18 मई को दो नवनिर्वाचित नेता बराक ओबामा और बिन्यामिन नेतन्याहू की भेंट से अमेरिका और इजरायल के सम्बंधों को लेकर एक मूलभूत प्रश्न उठता है कि क्या यह दीर्घकालिक गठबंधन अपने 62वें वर्ष में भी जारी रहेगा?
प्रमुख रूप से तीन कारण हैं जिनके आधार पर सामान्य कार्यव्यवहार के टूट जाने की आशा की जाती है:
(1) विरोध के अनेक क्षेत्र अस्तित्वमान हैं – ईरान द्वारा परमाणु निर्माण का प्रयास, सीरिया के साथ सम्बंध, इजरायल को परमाणु अप्रसार के साथ सम्बद्ध करना, तथा पश्चिमी तट में यहूदियों का निवास करना, लेकिन द्विराज्य समाधान बैठक का तेवर और परिणाम तय करेगा। द्विराज्य विचार का उद्देश्य यहूदी राज्य के साथ ही फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना कर अरब इजरायल संघर्ष को समाप्त करना है। यह योजना दो सम्भावनाओं पर आधारित है: (अ) फिलीस्तीनी एक केंद्रीय और जीने योग्य राज्य का गठन कर सकते हैं तथा (आ) इस राज्य को प्राप्त करने का अर्थ है कि इजरायल को नष्ट करने के उनके स्वप्न का समाप्त हो जाना।
द्विराज्य फार्मूले ने इजरायल की जनता में 1993 के ओस्लो समझौते तथा 2000 में फिलीस्तीनी हिंसा के नये दौर के मध्य सहमति प्राप्त की। ऊपरी धरातल पर यह निश्चित दिखता है कि द्विराज्य इजरायल के लोगों के मध्य काफी सशक्त है: जैसे कि एहुद ओल्मर्ट अनापोलिस चक्र को लेकर अत्यंत उत्साहित हैं , एविडगोर लिबरमैन " स्थाई द्विराज्य समाधान के लिये प्रदर्शन आधारित योजना" को स्वीकार करते हैं, अभी हाल में तेल अवीव विश्वविद्यालय के एक सर्वेक्षण में " द्विराज्य" को अब भी लोकप्रिय पाया गया है।
परंतु इजरायल के अनेक लोग जिनमें कि नेतन्याहू शामिल हैं इस बात पर विश्वास नहीं करते कि फिलीस्तीनी या तो अपने राज्य का गठन कर सकते हैं या फिर इजरायल में वापस लौटने का स्वप्न छोड सकते हैं। नेतन्याहू की प्राथमिकता है कि " द्विराज्य" को एक ओर रखकर संस्थाओं के निर्माण , आर्थिक विकास और फिलीस्तीनियों के जीवन स्तर में सुधार पर ध्यान दिया जाये । इस पर अरब राज्यों का, फिलीस्तीनियों का , यूरोप की सरकारों का तथा ओबामा प्रशासन का एकस्वर से उत्तर जबर्दस्त विरोध का है।
प्रश्न :क्या द्विराज्य समाधान को लेकर मतभेद से अमेरिका और इजरायल के सम्बंधों को लेकर कोई संकट उत्पन्न हो सकता है?
