जबकि पिछले दशक में मुस्लिम जगत राजनीतिक अतिवाद, मजहबी रुग्णता , आर्थिक अप्रासंगिकता, जनसंहारक हथियार , अराजकता, तानाशाही तथा गृह युद्ध के चलते पतनोन्मुख होता गया तो वहीं दुबई इन सबसे अलग अपनी पहचान बनाता गया।
शेख मोहम्मद बिन रशीद अल मखतूम के नेतृत्व में दुबई ने ( संयुक्त अरब अमीरात की सात राजनीति में से एक) ने विश्व भर से लोगों को पैसा बनाने को आमन्त्रित किया और लोगों ने ऐसा किया इसकी 14 लाख की जनसंख्या में 83 प्रतिशत विदेशी हैं। अमीरात ने अत्यंत चतुराई से अपने आस पास ऊर्जा क्षेत्र के विस्फोट का उपयोग किया और उसकी महत्वाकाँक्षा मात्र वैश्विक होने की नहीं है वरन वैश्वीकरण में एक नेता बनने की है। दुबई अधिक प्रसिद्ध विश्व के पहले 7 स्टार होटल तथा विश्व की सबसे ऊँचे भवन के साथ हुआ जिसे कि नयेपन के साथ बनाया गया है। ( इस भवन के प्रचार में कहा गया कि यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समस्त विश्व के लिये विकास का प्रेरक उदाहरण है)
परंतु यदि दुबई सामान्य मुस्लिम दिशा से अलग दिख रहा है तो यह अस्थाई स्थिति ही है।
आर्थिक, सांस्कृतिक और खेल के तीन अलग अलग क्षेत्रों में हाल के घटनाक्रम यह प्रदर्शित करते हैं कि यह लघु राज्य किस प्रकार गरीब और अलग थलग मुस्लिम जगत के समान ही है।
अर्थशास्त्र
2000 के आरम्भ के बुलबुले में दुबई सबसे अग्रणी था जो कि बुलबुला आधारित अर्थव्यवस्था का विशुद्ध उदाहरण था जो कि बढी कीमतों, कृत्रिमरूप से बढावा दिये जाने तथा देशों के मध्य निवेशकों की नीति का परिणाम था। 2006 में पहले ही वित्तीय लेखक युसुफ इब्राहिम ने इसकी बढी अर्थव्यवस्था के कारणों की खोज कर ली थी।
तेल का जो विशाल धन एकत्र हो रहा था वह सभी रियल एस्टेट की सट्टेबाजी की ओर गया। इससे निर्माणकर्ताओं का उद्यम बढा और उनके पश्चिमी और एशिया के ठेकेदारों को भी काम मिला साथ ही उनके स्वामी शेख, राजा , अमीर को भी। उनकी ओर से फार्मूला पूरी तरह सीधा साधा है कि रेगिस्तान को निवेशकों को सस्ते में दो। इसके बाद कृत्रिम प्रायद्वीप , झीलें तथा विशाल वातानुकूलित शापिंग माल के साथ गगनचुम्बी भवन बनाकर , फिल्मों से मुकाबला करते डायनासोर वाले जुरासिक पार्क सहित लाखों आवासीय भवन बनाकर बनकर लाभ दुगुना करो । इसके बाद इनका कबाडा करो और ये झेलें।
इब्राहिम के अनुसार दुबई के नेतृत्व ने इसके लाभ को " जो कि रेगिस्तान में डिजनीलैंड के स्वप्न को बेचकर बनाया गया उसे खाडी के बाहर की परिसम्पत्त्त्ति से शाश्वत बना लिया" जैसे कि विमानपत्तन तथा होटल सम्पत्ति।
जब विश्व भर में मंदी का दौर आया और तेल के दाम एक तिहाई रह गये तो इसकी सबसे बडी मार दुबई पर पडी। जिस तरह इसका उत्थान हुआ था उसी अनुपात में ढलान भी हो रहा है। उदाहरण स्वरूप जैसा कि न्यूयार्क टाइम्स में राबर्ट एफ वर्थ ने बताया, " दुबई की अर्थव्यवस्था पूरी तरह गिर गयी है, समाचार पत्रों ने बताया है कि दुबई विमानपत्तन पर 3,000 कारें बेकार होकर खडी हैं जिसे कि ऋण से ग्रस्त विदेशियों ने छोड दिया है ( यदि उन्होंने रकम न चुकाई तो उन्हें कारावास होगा)। कुछ लोगों ने तो अपने क्रेडिट कार्ड नष्ट कर दिये हैं और उसके बाहर क्षमा माँगते हुए नोट चस्पा कर दिया है।
