क्या इजरायल की कुल जनसंख्या के 1\5 अरब यहूदी राज्य के प्रति स्वामिभक्त हो सकते हैं?
मस्तिष्क में इसी प्रश्न के साथ हाल में मैंने इजरायल के अरब निवासियों वाले क्षेत्र( जफा, बका अल गराबिया, उम्म अल फहम , हायफा , एकर, नजारेथ, गोलन पहाडियाँ , जेरूसलम) का दौरा किया और साथ ही मुख्यधारा के अरब और यहूदी इजरायलियों के साथ वार्ता की।
मुझे बहुत से अरब भाषी नागरिक मिले जो कि यहूदी राजनीति में जीवन व्यतीत करने को लेकर स्वयं में संघर्ष की स्थिति में हैं। एक ओर तो वे देश के विशेषाधिकार सम्पन्न धर्म के रूप में यहूदी धर्म का विरोध करते हैं , उस कानून का जो कि केवल यहूदियों को अपनी इच्छा के अनुसार आप्रवास का अधिकार वापस लौटने के कानून के अंतर्गत देता है, राज्य की मुख्य भाषा हिब्रू हो इसका विरोध करते हैं, ध्वज में डेविड के तारे को पसंद नहीं करते , राष्ट्रगान में " यहूदी आत्मा" उन्हें पसंद नहीं है। दूसरी ओर वे देश की आर्थिक सफलता की प्रशंसा करते हैं , स्वास्थ्य सुविधा के स्तर , कानून के शासन और चलायमान लोकतंत्रकी भी सराहना करते हैं।
इस संघर्ष की अनेक अभिव्यक्तियाँ भी हैं। छोटी, अशिक्षित और 1949 में पराजित अरब इजरायली जनसंख्या दस गुना अधिक बढी है , आधुनिक कुशलता प्राप्त कर ली है और अपने आत्मविश्वास को फिर से प्राप्त कर लिया है। इस समुदाय से कुछ लोगों ने अनेक उत्तरदायित्व और सम्मान के पद भी प्राप्त किये हैं, जिसमें सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश सलीम जोबरान, पूर्व राजदूत अली याह्या , सरकार के पूर्व मंत्री रालेब मजादेले और पत्रकार खालिद अबू तोमेह शामिल हैं।
लेकिन समाहित हुए ये कुछ लोग उस जनसमूह की तुलना में फीके हैं जो कि स्वयं को भूमि दिवस, नकबा दिवस और भविष्य दृष्टि रिपोर्ट के साथ जोड्ते हैं। रहस्योद्घाटन तो यह है कि अधिकतर अरब इजरायली सांसद जैसे कि अहमद तीबी और हनीन जुवाबी इजरायल विरोध या जायोनिज्म विरोध के मुखर वक्ता हैं। अरब इजरायली धीरे धीरे अपने यहूदी साथियों के विरुद्ध हिंसा में लिप्त हो रहे हैं।
निश्चित रूप से अरब इजरायली दो विरोधाभाष को जी रहे हैं। यद्यपि इजरायल में उनके साथ भेदभाव होता है पर साथ ही वे किसी सार्वभौम अरब देश( मिस्र या सीरिया) में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों से कहीं अधिक अधिकार व स्थिरता का सुख भोग रहे हैं। दूसरा वे उस देश के नागरिक हैं जिसे कि उनके साथी अरब दूषित करते हैं और नष्ट करने की धमकी देते हैं।
इजरायल में मेरी बातचीत से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इन जटिलताओं के चलते यहूदियों और समान विचार के अरब में अरब इजरायली असंगत अस्तित्व के पूर्ण परिणामों पर चर्चा हो रही है। अतिवादी सांसद और हिंसक नवयुवकों को प्रतिनिधि न मानकर चंद कट्टरपंथी मान कर निरस्त कर दिया जाता है। इसके बजाय हमें सुनने में आता है कि यदि केवल अरब इजरायली ही अधिक सम्मान प्राप्त करें व केंद्रीय सरकार से अधिक नगर निकाय आर्थिक सहायता प्राप्त करें तो वर्तमान असंतोष कम हो सकता है, लोगों को इजरायल के अच्छे अरब तथा पश्चिमी तट और गाजा के अरब को बुरा अरब के रूप में विभाजित किया जाये साथ ही यह चेतावनी भी दी जा रही है कि यदि अरब इजरायलियों को आत्मसात नहीं किया गया तो वे फिलीस्तीनियों के साथ मिल जायेंगे।
