अब जबकि लिकुड पार्टी के प्रमुख बिन्यामिन नेतन्याहू इजरायल के प्रधानमन्त्री बनने वाले हैं तो कोई भी यह सोच सकता है कि क्या वे अपने चुनाव अभियान के सबसे विवादित वायदों के साथ खडे रहेंगे , ईरानी खतरे का मुकाबला नहीं जिसका कि व्यापक समर्थन हुआ है वरन जैसे कि गाजा पर हमास का नियंत्रण समाप्त करना और गोलन पहाडियों को अपने पास रखना।
पहले के दो संकेतों के आधार पर यह जाना जा सकता है कि भविष्य में क्या होने वाला है: (1) 1977 से लिकुड के चार प्रधानमंत्रियों की परिपाटी तथा, (2) विशेष रूप से इन चारों में से एक के रूप में नेतन्याहू का अपना रिकार्ड।
लेवी एश्कोल ( 1963 -69 के प्रधानमंत्री) ने एक बार इजरायल की राजनीति के धोखे को स्वीकार किया था: " मैंने इस बात का वायदा कभी नहीं किया कि मैं अपने वायदों पर कायम रहूँगा" । इस भावना के अनुरूप लिकुड के चार प्रधानमंत्रियों ने चुनाव प्रचार दक्षिणपंथी किया परंतु प्रशासन वामपंथी किया, 1967 में इजरायल द्वारा नियंत्रण में लाये गये राज्य क्षेत्र से वापस न होने के अपने वायदे को तोड दिया।
- मेनाचेम बेगिन ( 1977 से 83 तक प्रधानमंत्री) उनका निर्वाचन राष्ट्रवादी आधार पर हुआ जिनमें कि पश्चिमी तट के भाग को विजित करना भी था इसके बजाय उन्होंने सिनाय प्रायद्वीप से सभी सेना और नागरिक हटा लिये।
- यित्जाक शमीर ( 1983 से 92 तक प्रधानमंत्री रहे) उन्होंने अरबवासियों को भूमि न देने के आधार पर चुनाव लडा और अपने शब्दों पर खरे उतरे।
- नेतन्याहू ( 1996 से 1999 तक प्रधानमंत्री रहे) गोलन पहाडियों को अपने पास रखने का वायदा किया लेकिन प्रायः उस राज्य क्षेत्र को दे दिया; ओस्लो समझौते का विरोध किया लेकिन हेब्रान में अधिक नियंत्रण हो जाने दिया तथा फिलीस्तीनी अथारिटी के साथ वाये समझौता किया।
- एरियल शेरोन (2001 से 06 तक प्रधानमंत्री रहे) 2003 का चुनाव गाजा से एकतरफा वापसी का विरोध करके जीता और उसके उपरांत ठीक वही किया वहाँ से सभी सेना और नागरिकों को वापस बुला लिया।
लिकुड के इतिहास का सर्वेक्षण करते हुए निकोल जेंसेजियान ने न्यूजमैक्स में विडम्बना को लिखा, " जबकि फिलीस्तीनी, अमेरिकी तथा यूरोप के नेता इस बात पर चिंतित होते हैं कि इजरायल के दक्षिणपंथी रुझान से किस प्रकार शांति प्रकिया प्रभावित होगी तो सम्भवतः केवल इजरायल के दक्षिणपंथ को ही इजरायल की दक्षिणपंथी सरकार को लेकर चिंतित होना चाहिये"।
नेतन्याहू के कार्यों को देखने के उपरांत शमीर का नेतन्याहू के सम्बंध मे विचार काफी गिर गया जब उन्होंने 1998 में देखा कि वे " पुनः निर्वाचित होने और प्रधानमंत्री पद को बचाये रखने के लिये" कुछ भी करने को तैयार हैं। मुझे भी इसी प्रकिया से गुजरना पडा जब 1996 में नेतन्याहू की सफलता पर प्रसन्न हुआ और फिर उनकी सिद्धांतहीनता से इस प्रकार निराश हुआ कि 1999 में उनके प्रतिद्वंदी लेबर को प्राथमिकता दी।
