलाई को मोरक्को के राजा मोहम्मद छः को लिखा गया था ओबामा ने आशा व्यक्त की अरब के देश मध्य पूर्व में इजरायल को अलग थलग रखने की नीति को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाएंगे तथा अरब जगत और इजरायल के मध्य दूरी को पाटने में मोरक्को एक मुख्य भूमिका निभाएगा| विश्वास बढाने के इन कदमों में अरब देश इजरायल में व्यापार कार्यालय खोलें , अपनी वायु सीमा से इजरायल के विमान उड़ सकें , इजरायल के पर्यटकों को वीजा दिया जाना और अरब के अधिकारी इजरायल के नेताओं से मिल सकें|
इस अपील पर अरब ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी| सकारात्मक रूप से बहरीन के राजकुमार सलमान बिन हमद अल खलीफा ने सुझाव दिया , " सभी पक्षों को एक साथ सद्भाव के कार्य करने होंगे यदि शान्ति को एक अवसर देना है" तथा जार्डन के विदेश मंत्री नसीर जुदेह ने अपनी सरकार का संकल्प बताया , " सही वातावरण बनाना" और अमेरिका के विचार को समर्थन देना" | एक बिना नाम बताए अरब के कूटनीतिक ने सुझाव दिया, " बस्तियों के मामले में सांकेतिक समझौते के बदले कुछ अरब देश कुछ सांकेतिक सद्भाव का बदला देने के लिए तैयार हैं"|
इसके विपरीत सउदी अरब के राजा अब्दुल्लाह ने ओबामा की विश्वास विस्तार की अपील को जून के आरम्भ में राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान निरस्त कर दिया | रोजेन के अनुसार सउदी राजा ने " ओबामा के साथ रियाद में लंबी बातचीत में विरोधी स्वर अपनाया" | यह व्यवहार इताना बुरा था की बाद में सउदी अधिकारियों ने अपने राजा के व्यवहार के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति से क्षमा याचना की| इसी प्रकार मिस्र के विदेश मंत्री अहमद अबुल गीट ने पूछ ही डाला , " क्या बस्तियों के रहते सामान्य सम्बन्ध सम्भव है? इसका उत्तर है नहीं निश्चय ही" | अरब लीग के प्रमुख अमर मूसा ने माना, " जब इजरायल किसी भी महत्वपूर्ण कदम को निरस्त करता है तो ऐसे में संबंधों के सामान्य होने के बात करना असम्भव है"
नकारात्मक प्रतिक्रया के रहते हुए भी वे अरब देश जो की इजरायल के लिए लाभदायक हैं वे कूटनीतिक " शान्ति प्रक्रिया वालों" की क्षति को रोकें|
लगभग दो दशक पूर्व वाल स्ट्रीट जर्नल में जून १९९० को लिखते हुए मैंने इन देशों को शामिल करने की बात कही थी| मैनें पाया था , " जो कुछ इजरायल अरब देशों से चाहता है वही फिलीस्तीन इजरायल से चाहता है मान्यता और विधायिकता| इसी कारण फिलीस्तीनी इजरायल से रियायत चाहते हैं और इजरायल अरब देशों से रियायत चाहता है" |
इस बारे में मेरा सुझाव था दोनों की कुंठाओं को मिला देने से , " इजरायल को वह नहीं मिलता जो वह अरब देशों से चाहता है और फिलीस्तीन के लोग इजरायल से वह नहीं प्राप्त कर पाते जो वह चाहते हैं" मेरा प्रस्ताव था , " इजरायल द्वारा अरब देशों को दी जाने वाली रियायत को फिलीस्तीन को इजरायल की तरफ से दी जाने वाली रियायत से जोड़ दिया जाना चाहिए" | इससे जब इजरायल को अरब देशों से वह मिल सकेगा जो वह चाहता है तब बदले में वह भी फिलीस्तीन को कुछ दे सकता है"
एक उदाहरण के लिए मैंने प्रस्ताव किया जब सउदी लोग इजरायल का आर्थिक बहिष्कार समाप्त कर दें तो बदले में इजरायल फिलीस्तीन के लोगों को पश्चिमी तट के भूगर्भित जल पर पहुंच की छूट दे दें" | " इस संतुलित प्रकार से पहल करने का दायित्व पूरी तरह अरब के देशों पर चला जाता है" |
लंबे समय तक इजरायल फिलीस्तीन समझौते के प्रयासों के बाद जो काफी थकाने वाले, पलट कर वार करने वाले रहे यह देखना सुखद है अंत में अरब देशों को इस बतचीत में शामिल किया गया| मेरा अब भी मानना है इससे पहले उपयोगी ढंग से बातचीत हो उससे पूर्व फिलीस्तीनियों का परास्त होना आवश्यक है, लेकिन अरब देशों को शामिल करने से संतुलन बनाता है और क्षति की संभावना कम होती है|