कार बेकार होने का यह रोग कुछ अंशों में अमीरात के कठोर कार्य नियम का परिणाम है। जैसा कि वर्थ कहते हैं, " बेरोजगार लोगों का यहाँ कार्य वीजा समाप्त हो जाता है और उन्हें एक माह के भीतर देश छोडना ही होता है। इससे खर्च घट जाता है, घर खाली हो जाते हैं तथा रियल एस्टेट की कीमत भी घट जाती है इससे पूरा दुबई प्रभावित है, और जिसे कुछ दिनों पूर्व मध्य पूर्व का आर्थिक महाशक्ति कहा जाता था वह अब भूतों का शहर दिखता है" ।
नये स्तर से गरीबी के संकेत स्पष्ट हैं:
रियल एस्टेट के दाम जो कि दुबई के छह वर्षों के बुलबुले के दौरान नाटकीय ढंग से उठे थे वे कुछ शहरों मे पिछले दो या तीन माह में 30 प्रतिशत या उससे भी अधिक गिर गये हैं..... अनेक विलासिता की उपयोग हो चुकी कारें बिक्री के लिये उपलब्ध हैं और कभी कभी तो वे दो माह पूर्व के दाम से 40 प्रतिशत कम पर भी उपलब्ध हैं। दुबई की जो सडकें इन दिनों प्रायः ट्रैफिक से भरी रहती थीं वे लगभग खाली हैं।
विदेशी लोगों का दुबई में आना कम हो गया है ।
वर्थ के अनुसार, " यह सोचने का कारण है कि आर्थिक संकट आरम्भ हुआ है और लम्बे समय तक रहने वाला है। जैसे जैसे यह घट रहा है विदेशी पलायन कर रहे हैं। डरहम विश्वविद्यालय में संयुक्त अरब अमीरात के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर डेविडसन ने पाया, " जब दुबई समृद्ध और सफल था तो सभी इसके मित्र बनना चाहते थे । अब जबकि इसकी जेब खाली है तो कोई भी इसका मित्र नहीं रहना चाहता" ।
संस्कृति
जब संस्कृति पर बेतहाशा खर्च की बात आती है तो दुबई से आगे अबू धाबी का नाम आता है जिसने कि 2007 के आरम्भ मेंCultural District of Saadiyat Island की घोषणा जिसमें कि गजेनहेम( 400 मिलियन अमेरिकी डालर) और लोवर ( 1.3 बिलियन अमेरिकी डालर) संग्रहालय के साथ ही अन्य दो दर्जन संग्रहालय , कला प्रदर्शन केंद्र तथा पैवेलियन।
परंतु दुबई की भी महत्वाकाँक्षायें हैं, यदि अधिक नहीं तो कम ही जब कि पहला अमीरात्स एयरलाइन इंटरनेशनल का साहित्य समारोह 26 फरवरी को आरम्भ हो रहा है जिसमें कि साहित्यकारों की पार्टी होगी। समारोह के निदेशक इसोबेल अबुलहोल ने स्वागत संदेश में इसके बारे में बताया
यह समारोह मध्य पूर्व का पहला वास्तविक साहित्यिक समारोह है जिसमें कि अथाह प्रकार की विश्व भर की पुस्तकों का उल्लास हो रहा है जिसमें 50 कार्यक्रम हैं उन लेखकों की पुस्तकें हैं जो कि वर्तमान साहित्यिक उपन्यास से लेकर प्रेरणादायी जीवन शैली सहित बच्चों की संगीतमय फंतासी और विज्ञान के उपन्यास भी शामिल हैं। हम आपको आमन्त्रित करते हैं कि उनके साथ एक समारोह के आरामदायक वातावरण में आनंद मनायें, जिसमें कि हमारे विशेष शहर दुबई की आश्चर्यजनक और विविध प्रतिभायें इसमें प्रदर्शन करेंगी।
कहा जा रहा है कि समारोह में बीस देशों के लेखक भाग लेंगे जिसमें कि बडे नाम फ्रैंक मैक्कोर्ट और लुइस डी बर्नियर्स भी शामिल हैं।