अब क्या जब कि नेतन्याहू फिर से पद पर आ रहे हैं? न तो उनके दल का इतिहास, न तो उनकी आत्मकथा , न तो उनका चरित्र या फिर जो कानाफूसी इजरायल से बाहर आ रही है उससे लगता है कि वे अपने वायदों पर खरे उतरेंगे। नेतन्याहू ने पहली परीक्षा तो पास कर ली है जबकि इजरायल की संसद के 120 सदस्यों में 65 ने राष्ट्रपति शिमोन पेरेज को लिखकर दे दिया है कि वे नेतन्याहू का प्रधानमंत्री के रूप में समर्थन करते हैं, पेरेज 20 फरवरी को नेतन्याहू को सरकार बनाने का अवसर प्रदान करेंगे।
नेतन्याहू ने वामपंथी दलों विशेष रूप से कदीमा और लेबर के साथ " राष्ट्रीय एकता" सरकार के गठन का प्रयास कर उन सहयोगियों को धोखा देने की ओर कदम बढाया। उन्होंने तो यहाँ तक घोषणा की कि 1996 में लेबर के साथ सरकार का गठन करना उनकी सबसे बडी भूल नहीं थी: " इसके बजाय मुझे राष्ट्रीय एकता का प्रयास करना चाहिये था जिसे ठीक करने का प्रयास आज मैं कर रहा हूँ" । कदीमा और लेबर ने विपक्ष में जाने का निर्णय कर लिया है ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने नेतन्याहू की योजना पर पानी फेर दिया है। परंतु वामपंथियों के साथ गठबंधन सरकार बनाने को प्राथमिकता देना इस बात का संकेत है कि वे उनके प्रचार के बयान कितने हल्के थे।
इन पंक्तियों के साथ ही जब एक साक्षात्कारकर्ता ने उनसे पूछा, " आपके बारे में समाचारपत्र लिख रहे हैं कि आप दक्षिणपंथी कट्टरपंथी नहीं हैं ? नेतन्याहू ने सगर्व याद किया कि किस प्रकार उन्होंने 1990 के दशक में अपने वायदों को तोडा था ; " मैं वह व्यक्ति हूँ कि जिसने शान्ति की खोज में वाये समझौता और हेब्रान संधि की थी"
ऐसा लगता है कि गोलन पहाडियों पर कूटनीति आरम्भ हो गयी है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि सीरिया और इजरायल की बातचीत को " टाला नहीं जा सकता" नेतन्याहू द्वारा इस बातचीत को लेकर इंकार किये जाने के बाद भी एक निकट सहयोगी का मानना है कि दमिश्क के साथ कोई बडी सफलता ओबामा प्रशासन के लिये एक उपकार होगा जिसके बदले में नेतन्याहू वाशिंगटन से फिलीस्तीनियों के साथ किसी प्रकार की आशा कर सकते हैं।
अंदरखाने से लोग मुझे आश्वस्त कर रहे हैं कि नेतन्याहू अब परिपक्व हो गये हैं और मैं भी आशा करता हूँ कि वे सही हैं। परंतु लिकुड के एक नेता ने गठबंधन वार्ता को देखते हुए सर्वेक्षण किया, " बिबी गठबंधन सहयोगियों के लिये सब कुछ दाँव पर लगा रहे हैं। वे हमारी कोई चिंता नहीं करते। वे केवल अपनी चिंता करते हैं"। इसी प्रकार नेतन्याहू के विरोधी उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे अपने व्यक्तिगत एजेंडे को प्राप्त करने के लिये प्रयास करें: हिब्र्रू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञानीयारोन एजराही का कहना है कि, " नेतन्याहू को सत्ता में बने रहने के लिये अपनी विचारधारा की बलि चढाने में कोई संकोच नहीं होता"
यहाँ तक कि मैं भी सुखद आश्चर्य का अनुभव करना चाहता हूँ पर पूर्ववर्ती परिपाटी मुझे चिंतित करती है।