25 फरवरी 1994 को बारच गोल्डस्टैन जो कि अमेरिकी मूल का इजरायली डाक्टर था हेब्रान की केव आफ द पैट्रियार्क मस्जिद में गया और अपने स्वचालित हथियार से 29 मुसलमानों की ह्त्या कर दी और अंत में स्वयं भी मारा गया। इस नरसंहार से मुसलमानों में षडयंत्रकारी सिद्धांत को बल मिला और उनके क्षेत्रों में दंगे भी हुए और इजरायल की सरकार पर आरोप भी लगाया गया कि वह गोल्डस्टैन के साथ खडी है जबकि इजरायल की सरकार ने इस घटना की निंदा भी की।
चार दिनों के उपरांत 1 मार्च को लेबनान मूल के न्यूयार्क के चालक राशिद बज़ ने हसीदिक यहूदी बालक को ले जा रहे वाहन पर ब्रूकलिन पुल पर बंदूक से दो बार गोली दागी जिसमें कि 16 वर्षीय येशिवा छात्र अरी हलबर्स्टाम की मृत्यु हो गयी। बज़ को तत्काल पकडा गया दोषी सिद्ध किया गया और 141 वर्ष के लिये जेल में डाल दिया गया। परिस्थितिजन्य साक्ष्य दोनों घटनाओं में परस्पर सम्बंध दिखा रहे थे क्योंकि बाज़ अरबी भाषा की मीडिया में गोल्डस्टैन के आक्रमण सम्बंधी समाचारों से परिचित था, वह बे रिज के भडकाऊ इस्लामिक केंद्र में भी शामिल हुआ था और ऐसे लोगों से घिरा था जो कि यहूदियों के विरुद्ध मुस्लिम आतंकवाद को प्रोत्साहित करते थे। इसके अतिरिक्त उसके मित्रों ने संकेत दिया कि बाज़ हेब्रान में हुए आक्रमण से बुरी तरह क्रोधित था और उसके विधिक सहायक के मनोचिकित्सक सलाहकार डगलस एंडरसन ने गवाही दी कि बज़ इस घटना को लेकर आक्रोश में था। " वह पूरी तरह आक्रोश में था यदि हेब्रान में ऐसा न हुआ होता तो न्यूयार्क में भी ऐसा नहीं होता"
इसके बाद भी यह पूरी तरह स्पष्ट है कि गोल्डस्टैन और बज़ के मध्य सम्बंध स्थापित नहीं हो सका क्योंकि कहा गया कि उसकी हिंसा लेबनान में उसके अनुभवों से उत्पन्न अवसाद का परिणाम था। इसके साथ ही अनेक साक्ष्यों के बाद भी फेडरल ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेशन ने ब्रूकलिन पुल की घटना को सड्क की उत्तेजना बता दिया।केवल हल्बर्स्टम की माता के वर्षों के प्रयासों के उपरांत एफ बी आई ने वर्ष 2000 में बज़ के आक्रमण को फिर से आतंकवाद के रूप में वर्गीकृत किया।
पूरा मामला तो अभी कुछ दिन पूर्व समाप्त हुआ जब वर्ष 2007 में बज़ ने जो कुछ स्वीकार किया था वह न्यूयार्क पोस्ट के एक लेख में सार्वजनिक हुआ । इसमें बज़ ने गोल्डस्टैन की घटना के अपने ऊपर पडे प्रभाव को स्वीकार किया और इस बात को भी स्वीकार किया कि उसने विशेष रूप से यहूदियों को निशाना बनाया और उसने मैनह्ट्टन से लेकर पुल तक कुल दो मील तक हसीदिक बच्चों का पीछा किया । जब उससे पूछा गया कि क्या अश्वेत या लैटिन लोगों से भरे वाहन पर भी वह बंदूक चलाता तो उसने उत्तर दिया, " नहीं , मैंने उनपर गोली इसलिये चलायी क्योंकि वे यहूदी थे"
देर से की गयी इस स्वीकारोक्ति से इस्लामवादी आतंकवाद के सम्बंध में राजनेताओं, कानून प्रवर्तन और प्रेस से जुडी समस्या की ओर संकेत जाता है और वह है इसे स्वीकार करने के स्थान पर इसे हत्या बता देना।
अभी हाल में इस प्रकार की अवहेलना का विद्रूप स्वरूप फ्रांस के तूलोस में मोहम्मद मेराह के मामले में सामने आया जब सभी अधिकारी इस बात के लिये उतावले हो रहे थे कि तीन सैनिकों और चार यहूदियों की ह्त्या करने वाला कोई गैर मुस्लिम है। जैसा कि मेरे सहयोगी एडम टर्नर ने डेली कालर में कहा, " कुलीन पश्चिमी सार्वजनिक अधिकारी और मीडिया के द्वारा ह्त्यारे के बारे में अनुमान लगाया जा रहा था इससे पूर्व कि उसकी वास्तविक पहचान सामने आ पाती और यह पह्चान का अनुमान पूरी तरह इस विश्वास पर आधारित था कि वह श्वेत है और यूरोपियन नव नाजी है"। केवल जब मेराह ने स्वयं ही अपने अपराध के प्रति बडबोलापन पुलिस को दिखाया और अपने कार्य के वीडियो अल जजीरा को भेजे तभी अन्य सिद्धांत समाप्त हुए।
बज़ और मेराह के उदाहरण उस इस्लामवादी आतंकवाद की अवहेलना की व्यापक परिपाटी में उचित बैठते हैं जिसका आरम्भ मैंने 1990 में रब्बी मीर कहाने की ह्त्या से खोजा है, जिसकी ह्त्या न्यूयार्क सिटी में एल सईद नोसेर ने की थी जिस आक्रमण को पुलिस विभाग के प्रमुख ने अवसाद का परिणाम बताया था। उसके बाद हर बार इस्लामवादी आतंकवाद के लिये अधिकारियों ने इसी प्रकार के क्षम्य तर्क ढूँढ लिये हैं जैसे कि " कार्य स्थल का विवाद", " तनावपूर्ण पारिवारिक सम्बंध" , " नशीली दवाओं का प्रयोग" , "व्यवहारगत समस्या तथा " अकेलापन और अवसाद"
सबसे चिंतित करने वाली प्रवृत्ति तो इस्लामवादी आतंकवाद की व्याख्या कम बौद्धिक क्षमता के साथ जोडने वाली है। जैसा कि मिडिल ईस्ट क्वार्टली के वर्तमान संस्करण में टेरी ब्लूमेनफील्ड ने पाया है, " जो मुसलमान धर्म के नाम पर लोगों को मारते हैं वे प्रायः पश्चिमी न्यायालयों में इस आधार पर छूट जाते हैं कि वे मानसिक स्तर पर अस्थिर हैं या इनकी मानसिक स्थिति असामान्य है" । निश्चित रूप से पश्चिमी न्यायालयों में जिहादी ह्त्या को बचाव पक्ष के वकील मानसिक असामान्यता से जोडते हैं।
इस्लामवादी आतंकवाद के धार्मिक और विचारधारागत जडों की अवहेलना करने की काफी बडी कीमत चुकानी पड्ती है, कहाने की हत्या की जाँच पूरी तरह नहीं करने का अर्थ है कि उस सामग्री की अवहेलना करना जिसके चलते 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बम आक्रमण को रोका जा सकता था और मेहर की आशंका से शीघ्रतापूर्वक लोगों की जान बचायी जा सकती थी । इस्लामवाद का सामना किया जाना चाहिये ताकि हम भविष्य की हिंसा से स्वयं को बचा सकें।