यह सब तो ठीक है परंतु इस समारोह को आरम्भ होने से पूर्व ही झटका लगा जिसके कि पूरे समारोह पर छा जाने की सम्भावना है। कोई बात नहीं कि , " विश्व की सभी विशेषता की अथाह पुस्तकें" परंतु समारोह ने ब्रिटिश लेखक गेराल्डीन बेडेल को इस समारोह से प्रतिबंधित कर दिया है क्योंकि उनके उपन्यास The Gulf Between Us का एक सामान्य चरित्र शेख रशीद समलैंगिक अरब है जिसका कि अंग्रेज पुरुष मित्र है तथा इससे भी बुरी बात यह कि इसकी पृष्ठभूमि कुवैत युद्ध की है।
अबुलहोल ने बेडेल को निमन्त्रित न करते हुए लिखा, " हम अपने समारोह को एक विवादित पुस्तक के विमोचन के रूप में याद नहीं रखना चाहते। यदि आप इस पुस्तक का विमोचन करते हैं और कोई पत्रकार इसे पढ लेता है तो इसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना आप कर सकते हैं" " जहाँ तक कुवैत युद्ध की बात है तो वह हमारे लिये बारूदी भूमि है"
बेडेल ने उत्तर दिया कि उनका, " उपन्यास खाडी के लिये अत्यंत प्रेमपूर्ण है। मेरा इसके प्रति लगाव है सिवाय इसके कि जब ऐसी घटनायें घटित होती हैं। इससे तो एक पूरा प्रश्न खडा होता है कि क्या अमीरात और अन्य खाडी राज्य वास्तव में सामयिक सांस्कृतिक जगत का अंग बनना चाहते हैं..... आप यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि पुस्तक को प्रतिबंधित करें और चाहें कि साहित्यिक सम्मेलन को गम्भीरता से लिया जाये" ।
ऐसा ही है दुबई कार्यक्रम के सबसे बडे नाम कनाडा के लेखक मार्गरेट एटवुड ने बेडेल को निकाले जाने के विरोध में स्वयं को कार्यक्रम से अलग रखा, "( इस वर्ष मैं समारोह का हिस्सा नहीं रह सकता") और इस समारोह की सेंसरशिप को लेकर हुई एक बहस में वीडियो के द्वारा भाग भी लिया।
खेल
और न ही आप शानदार खिलाडियों में से एक को प्रतिबंधित कर यह अपेक्षा करते हैं कि आपके टेनिस टूर्नामेंट को गम्भीरता से लिया जाये। लेकिन दुबई ने इस माह के आरम्भ में ऐसा किया जब इसने 21 वर्षीय और विश्व रैंकिंग में 45 पायदान वाली शहर पीर को अपने 2मिलियन अमेरिकी डालर की महिला बार्कलेस दुबई टेनिस चैम्पियनशिप में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया।
क्यों? क्योंकि वह इजरायल की है। आयोजकों ने सुरक्षा कारणों से पीर को प्रतिबंधित किया।
पीर के साथ बातचीत करने के उपरांत महिला टेनिस एसोशियेशन ने दुबई टूर्नामेन्ट को जारी रखने का निर्णय लिया। " महिला टेनिस एसोशियेशन के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी लैरी स्कोट ने कहा, " वह नहीं चाहती कि उनकी भाँति ही अन्य साथी खिलाडियों को भी क्षति हो"
परंतु पीर को निकालने का परिणाम दुबई के लिये फिर भी हुआ। टेनिस चैनल ने इस प्रतियोगिता का प्रसारण करने से इंकार कर दिया ; वाल स्ट्रीट जर्नल यूरोप ने अपनी प्रायोजकता हटा ली; प्रतियोगिता के आयोजकों को 300.000 अमेरिकी डालर अर्थदंड मिला ( इसमें से 44.250 अमेरिकी डालर पीर को मिलेगा) तथा अमेरिका के स्टार एंडी रोडिक ने घोषणा की कि वे दुबई में पुरुष चैम्पियनशिप का बहिष्कार करेंगे। ट्राफी समारोह में विजेता वीनस विलियम्स ने पीर को निकाले जाने का उल्लेख करके मेजबानों असहज कर दिया।
