अपनी 60वीं वर्षग़ाँठ पर नार्थ एटलाँटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन ने स्वयं को एकदम नयी अलग तरह की समस्या में उलझा पाया वह है कट्टरपंथी इस्लाम जिसका प्रतिनिधित्व तुर्की गणराज्य अपने दायरे में कर रहा है।
अंकारा ने नाटो की सदस्यता 1951 में ली और शीघ्र ही तुर्की की सेनाओं ने अपने कोरिया के सहयोगियों के साथ साहसपूर्ण युद्ध किया। तुर्क दशकों तक सोवियत संघ के विरुद्ध मजबूती से डटे रहे। अमेरिका के बाद तुर्की की सेना की संख्या इस गठबन्धन में सर्वाधिक है।
शीत युद्ध की समाप्ति के उपरांत नाटो का मिशन परिवर्तित हो गया और कुछ लोगों ने इस्लामवाद को नया रणनीतिक शत्रु मान लिया। 1995 में पहले ही नाटो के महासचिव जनरल विली क्लेस ने इस्लामवाद की तुलना ऐतिहासिक शत्रु से की, " कट्टरपंथ भी कम से कम उतना ही खतरनाक है जितना कि कम्युनिज्म था" उन्होंने आगे कहा, " शीत युद्ध समाप्त होने के उपरांत , " इस्लामी उग्रवाद सम्भवतः नाटो गठबंधन और पश्चिमी सुरक्षा के लिये सबसे गम्भीर एकमात्र खतरा बन कर उभरा है"
निश्चित ही 2001 में 11 सितम्बर को उस देश द्वारा हुए आक्रमण के प्रत्युत्तर में अफगानिस्तान में तालिबान के विरुद्ध युद्ध करने के लिये नाटो ने धारा 5 का प्रयोग किया और "संयुक्त रूप से आत्मरक्षा" का आह्वान किया।
अभी हाल में स्पेन के पूर्व प्रधानमंत्री जोस मरिया अजनार ने कहा है कि, " इस्लामवादी आतंकवाद एक नया वैश्विक स्तर का साझा खतरा है जो कि नाटो सदस्यों के अस्तित्व को ही खतरे में डालता है" साथ ही इस बात की वकालत की कि गठबंधन को "इस्लामी जिहादवाद तथा जनसंहारक हथियारों के प्रसार को रोकने से लड्ने के लिये ध्यान देना चाहिये" । उन्होंने आह्वान किया कि, "इस्लामी जिहादवाद के विरुद्ध युद्ध को सहयोगियों की रणनीति में सबसे केंद्र में रहना चाहिये"।
क्लेस और अजनार सही हैं, लेकिन उनकी दूरदृष्टि संकट में है, क्योंकि 28 सदस्यीय गठबंधन में अब इस्लामवादी प्रवेश कर गये हैं जैसा कि पिछले कुछ दिनों में नाटकीय रूप से यह बात स्पष्ट हुई है।
जबकि महासचिव जाप डे हूप स्केफर का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है तो यह आमसहमति बनी कि डेनमार्क के 56 वर्षीय प्रधानमंत्री एन्डेर्स फोग रासमुसेन को उनका उत्तराधिकारी बनाया जाये। परंतु फोग रासमुसेन उस समय पद पर थे जब 2006 के आरम्भ में मुहम्मद कार्टून संकट उत्पन्न हुआ था और उन्होंने उस बात पर जोर दिया था कि एक प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वे एक व्यक्तिगत समाचार पत्र को यह बतायें कि वह क्या प्रकाशित न करे। इसके कारण मुसलमानों ने उनकी आलोचना की थी जिसमें कि तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन भी शामिल थे जिन्होंने कि फोग रासमुसेन को उस समय निर्देश दिया था , " स्वतंत्रता की सीमायें हैं और जो पवित्र है उसका सम्मान किया जाना चाहिये" ।
जब फोग रासमुसेन नाटो के पद के लिये सामने आये तो एरडोगन ने अपनी अदावट जारी रखी और कहा कि उनकी सरकार फोग रासमुसेन के प्रत्याशित्व को नकारात्मक भाव से देखती है क्योंकि एरडोगन के अनुसार, " मैंने उनके देश में इस्लामी नेताओं की बैठक बुलाने की बात की थी कि इसे स्पष्ट करें कि क्या हो रहा है लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। फिर मैं कैसे आशा करूँ कि वे शांति के लिये योगदान दे सकते हैं?"
