इस माह के आरम्भ में एक लेख Israel's Strategic Incompetence in Gaza में मैंने तीन बिंदु उठाये थे , इजरायल के नेतृत्व ने अपनी ओर से ही गाजा में अपने लिये समस्यायें खडी कर लीं, हमास के विरुद्ध युद्ध का अर्थ है कि ईरान के परमाणु हथियार के बडे खतरे की अवहेलना करना, तथा अल फतह को सशक्त करने के लक्ष्य का कोई मतलब नहीं बनता।
इन तर्कों को पाठकों ने ध्यानपूर्वक पढा और जिन्होंने रोचक बिंदु रखे हैं उनका उत्तर दिये जाने की आवश्यकता है। प्रश्नों को अधिक स्पष्ट बनाने के लिये थोडा बहुत सम्पादन किया गया है:
आपका लेख काफी निराशाजनक था ।क्या आपके पास कोई आशाजनक विकल्प है?
इन दिनों मध्य पूर्व से बुरे समाचार ही आ रहे हैं। दो दुर्लभ सकारात्मक घटनाक्रम अर्थव्यवस्था को लेकर हैं: बिन्यामिन नेतन्याहू द्वारा किये गये सुधारों का परिणाम है कि इजरायल ने स्वयं को आरम्भिक दिनों के समाजवाद से निकाल लिया है: तथा ऊर्जा का मूल्य प्रायः दो तिहाई कम हो गया है।
यह स्वीकार करते हुए भी कि आपके विचार सत्य हैं इसका शीर्षक और तेवर केवल इजरायल के शत्रुओं को प्रोत्साहित करेगा। अधिक सतर्क भाषा से इजरायल को अधिक लाभ होता"
मैंने रचनात्मक आलोचना का प्रयास किया। यदि इजरायल के शत्रु कम चाटुकरिता की भाषा की व्याख्या मे प्रोत्साहित होते हैं तो भी मेरी अपेक्षा होगी कि मैं इजरायल को उसकी भूलों की ओर ध्यान दिला सकूँ ।
" इजरायल का शत्रु उसका गद्दार नेतृत्व है जो कि जान बूझकर यहूदी राज्य को नष्ट करने तथा विश्व यहूदियत पर एक और नरसंहार लादने का प्रयास कर रहा है । इसे स्पष्ट न करके मात्र अयोग्यता को समस्या बताना नेतृत्व को सही स्थिति से अवगत नहीं कराना है और स्वयं ही गद्दार बनना है"
यदि कोई इजरायल के नेतृत्व को "जो कि जान बूझकर यहूदी राज्य को नष्ट करने तथा विश्व यहूदियत पर एक और नरसंहार लादने का प्रयास कर रहा है" नहीं देखने से इजरायल के लिये गद्दार है तो मुझे यह मानें। मैं नेतृत्व को अयोग्य अक्षम मान रहा हूँ लेकिन मन से खराब नहीं, आत्मघाती से कुछ कम।
" गाजा से निकलने की एक रणनीति यह हो सकती है कि इजरायल मिस्र से एक पट्टी पट्टे पर ले जिसे कि बफर क्षेत्र के रूप में प्रयोग किया जाये"
विचार अत्यंत उत्तम है परंतु काइरो इस पर सहमत नहीं होगा।
" आपके विश्लेषण में इजरायल को गलत ढंग से स्वतन्त्र खिलाडी बताया गया है जबकि इजरायल की कार्रवाई को सीमित करने में अमेरिकी सरकार की प्रमुख भूमिका है"
मैंने गाजा से वापसी के संदर्भ में इस बिंदु को स्पर्श किया और फिर अस्वीकार किया कि Sharon's Gaza Withdrawal – Made in Washington? परंतु आपका आग्रह गाजा से कहीं अधिक व्यापक है और इसकी पूरी व्याख्या की जानी चाहिये।
मेरा संक्षिप्त उत्तर: इस विचार में कि वाशिंगटन जेरूसलम पर अपने विचार थोपता है यह भी अंतर्निहित है कि इजरायल के नेतृत्व को पता है कि उसे क्या करना है पर ऐसा कर नहीं पाता: दुर्भाग्यवश कालातीत विचार है।
हाँ 1973 से 1993 तक निश्चित रूप से यह परिपाटी थी । ओस्लो समझौते के पश्चात से हालाँकि इजरायल नेतृत्व अपने अमेरिकी सहयोगी से पूरी तरह सहमत नहीं रहा है परंतु कुछ अवसरों पर स्वयं आगे बढकर निर्णय लिया है जैसे कि 1993 में ओस्लो ही, 2000 में लेबनान से वापसी, 2000 में कैम्प डेविड II, 2001 का ताबा समझौता तथा 2005 की गाजा से वापसी।
आरोन लर्नर ने इसे संक्षेप में कहा American pressure is not the problem और तर्क दिया कि, " पहले इजरायल के कूटनीतिक प्रयासों को निश्चित रूप से बिना किसी अपवाद के अमेरिका की सहमति से चलाया जाता था" उसके उपरांत उन्होंने उदाहरण भी दिये।
" यदि इजरायल के समाज का सबसे योग्य तत्व सेना इजरायल का नेतृत्व करे?"
