लम्बे समय से प्रतीक्षित बराक ओबमा और बिन्यामिन नेतन्याहू के मध्य आखिरकार 18 मई को भेंट हुई और वह सहज रही और जैसा कि आकलन किया जा रहा था थोडा बहुत तनावपूर्ण । सभी लोग अपने उत्तम व्यवहार में थे और इस समारोह ने लोगों में अत्यंत कम उत्साह जगाया कि न्यूयार्क टाइम्स ने इसे बारहवें पृष्ठ पर स्थान दिया।
जैसी कि सम्भावना थी कि हालाँकि उसके तत्काल बाद अमेरिकी कठोर माँगों के साथ ही सौजन्यता का आवरण उतर गया विशेषकर तब जब 27 मई को विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जोर दिया कि नेतन्याहू सरकार पश्चिमी तट और उत्तरी जेरूसलम में इजरायलियों के बनाये जा रहे भवनों को समाप्त करे। इसकी प्रतिक्रिया में न मानने की बात कही गई। इजरायल प्रशासन के गठबंधन सभापति ने पूर्व में भी अमेरिकी आदेश की भूल की ओर संकेत किया, एक मंत्री ने ओबामा की तुलना फराओ से कर डाली, सरकार के प्रेस कार्यालय निदेशक ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "मानों उत्तरी अमेरिका के कुछ राज्यों के लोगों ने कल्पना की हो कि उन्हें इस बात को निर्धारित करने का अधिकार है कि क्या यहूदी जेरूसलम में रह सकते हैं"
यदि इस बात की बारीकी का कि कौन कहाँ निवास कर सकता है कम रणनीतिक महत्व है तो ओबामा प्रशासन द्वारा इजरायल के विरुद्ध त्वरित और कठोर घुमाव का काफी महत्व है। प्रशासन ने न केवल जार्ज डब्ल्यू बुश द्वारा फिलीस्तीनी ओर के परिवर्तनों पर ध्यान दिये जाने को समाप्त कर दिया है वरन बुश ने एरियल शेरोन और एहुद ओलमर्ट के साथ जो मौखिक सहमति बनाई थी उसकी भी अवहेलना की है।
वाशिंगटन पोस्ट में एक लेख में जैक्सन डेयल ने इस परिवर्तन को चित्रित किया है। डेयल ने फिलीस्तीनी अथारिटी के महमूद अब्बास के साथ साक्षात्कार के आधार पर लिखा, सार्वजनिक रूप से बार बार बिना किसी अपवाद के पश्चिमी तट में इजरायल भवनों को पूरी तरह रोकने की आवश्यकता जता कर ओबामा ने लम्बे समय की फिलीस्तीनी फन्तासी को पुनर्जीवित कर दिया है: कि अमेरिका सामान्य रूप से इजरायल को नाजुक रियायतों के लिये जोर देगा चाहे इसकी लोकतांत्रिक सरकार इसके लिये सहमत हो या नहीं जबकि अरब के लोग निष्क्रिय होकर दर्शक बनेंगे और करतल ध्वनि करेंगे। " अमेरिका विश्व का नेता है वे विश्व में किसी के साथ भी अपने वजन का प्रयोग कर सकते हैं . दो वर्ष पूर्व उन्होंने इसका प्रयोग हमारे साथ किया था अब उन्हें इजरायल को बताना चाहिये कि आपको शर्तों को मानना है"
निश्चय ही इजरायल को बताना और बात है और उनकी सहमति प्राप्त करना और है। इसके लिये भी अब्बास के पास उत्तर है। इस बात की प्रत्याशा में कि भवनों के पूरी तरह रोक लगाने पर सहमत होने से नेतन्याहू की गठबंधन सरकार गिर जायेगी , डायेल व्याख्या करते हैं कि अब्बास की योजना है कि, " ऐसे में वे बैठकर देखेंगे कि जब अमेरिका के दबाव से धीरे धीरे इजरायल के प्रधानमंत्री अपने कार्यालय से बाहर हो जायेंगे" । फिलीस्तीनी अथारिटी के एक अधिकारी ने भविष्यवाणी की कि ऐसा दो वर्षों में हो जायेगा जब ओबामा को आशा है कि फिलीस्तीनी राज्य अस्तित्व में आ जायेगा।