मेरे मध्यस्थों ने इस्लाम के बारे में कोई प्रश्न नहीं किया । इसे अनुदार माना गया कि इस बात का उल्लेख किया जाये कि मुस्लिम ( जो कि अरब इजरायल का लगभग 84 प्रतिशत हैं) पूरी तरह इस्लाम से शासित हैं। इस्लामी कानून को लागू करने के अभियान पर कोई चर्चा ही नहीं हुई और लोग तत्काल दूसरे विषयों की ओर चले गये।
इस अवहेलना से मुझे 2002 से पूर्व के तुर्की की याद आती है जब मुख्यधारा के तुर्क यह मान बैठे थे अतातुर्क की क्रांति स्थायी है और यह अनुमान कर लिया था कि इस्लामवादी चंद कट्टरपंथी होकर रह जायेंगे। वे बहुत गलत सिद्ध हुए अब जबकि 2002 के अंत में लोकतांत्रिक ढंग से इस्लामवादियों के सत्ता में आने के एक दशक पश्चात निर्वाचित सरकार ने ठोस रूप से इस्लामी कानून को क्रियान्वित किया है और स्वयं को एक नवओटोमन क्षेत्रीय शक्ति बना लिया है।
मैं इजरायल में भी इसी प्रकार के विकास की भविष्यवाणी करता हूँ जैसे जैसे अरब इजरायल विरोधाभाष अधिक गम्भीर होगा , इजरायल के मुस्लिम नागरिक संख्या में अधिक होते जायेंगे , क्षमता और आत्मविश्वास में बढ्ने के साथ साथ देश के जीवन के साथ आत्मसात होते जायेंगे तथा यहूदी सार्वभौमिकता को उखाड फेंकने की मह्त्वाकाँक्षा भी अधिक जाग्रत होगी। इससे यही संकेत मिलता है कि जैसे जैसे इजरायल बाहरी खतरे से मुक्ति प्राप्त करता जायेगा अरब इजरायली कहीं अधिक बडा खतरा बनते जायेंगे। मेरी भविष्यवाणी है कि ये थियोडोर हर्ल्ज और लोर्ड बालफोर की दृष्टि के यहूदी गृहभूमि में आत्यंतिक बाधा हैं।
तो फिर क्या किया जा सकता है? लेबनान के ईसाई सत्ता से इस कारण बाहर हो गये क्योंकि उन्होंने बडी संख्या में मुसलमानों को शामिल कर लिया और आनुपातिक रूप से जनसंख्या में वे कम हो गये और देश का शासन नहीं कर सके। इस शिक्षा के आधार पर इजरायल की पहचान और सुरक्षा के लिये यह आवश्यक है कि वे अरब नागरिकों को कम करें इसके लिये उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को कम करने की आवश्यकता नहीं है और न ही उन्हें वापस भेजे जाने की आवश्यकता है केवल इजरायल की सीमा को समायोजित करने के लिये कदम उठाये जायें , सीमांत क्षेत्रों में घेरेबंदी की जाये ,पारिवारिक मिलन के लिये नीतियों को कठोर किया जाये , पूर्व नटाल नीतियों को बदला जाये तथा शरणार्थियों के प्रार्थनापत्रों की सावधानीपूर्वक जाँच की जाये।
बिडम्बना है कि इन कार्यों का सबसे बडा परिणाम यह होगा कि अधिकतर अरब इजरायली मुखर रूप से यहूदी राज्य के अस्वामिभक्त नागरिक बने रहेंगे ( फिलीस्तीनी राज्य के स्वामिभक्त नागरिक के विपरीत) । इससे आगे अनेक मध्य पूर्वी मुस्लिम इजरायली बनने की आकाँक्षा रखते हैं ( जिसे मैं मुस्लिम आलिया कहता हूँ) । मेरे अनुसार इन प्राथमिकताओं से इजरायल की सरकार कठिन स्थिति में आ जायेगी और इसके लिये पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं दे पायेगी जिसके चलते आज जो कुछ शांतिपूर्ण दिख रहा है वह कल के लिये समस्या बन जायेगा।