परंतु 1993 से जब से शक्ति संतुलन से तुष्टीकरण की ओर मूलभूत परिवर्तन हुआ है तब से तो सेना ही अधिकतर नेतृत्व कर रही है राबिन, बराक तथा शेरोन जो कि पिछले 16 वर्षों से मुख्य भूमिका में रहे हैं और उनके साथ ही अनेक पूर्व जनरल भी देश में सार्वजनिक जीवन में रहे हैं। इजरायल को भी विश्व की भाँति ही सिविल सोसाइटी द्वारा उत्पादित वामपंथ के प्रति झुकाव को अंगीकार करना होगा।
" यह समय नहीं है कि पीछे मुडकर देखा जाये और एक दूसरे पर दोषरोपण किया जाये वरन यह समय है कि आगे बढा जाये और समस्या का समाधान किया जाये"
भूलों के लिये उत्तरदायित्व निर्धारित करने का अर्थ यह नहीं है कि किसी पर अँगुली उठाई जा रही है वरन यह इसलिये आवश्यक है कि ऐसी भूल की पुनरावृत्ति न हो।
"इजरायल को क्या करना चाहिये?
इस माह एक और स्तम्भ Solving the 'Palestinian Problem में मैंने जार्डन और मिस्र के विकल्प की बात की जहाँ कि पहला पश्चिमी तट को और दूसरा गाजा पर नियंत्रण कर ले।
" आपने पूछा है कि ओल्मर्ट ने अपेक्षाकृत कम खतरनाक हमास से संघर्ष क्यों किया जबकि ईरान का परमाणु हथियार अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न करता है? इसका उत्तर न्यूयार्क टाइम्स से 11 जनवरी के लेख में है U.S. rejected aid for Israeli raid on Iranian nuclear site जो कि बताता है कि अमेरिका की सरकार ने नतनाज में परमाणु संयन्त्र ध्वस्त करने से इजरायल को रोका था।
Israeli Jets vs. Iranian Nukes की व्याख्या से सिद्ध होता है कि इजरायल की सुरक्षा सेना को इराक को पार करने या ईरान के लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिये अमेरिकी सहमति की आवश्यकता नहीं है।
"आलोचना करना अत्यंत सरल है; आपको लगता है कि आप कुछ बेहतर कर सकते हैं। यदि ऐसा है तो क्यों नहीं इजरायल जाकर वहाँ राजनीतिक जीवन में भाग लेते हैं?
जिस प्रकार खेल समीक्षक होने के लिये आवश्यक नहीं कि वह मैदान में उतरे वैसे ही मध्य पूर्व के विश्लेषक के लिये आवश्यक नहीं कि वह रणनीतिक विश्लेषण से पूर्व इजरायल की राजनीति के चिकने खम्भे पर चढे ही। वैसे अमेरिका में रहते हुए अपने विचार व्यक्त करने की मेरी वैधानिकता के लिये"May an American Comment on Israel?" देखें।
"आपका उन वैकल्पिक विचारों पर क्या कहना है जो कि चर्चा में हैं जो कि दोनों ही कहते हैं कि कोई फिलीस्तीनी राज्य गठित नहीं होना चाहिये तथा फिलीस्तीनी अरबवासियों को इजरायल के अतिरिक्त अन्य किसी भी अपने द्वारा चुने स्थान पर रहने के लिये धन दे दिया जाये।Israeli Initiative को केंसेट के सदस्य बेनी एलोन ने प्रस्तुत किया है तथा अन्य Jerusalem Summit, है जिसे कि तेल अवीव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मार्टिन शेरमान ने लिखा है।
मैं इन्हें रचनात्मक प्रयास मानकर करतल ध्वनि से इनका स्वागत करता हूँ। एलोन योजना मेरे जार्डन मिस्र विचार के समकक्ष ही है, केवल अपवाद यह है कि यह जार्डन को अकेले, " फिलीस्तीनियों का वैधानिक प्रतिनिधि मानती है" तथा पश्चिमी तट पर इजरायल की सार्वभौमिकता बरकरार रखती है, जो मैं नहीं कहता। जेरूसलम शिखर बैठक योजना , " उदार स्थानांतरण और पुनर्वास पैकेज" की बात करती है ताकि फिलीस्तीनी इजरायल नियंत्रित क्षेत्र से चले जायें मुझे नहीं लगता कि इसे अधिक समर्थन मिलेगा।
" इजरायल में वास्तविक नेता हैं। मोशे फीग्लिन के बारे में आपका क्या कहना है?"
वह इजरायल की बहस में नये विचार सामने लाते है परंतु वे इजरायल के राजनीतिक जीवन के ऊपरी सतह पर नहीं हैं, इसे मैं अपने लेख में कहता हूँ इसलिये उन्हें अपने साधारणीकरण में शामिल नहीं करता।
" लिकुड नेता बिन्यामिन नेतन्याहू इन सबके मध्य कहाँ हैं? क्या वे कट्टरपंथी नहीं है कि जो किसी भी कारण से इजरायल की भूमि दिये जाने पर विरोध करते हों?"
