बराक ओबामा के गृहभूमि सुरक्षा और आतंकवाद प्रतिरोध के सहायक जान ओ ब्रेनन ने 6 अगस्त को एक भाषण A New Approach for Safeguarding Americans में सुविधापूर्वक प्रशासन की पहले की और भविष्य की नीतिगत भूलों को रेखाँकित किया
सेंटर फार स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज इन वाशिंगटन में उनका उद्बोधन अस्वाभाविक तेवर लिये हुए था। इस भाषण के लिये "चापलूसी" शब्द मस्तिष्क में तैरता है जबकि ब्रेनन ने पाँच हजार शब्दों में नब्बे बार " राष्ट्रपति ओबामा" , "वे" , " वह" या फिर " राष्ट्रपति" शब्दों को बीच में लाये। परेशान करने वाली बात यह थी कि ब्रेनन ने अपने भाषण में सभी नीतियों या विचार को एक ही व्यक्ति को समर्पित किया। इस प्रकार गिडगिडाना और व्याख्यान हमें उत्तरी कोरिया के एक अधिकारी की याद दिलाता है जो कि अपने प्रिय नेता को श्रद्धाँजलि अर्पित कर रहा था।
व्याख्यान की विशेष तौर पर व्याख्या कोई बेहतर नहीं है। मूल रूप से यही है कि ब्रेनन ने आतंकवादियों का तुष्टीकरण करने का आह्वान किया, " एक ओर जहाँ हम आतंकवादियों द्वारा प्रयोग की जाने वाले अनुपयुक्त तरीकों का विरोध करते हैं और उनकी निंदा करते हैं तो वहीं हमें उन सामान्य लोगों की उपयुक्त माँगों और शिकायतों के बारे में सोचना चाहिये और उनका समाधान करना चाहिये जिनका प्रतिनिधित्व करने का दावा आतंकवादी करते हैं"। किस उपयुक्त माँग और शिकायत की बात कर रहे हैं किसी के लिये भी आश्चर्य है क्या उनकी दृष्टि में अल कायदा प्रतिनिधित्व करता है?
ब्रेनन ने अत्यंत ध्यानपूर्वक दोहरे खतरे को अलग अलग किया एक तो " अल कायदा और उसके सहयोगियों" से दूसरा , " हिंसक कट्टरपंथ" । लेकिन यह तो स्वतः स्पष्ट है कि पहला दूसरे का सहयोगी है। यह आरम्भिक भूल ही उनकी समस्त व्याख्या को मह्त्वहीन कर देती है।
इसके अतिरिक्त वे " हिंसक कट्टरपंथ" और इस्लाम के मध्य किसी सम्पर्क को नकार देते हैं:" उपयुक्त वाक्याँश जिहाद जिसका कि अर्थ स्वयं को शुद्ध करना या फिर नैतिक उद्देश्य के लिये पवित्र संघर्ष करना है उसका प्रयोग इस खतरे को उत्पन्न करता है कि इन ह्त्यारों को धार्मिक सहारा मिल जाता है जिसकी उन्हें आवश्यकता है परन्तु जिसके वे पात्र नहीं हैं। इससे भी बुरा यह है कि यह इस विचार को सशक्त करता है कि संयुक्त राज्य किसी प्रकार स्वयं इस्लाम के साथ युद्ध कर रहा है"
Tयह पंक्ति कट्टरपंथी इस्लाम के सिद्दांत की उपज है और यू एस कमांड एंड स्टाफ कालेज के लेफ्टिनेंट कर्नल जोसेफ सी मायर्स के अनुसार " यह रणनीतिक रूप से गलत सूचना , स्वीकार न करने और धोखा देने के अभियान का अंग है" इसका विकास मुस्लिम ब्रदरहुड ने किया था। 2007 में राबर्ट स्पेंसर द्वारा इसकी विश्वसनीयता समाप्त की गयी जो सिद्धांत अच्छे जिहाद और बुरे जिहाद के मध्य भेद करता है और इस्लाम व आतंकवाद के मध्य सम्बंध से इंकार करता है।