इस दौरान अब्बास मजबूती से बैठे रहना चाहते हैं, डायेल ने उनकी सोच को इस रूप में व्याख्यायित किया है:
अब्बास इस विचार को सिरे से खारिज करते हैं कि उन्हें भी तुलनात्मक रियायत देनी चाहिये जैसे कि इजरायल को एक यहूदी देश के रूप में मान्यता देना जिससे कि बडे पैमाने पर शरणार्थियों को नये सिरे से समायोजित करने का विषय नहीं उठेगा। इसके बजाय उनका कहना है कि वे पूरी तरह निष्क्रिय रहेंगे , " मैं इजरायल द्वारा बस्तियों को रोकने की प्रतीक्षा करूँगा' । उनका कहना है कि, " तब तक हमें पश्चिमी तट के बारे में वास्तविकता पता है कि लोग सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं"
अब्बास का सामान्य जीवन का विचार भी वाशिंगटन और उसके सहयोगियों की देन है ; पश्चिमी तट के फिलीस्तीनी विश्व में किसी भी विदेशी आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले गुट से कहीं अधिक प्रति व्यक्ति आय का सुख भोग रहे हैं, उदाहरण के लिये दिसम्बर 2007 में एक दानदाता सम्मेलन में अब्बास का संकल्प पूरा हुआ कि प्रत्येक पश्चिमी तट निवासी को प्रतिवर्ष 1,800 अमेरिकी डालर प्राप्त हो।
जैसा कि डायेल सटीक ही समाप्त करते हैं कि, " ओबामा के प्रशासन में फिलीस्तीनी होना अधिक आसान है"
यहाँ तक कि यदि कोई इस बात पर ध्यान देने के बजाय कि ईरान अपने परमाणु आधारभूत संरचना मे वृद्धि कर रहा है इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि जेरूसलम के लोग अपने घर में कितने अधिक कमरे बना रहे हैं और यदि यह अब्बास को हाथ से निकल जाने के विपरीत प्रभाव की अवहेलना कर रहा है तो अमेरिका नया रुख अंधकारमय है।
पहला, अमेरिका के दबाव के आगे नेतन्याहू का गठबंधन नहीं टूटेगा । जब उन्होंने मार्च 2009 मे सरकार बनाई थी तो केंसेट के 120 सदस्यों में से 69 इसमें शामिल थे जो कि बहुमत के 61 के आँकडे से काफी अधिक है। यदि अमेरिका प्रशासन नेतन्याहू के लक्ष्य से अधिक सहमति न रखने वाले दो दलों लेबर और शास को फोड भी लेने में सफल हो जाये तो भी वे बहुमत के लिये इनके स्थान पर दक्षिणपंथी और मजहबी दलों को अपने साथ लाकर शक्तिशाली बहुमत प्राप्त कर लेंगे।
दूसरा, पिछले आँकडे दर्शाते हैं कि जेरूसलम "शांति के लिये जोखिम" तभी उठाता है जब वह अमेरिका के सहयोगी पर भरोसा करता है। ऐसा प्रशासन जो इस नाजुक विश्वास की परवाह नहीं करता उसे इजरायल के नेतृत्व की उदासीनता का ही सामना करना होगा।
यदि वाशिंगटन अपने वर्तमान रुख पर कायम रहता है तो इसके परिणाम स्वरूप नीतिगत असफलता हाथ लगेगी जो कि मध्य पूर्व में अमेरिका के एकमात्र रणनीतिक सहयोगी को कमजोर करेगा और इससे भी अधिक अरब इजरायल तनाव को और बढायेगा।