यदि मुझे इजरायल के चुनाव में भाग लेना होता तो मैं अगले महीने उन्हें मत देता। हमने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में 1996 से 1999 तक देखा है और इस कार्यकाल को मैं असफल मानता हूँ ( इसके विपरीत वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सफल रहा)। विशेष रूप से सीरिया के सम्बंध में उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा ( जिसे 1999 के एक लेख में मैं लोगों के सामने लाया था The Road to Damascus: What Netanyahu almost gave away) । सम्भवतः नेतन्याहू एक नेता के तौर पर परिपक्व हो गये हैं क्योंकि " एक बार मूर्ख बनाने पर आपको शर्म आनी चाहिये दो बार मूर्ख बनाने पर मुझ पर शर्म आनी चाहिये" ऐसा ही है अन्यथा लिकुड किसी नये चेहरे को सामने लाती।
" अब सेवानिवृत्त जनरल मोशे बोगी यालोन राजनीति में आये हैं। मुझे लगता है कि इजरायल के भविष्य के लिये आशा है"
मैं यालोन का प्रशंसक हूँ और आशा करता हूँ कि भावी सरकार में उन्हें महत्वपूर्ण पद मिलेगा। वह किसी भी अन्य इजरायल के नेता से अधिक रणनीतिक समझ रखते हैं। उदाहरण के लिये जब उनसे पूछा गया कि आपकी विजय की परिभाषा क्या है तो यालोन ने उत्तर दिया , " फिलीस्तीनियों के मन में गहरे तक भर जाना कि आतंकवाद और हिंसा से हम पराजित नहीं हो सकते और इससे हम झुकने वाले नहीं"
परंतु जब उनकी मुख्य व्याख्या Israel and the Palestinians: A New Strategy पर बारीक नजर डाली जाती है तो ऐसा लगता है कि यालोन इसी प्रकार की विजय फिलीस्तीनियों पर नहीं चाहते । इसके बजाय वे फिलीस्तीनी अथारिटी को सुधारना चाहते हैं ताकि यह राज्य क्षेत्र पर बेहतर नियंत्रण रख सके, कानून प्रवर्तन को प्रभावी बना सके, इसकी न्यायिक शक्ति को शक्तिशाली कर सके, लोकतांत्रिक भावना प्राप्त कर सके और अपनी जनसंख्या के जीवन स्तर को सुधार सके।
वे लिखते हैं "फिलीस्तीनी समाज के पुनर्वास के लिये आर्थिक सुधार , एक प्रभावी कानून का शासन तथा लोकतंत्रीकरण अनिवार्य शर्तें हैं" । उनका निष्कर्ष है उनके विचार के आधार पर फिलीस्तीनी समाज का पुनर्गठन " भविष्य के समाधान के एक ऐसा आधार बन सकता है जो कि उन आशाओं पर खरा उतर सकता है जिन्हें कि ओस्लो समझौते में लिखा गया था" मेरा निष्कर्ष है कि यालोन का उद्देश्य विजय नहीं है वरन ओस्लो की भाँति एक और समझौता और संकल्प प्रस्ताव।
" आखिर इजरायलवासियों को क्या हो गया है जो कि अब चतुर योद्धा नहीं रह गये हैं?"
अच्छा प्रश्न है। इसका उत्तर आधे वर्ष पूर्व मैंने दिया था, " रणनीतिक रूप से मेधावी परंतु आर्थिक दृष्टि से घाटे का राज्य अब ठीक इसका उल्टा हो गया है। कल के गुप्तचर मास्टरमाइन्ड , सैन्य मेधा तथा राजनीतिक धुरन्धर अब अधिक तकनीकी हो गये हैं जिन्होंने कि देश को भ्रष्ट , संकीर्ण सोच के मस्तिष्क वालों के हाथ में सौंप दिया है"
परंतु यह पूरी स्थिति का विश्लेषण नहीं करता जो कि थकावट और अहंमन्यता के मिश्रण से तैयार है। इस समस्या का सही विश्लेषण योराम हाजोनी ने The Jewish State: The Struggle for Israel's Soul में तथा केनेथ लेविन ने The Oslo Syndrome: Delusions of a People Under Siege में किया है।
" डैनियल पाइप्स को इजरायल तथा उसके पडोसी अरब के मध्य तनाव कम करने का प्रयास करना चाहिये"
इस तनाव को कम करने का प्रयास 1973 से Kilometer 101 समझौते से लगातार होता आ रहा है। वे असफल हुए क्योंकि उन सबने अरब इजरायल संघर्ष का अत्यंत नाजुक तरीके से अंतिम समाधान निकालने का प्रयास किया। मैं निर्णायक समाधान का पक्षधर हूँ क्योंकि अकेले यही संघर्ष का समाधान कर सकता है।