यह गम्भीर रूप से छलपूर्ण व्याख्या है जिसका आशय वास्तव में गैर मुसलमानों को भ्रमित करना और इस्लामवादियों को समय देना रहता है। जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन अपनी सभी भूलों के बाद भी इस चाल में नहीं फँसा था। परंतु ब्रेनन हमें सूचित कर रहे हैं कि उनके स्वामी अमेरिका की नीति इसी पर आधारित कर रहे हैं।
इस भाषण में अयोग्यता के परेशान कर देने वाले चिन्ह हैं। हमें पता है कि ओबामा आतंकवादियों के हाथ में परमाणु हथियार जाने को " विश्व की सुरक्षा के समक्ष तात्कालिक और सबसे बडा खतरा मानते हैं"। सही है , लेकिन इस पर उनकी प्रतिक्रिया क्या है? तीन कमजोर और प्रायः अप्रासंगिक कदमों के द्वार, " वैश्विक स्तर पर सशक्त अप्रसार शासन के प्रयास के लिये कदम बढाना ,एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास के द्वारा विश्व में दुष्ट हाथों में जाने की सम्भावना वाले परमाणु तत्वों की रक्षा करना, तथा वैश्विक परमाणु शिखर बैठक आयोजित करना"
क्या ब्रेनन सीधा सीधा नहीं सोच सकते। एक उदाहरण के लिये भारी भरकम उद्धरण की आवश्यकता होती है।
" हिंसा और आतंकवाद का कारण गरीबी नहीं है। शिक्षा की कमी से भी आतंकवाद नहीं उत्पन्न होता। जिस प्रकार निर्दोष लोगों की हत्या के लिये कोई कारण क्षम्य नहीं हो सकता वैसे ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब बच्चों को शिक्षा के लिये कोई आशा नहीं बचती , जब युवा को रोजगार के लिये कोई आशा नहीं रहती और वह आधुनिक विश्व से स्वयं को कटा हुआ अनुभव करता है , जब सरकारें अपने लोगों को मूलभूत सुविधायें देने में असफल रहती हैं तब लोग हिंसा और मृत्यु की विचारधारा की ओर आकर्षित होते हैं"
संक्षेपीकरण : गरीबी और शिक्षा का अभाव गरीबी का कारण नहीं है, परंतु शिक्षा का अभाव और रोजगार का अभाव लोगों को आतंकवाद के विचार की ओर आकर्षित करता है। क्या भेद है इनमें? हम क्या करें जब व्हाइट हाउस ही आतर्किक को विश्लेषण के रूप में प्रस्तुत करता है।
चलिये हम बयान पर ध्यान देते हैं, " जब सरकारें अपने लोगों की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने में असफल होती हैं तो लोग हिंसा और मृत्यु की विचारधारा की ओर आकर्षित होते हैं", इसमें दो त्रुटियाँ हैं। पहला, इसमें समाजवादी कल्पना है कि सरकारें मूलभूत आवश्यकतायें उपलब्ध कराती हैं। नहीं, कुछ वस्तु समृद्ध राज्यों में सरकारें सुरक्षा करती हैं और वैधानिक ढाँचा उपलब्ध कराती हैं जबकि बाजार इसे उपलब्ध कराता है।
दूसरा, इस विषय पर प्रत्येक अध्ययन में व्यक्तिगत तनाव ( गरीबी, शिक्षा का अभाव, बेरोजगारी) और कट्टरपंथी इस्लाम के प्रति आकर्षण में कोई सम्बंध नहीं पाया गया है। यदि कोई है भी तो यह कि 1970 से मध्य पूर्व की ओर विशाल मात्रा में सम्पत्ति के हस्तांतरण से कट्टरपंथी इस्लाम के उत्थान में सहयोग मिला है। प्रशासन अपनी नीतियों का आधार असत्य को बना रहा है।
जैसा कि वे कहते हैं कि वयस्क निगरानी? ब्रेनन द्वारा रेखाँकित अयोग्य नीतियों को लागू करना अमेरिका के लोगों, अमेरिका के हितों और अमेरिका के सहयोगियों के घातक है। इन भूलों के कटु परिणाम शीघ्र ही मिलने आरम्भ हो जायेंगे।