(2) व्यापक रणनीतिक चिंता ही लगातार इजरायल के प्रति अमेरिका के व्यवहार को निर्धारित करती है: सोवियत संघ से संघर्ष के समय ( 1948 से 1970) रिपब्लिकन ने इजरायल को एक बोझ मान लिया था और इस सम्बंध में तब गर्मी आयी जब ( 1970 के बाद) इजरायल ने अपनी रणनीतिक उपयोगिता सिद्ध कर दी: शीतयुद्ध के बाद इसके प्रति डेमोक्रेट ठंडे पड गये जब उन्हें लगा कि यह नस्लवादी राज्य है व मध्य पूर्व को अस्थिर करता है और वहाँ अमेरिका की नीतियों को क्षति पहुँचाता है।
अभी तो राजनीतिक दल पूरी तरह बँटे हैं; सर्वेक्षण से पता चलता है कि रिपब्लिकन का इजरायल के लिये समर्थन बढ रहा है जबकि डेमोक्रेट का समर्थन औसत 26 प्रतिशत अंक तक है। इसी प्रकार रिपब्लिकन डेमोक्रेट की तुलना में कहीं अधिक इस बात का समर्थन करते हैं कि अमेरिका इजरायल की सहायता में ईरान पर आक्रमण करे। अब वाशिंगटन पर डेमोक्रेट का नियंत्रण है तो इस विरोधाभास में अंतर्निहित है कि जार्ज डब्ल्यू बुश के दिनों से अधिक ठंडक रहेगी। संसद की विदेश विभाग मध्य पूर्व उपसमिति के सभापति गैरी एकरमैन ( न्यूयार्क के डेमोक्रेट) इस परिवर्तन के उदाहरण हैं। पिछले वर्षों में इजरायल के लिये खडे होने वाले वे अब उस आरोप लगा रहे हैं कि वह ( इजरायल) " बस्ती की समस्या" को शाश्वत बनाकर " विनाशक आयाम" में भाग ले रहा है।
प्रश्न: क्या होने वाली शिखर बैठक में डेमोक्रेट के आलोचक विचार नीतिगत परिवर्तन में परिणत होंगे?
(3) ओबामा स्वयं डेमोक्रेट पार्टी के अति इजरायलवाद विरोधी वामपंथी खेमे से आते हैं। अभी कुछ ही वर्षों पूर्व वे अनेक ख्यातिलब्ध इजरायल के प्रति घृणा रखने वालों से जुडे हुए थे जैसे अली अबूनिमाह, राशिद खालिदी, एडवर्ड सेड तथा जेरेमिया राइट तथा सद्दाम हुसैन समर्थक , काउंसिल आन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस तथा नेशन आफ इस्लाम का कहना की क्या। जैसे जैसे ओबामा राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढने लगे उन्होंने इन सबसे किनारा कर लिया। राष्ट्रपति पद पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने अनेक मुख्य धारा के डेमोक्रेट को मध्य पूर्व का मामला देखने के लिये नियुक्त किया। इस बात पर अनुमान ही लगाया जा सकता है कि यह परिवर्तन रणनीतिक था ताकि रिपब्लिकन को मुद्दा देने से बचा जाये या फिर यह वास्तव में नया रुख था।
प्रश्न : ओबामा का यहूदी राज्य के प्रति विरोध कितना गहरा है?
कुछ भविष्यवाणियाँ: (1) नेतन्याहू के लिये ईरान प्राथमिकता है इसलिये वे " द्विराज्य समाधान" पर कोई वाक्य बोलकर किसी प्रकार का विवाद नहीं खडा करना चाहेंगे तथा फिलीस्तीन अथारिटी के साथ कूटनीति पर सहमत हो जायेंगे। (2) डेमोक्रेट भी अपने सबसे अच्छे व्यवहार में होंगे तथा नेतन्याहू के साथ अपने अलगाव को रोककर सम्बंधों में कुछ गर्मी लाने का प्रयास करेंग़े। (3) ओबामा के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं इसलिये वे इजरायल या उसके सहयोगियों के साथ कोई संघर्ष नहीं चाहते। वे रणनीतिक रूप से नेतन्याहू की यात्रा तक केंद्र की ओर झुक जायेंगे।
संक्षिप्त समय के लिये अमेरिका और इजरायल के सम्बंधों में किसी परिवर्तन के बजाय निरंतरता रहेगी। जो लोग इजरायल की सुरक्षा को लेकर चिंतिति हैं वे अपरिपक्व ढंग से राहत की साँस ले सकते हैं, अपरिपक्व क्योंकि यह यथस्थिति नाजुक है तथा इजरायल के साथ अमेरिका के सम्बंध शीघ्र ही अलग हो सकते हैं ।
यहाँ तक कि फिलीस्तीनी राज्य की ओर किसी प्रगति का अभाव ही संकट को जन्म दे सकता है, जबकि ईरान के परमाणु आधारभूत संरचना पर ओबामा की इच्छा के विपरीत इजरायल के आक्रमण के चलते वे उस बंधन को तोडने के लिये तत्पर हों जिसे कि हैरी ट्र्रूमैन ने आरम्भ किया, जान केनेडी ने सशक्त किया और बिल क्लिंटन ने ठोस आधार दिया।