वैसे तो फोग रासमुसेन का चयन सर्वसम्मति से हुआ लेकिन भारी कीमत देकर। डेनमार्की को इस पद पर नियुक्ति तब मिली जब बराक ओबामा द्वारा बुलाई गयी बैठक में उन्होंने तुर्की राष्ट्रपति अब्दुल्लाह गुल के साथ सघन विचार किया । फोग रासमुसेन ने वादा किया कि वे कम से कम दो तुर्क को नियुक्त करेंगे जो कि सार्वजनिक रूप से मुस्लिम चिन्ता और कार्टून के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को देखेगा। अधिक विस्तार में एरडोगन ने घोषणा की कि ओबामा ने फोग रासमुसेन के प्रति तुर्की आग्रह के लिये गारंटी दी है।
फोग रासमुसेन को अंकारा का समर्थन जीतने के लिये जिस बाधा को पार करना पडा उसे उनके पद पर नियुक्त होने के बाद धिम्मी जैसी टिप्प्णी से समझी जा सकती है; " नाटो के महासचिव के रूप में बडे स्पष्ट रूप से मैं मुस्लिम जगत तक जाऊँगा ताकि मुस्लिम जगत के साथ सहयोग और वार्तालाप तीव्र कर सकूँ। मैं तुर्की को अत्यंत महत्वपूर्ण सहयोगी तथा रणनीतिक सहयोगी मानता हूँ तथा मुस्लिम जगत के साथ अच्छे सहयोग के लिये मैं उनके साथ सहयोग रखूँगा" ।
हमें ऐसे नाटो के उभार को देखने के लिये तैयार रहना चाहिये जो कि क्लेस और अजनार के माडल का पालन करते हुए कट्टरपंथी इस्लाम से युद्ध करने के स्थान पर ऐसी संस्था बन रहा है जो अंदर से हिचकोले खा रहा है और एक सदस्य देश की सरकार को असन्तुष्ट करने के भय से मुख्य रणनीतिक खतरे के विरुद्ध खडा होने में असमर्थ है।
तुर्की के साथ नाटो की एकमात्र समस्या इस्लामवाद नहीं है। अब जो मध्य पूर्व के शीत युद्ध के रूप में उभर रहा है जिसके एक पक्ष का नेतृत्व तेहरान कर रहा है और दूसरी ओर रियाद है, और इसमें अंकारा ने बार बार तेहरान का पक्ष लिया है जिसमें कि महमूद अहमदीनेजाद की मेजबानी, ईरान के परमाणु कार्यक्रम की वकालत करना, ईरान के लिये तेल क्षेत्र का विकास, ईरान के शस्त्र हिजबुल्लाह को हस्तान्तरित करना, खुले रूप से हमास का समर्थन , बुरे ढंग से इजरायल की निंदा करना तथा तुर्की के जनमत को अमेरिका के विरुद्ध तैयार करना।
इन परिवर्तनों के आधार पर स्तम्भकार कैरोलिन ग्लिक ने आग्रह किया कि वाशिंगटन को " तुर्की को नाटो से बाहर करने के विचार को आरम्भ करना चाहिये"। ओबामा प्रशासन ऐसा नहीं करने वाला परन्तु इससे पूर्व कि अंकारा नाटो को दंतहीन कर दे निष्पक्ष पर्यवेक्षकों को सावधानीपूर्वक इस तर्क पर विचार करना चाहिये।