मैंने 2005 में पूछा था कि, " क्या एक सदी पूर्व किसी ने यह कल्पना की थी कि यहूदी बेहतर सैनिक और अरबवासी बेहतर प्रचारक सिद्ध होंगे"
अरबवासियों के जनसम्पर्क की कुशलता का उदाहरण अरब इजरायल संघर्ष के मानचित्र को परिवर्तित कर देने की उनकी क्षमता में निहित है। पहले के दशक में अरब इजरायल संघर्ष के मानचित्र में इजरायल को विशाल मध्य पूर्व में कहीं एक ओर दिखाया जाता था जिसकी उपस्थिति इतनी छोटी थी कि इसे देखने के लिये विशेष रूप से महीन चश्मे की आवश्यकता होती थी। इन दिनों संघर्ष में इजरायल को पश्चिमी तट और गाजा के बिखरे क्षेत्र में विशाल आकार का दिखाया जाता है।
आकार में इस परिवर्तन में भुक्तभोगियों की स्थिति भी अंतर्निहित है; कभी इजरायल की कमजोर कर्ता की स्थिति स्पष्ट होती थी तो अब फिलीस्तीनियों ने वह स्थान ग्रहण कर लिया है और वह भी सभी उपस्थित लाभों के साथ।
पर्सनालिटी एंड सोशल साइकोलोजी बुलेटिन में The Appeal of the Underdog नामक हाल के अध्ययन में जोसेफ ए वांडेलो, पी गोल्डशमिड तथा डेविड ए आर रिचर्डस ने इसी अनुमान के आधार पर अपनी बात का आरम्भ किया है कि, " जब लोग प्रतिस्पर्धा की ओर देखते हैं तो उनका ध्यान प्रायः उन लोगों की ओर जाता है जो कि उपेक्षित हैं या जिनका उत्थान नहीं हो पाया है .... परंतु यदि लोग उनकी ओर सहानुभूति रखते हैं जिन्हें कि भुक्तभोगी माना जाता है तो पक्षों के प्रति रुख इस बात से निर्धारित होता है कि एक दूसरे पक्ष में भुक्तभोगियों की स्थिति कैसी है।
इन तीनों ने ही अपने अध्ययन परीक्षण अरब इजरायल संघर्ष के आधार पर किया है।
उन्होंने भुक्तभोगी के रूप में देखे जाने की सम्भावना से लाभ उठाने को रोके जाने के लिये एक प्रयोग किया जिसमें कि उन्होंने भुक्तभोगी स्तर के लिये मानचित्र की उस भौतिक असमानता को ध्यान में रखा है जिसमें कि इजरायल को बडा , फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र से घिरा या फिर इजरायल को बडे मध्य पूर्व मे अरब देशों से घिरा छोटा दर्शाया गया है।
इन दो मानचित्रों के प्रयोग के आधार पर लेखकों ने, " इनकी स्थिति के आधार पर ही भुक्तभोगी के स्तर का परिवर्तन होगा और जो कि कालांतर में भुक्तभोगियों के प्रति समर्थन के बारे में भविष्यवाणी करेगा" ।
उनका आकलन ठीक है छोटा आकार भुक्तभोगी के रूप में दिखने के लिये आवश्यक है: इजरायल को छोटा दिखाये जाने पर 62 प्रतिशत ने इजरायल को भुक्तभोगी माना।
भाग लेने वालों से पूछा गया कि किस पक्ष को आप भुक्तभोगी मानते हैं । जब इजरायल को मानचित्र में बडा दिखाया गया तो 70 प्रतिशत लोगों ने फिलीस्तीनियों को भुक्तभोगी बताया और जो कि राजनीतिक सहानुभूति प्रदान कराती है।
प्रतिभागियों से यह भी पूछा गया कि वे किस समूह के प्रति सहयोगी भाव रखते हैं । जब इजरायल को मानचित्र में बडे आकार में दिखाया गया तो 53.3 % फिलीस्तीन की ओर अधिक सहयोगी रुख वाले थे। इसके विपरीत जब इजरायल को मानचित्र में छोटा दिखाया गया तो 76.7% इजरायल के प्रति सहायोगी दिखे।
यह 23 प्रतिशत का अंतर है जो कि विशाल है। उन्हें लगा कि छोटे आकार का भी समर्थन की तीव्रता पर प्रभाव पडता है।
प्रतिभागियों से पूछा गया कि अपनी दर बतायें जिस दर से वे संघर्ष में प्रत्येक पक्ष के बारे अनुभव करते हैं तो 1 ( किसी के प्रति नहीं) 5( काफी) का अंतर रहा। जब इजरायल को मानचित्र पर बडा प्रदर्शित किया गया तो प्रतिभागियों ने फिलीस्तीन की ओर अधिक सहानुभूति प्रदर्शित की ( 3.77 बनाम 3.73) परंतु जब इजरायल को मानचित्र पर छोटा दिखाया गया तो प्रतिभागियों ने इजरायल के प्रति अधिक सहानुभूति प्रदर्शित की ( 4.00 बनाम 3.30)
टिप्पणियाँ
(1) आधुनिक जीवन अनेक विषयों पर निर्णय लेने की अपेक्षा करता है जहाँ कि ज्ञान का अभाव है और गलत सूचना से प्रभावित लोग ही परिपक्व लोकतंत्र की मतसंचालित राजनीति को संचालित करते हैं।
(2) भुक्तभोगी होने की दौड एक व्यापक संदर्भ में देखी जानी चाहिये , मैंने 2006 में लेबनान युद्ध में अजीब तर्क में अभिलेखित किया था कि, " अधिक मृतक संख्या और पीडित के रूप में दिखना" जनमत में किसी के लिये भी शक्ति सिद्ध होता है।
(3) भुक्तभोगी दिखना और अधिक मृतक संख्या ऐतिहासिक धारा को उलटता है जहाँ कि, " प्रत्येक पक्ष शत्रु को भयभीत करना चाहता है और किसी भी प्रकार विजयी होना चाहता है"
(4) यह उन अनेक कारणों में से एक है जिसके चलते कि पिछ्ले 60 वर्षों में युद्ध का तरीका बदल गया है और इस ऐतिहासिक स्वरूप से परिवर्तन पर अधिक ध्यान नहीं गया है।
(5) युद्ध की रचना अब किस प्रकार आकार ग्रहण करती है जैसा कि 2006 में मैंने कहा था, " अब गुरुत्व केंद्र युद्ध भूमि से सम्पादकीय और वक्तव्य की ओर चला गया है। इसे किस प्रकार लडा गया है इससे अधिक महत्वपूर्ण यह हो गया है कि इसे किस प्रकार देखा गया है"
(6) कमजोर परंतु खोजी संगठनों हिजबुल्लाह और हमास ने इस वास्तविकता को परम्परावादी पश्चिमी सरकारों से कहीं अधिक अच्छे से पहचाना है
(7) इन सरकारों को युद्ध में जनमत की मूलभूत भूमिका की आवश्यकता की ओर जागना चाहिये।