केवल स्कोट को ही असंतुष्ट प्रशंसकों के संदेश नहीं मिले ( " यह एक ऐसा मुद्दा है जो कि नब्ज को पकडता है) वरन उन्होंने वास्तविक परिणाम की भी चर्चा की, " मुझसे अन्य उद्यम , अकादमिक संस्थान , सांस्कृतिक संस्थान के लोगों ने सम्पर्क किया जो कि वास्तव में संयुक्त अरब अमीरात में निवेश करते कि यदि उन्हें यह आश्वासन मिलता कि इजरायल के लोग भी गतिविधि में भाग लेंगे"।
पीर के प्रकरण में जो कुछ हुआ उसका परिणाम रहा कि युगल स्पर्धा में विश्व की 11वीं पायदान के इजरायल के टेनिस खिलाडी एंडी राम को दुबई में प्रवेश की विशेष अनुमति मिली और अब वे इस सप्ताह दुबई में आयोजित पुरुष बार्कलेस दुबई टेनिस चैम्पियनशिप में भाग लेंगे। 2010 के दौरे में दुबई के आयोजकों को पीर को वाइल्ड कार्ड प्रवेश देना चाहिये ताकि वह वहाँ खेल सके यदि अर्हता में असफल हो जाये तो भी और अर्हता प्राप्त करने वाले इजरायल के खिलाडियों को आठ सप्ताह पूर्व वीजा दिया जाना चाहिये।
दूसरे शब्दों में दुबई को अंतरराष्ट्रीय नियम समझना चाहिये अन्यथा इसे खेल का आयोजन नहीं कराना चाहिये। यह कोई छोटी बात नहीं है कि यह लघु राज्य पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये उच्च स्तरीय खेल की ओर चला गया है; एसोसियेटेड प्रेस के अनुसार, " यह विश्व के सबसे समृद्ध गोल्फ टूर्नामेण्ट और घोडों की दौड को आयोजित करता है ,यह विश्व क्रिकेट की प्रशासनिक सभा का मुख्यालय है और यह 4 बिलियन अमेरिकी डालर से खेल शहर बना रहा है जिसमें कि आवासीय स्टेडियम, खेल अकादमी और विलासी गोल्फ कोर्स में एक"।
निष्कर्ष
गति और सम्पन्नता के मिश्रण से दुबई आर्थिक, मजहबी और कठिन राजनीतिक निर्णयों से पार पाना चाहता है। व्यवस्था को प्रतीत होता है कि बडे निर्माण से पुष्ट आधार की कमी को पूरा कर लेंगे। इसकी आशा है कि नाजुक परेशान करने वाले मुद्दे विशालता से छुप जायेंगे। उदाहरण के लिये इसे लगा कि प्रतिष्ठित खेलों के आयोजन से इसे नियम बदलने की अनुमति मिल जायेगी:दुबई का कहना है कि कोई भी मामूली समलैंगिक चरित्र या इजरायल का टेनिस खिलाडी नहीं चलेगा? तो क्या, दुबई का शासन है और शेष विश्व पालन करता है।
परंतु ऐसा नहीं होगा। तेल के दामों में आयी तीव्र गिरावट ने देश की कमजोरी को उजागर कर दिया, और दुबई के साहित्यिक और खेल की गिरावट ने इसे पुष्ट कर दिया ।इसके बजाय एक पूरी तरह नया माडल इसे प्रेरित कर रहा है जिसे कि मैं separation of civilizations सभ्यता का अलगाव कहता हूँ। अपने मार्ग को दूसरों पर थोपने में असफल फारस की खाडी के अरबवासी अपनी तरह की अर्थव्यवस्था ( शरियत ), उपभोक्ता सामान, मीडिया , परिवहन, फास्ट फूड , खेल प्रतिस्पर्धा, सर्च इंजिन तथा समय मापन की अपनी विधि के साथ मुस्लिम झुग्गी में फिर से जा रहे हैं ।
इसे असफल होना ही है। पिछले दो सदी से मुस्लिम जीवन के केंद्र में रहे मुद्दों जैसे परम्परा और आधुनिकता के मध्य तनाव, वैश्विक मूल्यों से मुस्लिम पहचान का विरोध तथा आर्थिक विकास के दबाव का सामना तो किसी समय करना ही पडेगा। अब जबकि इतिहास के साथ दुबई का अवकाश अचानक समाप्त हो गया है तो इसका कठिन कार्य आरम्भ हो रहा है