जैसे जैसे सीरिया की सरकार सत्ता में बने रहने के लिये तरह तरह के हथकण्डे अपना रही है उसी मात्रा में लीबिया की तर्ज पर सैन्य हस्तक्षेप की माँग भी बढती जा रही है। निश्चित रूप से नैतिक रूप से यह अत्यंत आकर्षक दिखता है । लेकिन क्या पश्चिमी देशों को इस सलाह का पालन करना चाहिये? मेरी दृष्टि में नहीं।
जो लोग कार्रवाई की माँग कर रहे हैं वे प्रायः तीन श्रेणियों के लोग हैं : वे सुन्नी मुसलमान जो कि अपने साथी सुन्नियों के लिये चिंतित हैं , हत्या और क्रूरता रोकने के लिये वैश्विक चिंता तथा इस संघर्ष को लेकर भूराजनैतिक स्थिति पर पड्ने वाला प्रभाव। पहले दो उद्देश्यों को तो सरलता से अस्वीकार किया जा सकता है । यदि तुर्की, सऊदी अरब या कतर की सुन्नी सरकारें अपने सुन्नी साथियों के पक्ष में अलावी के विरुद्ध हस्तक्षेप करना चाहती हैं तो यह उनका विशेषाधिकार है लेकिन इसमें पश्चिमी देशों का कोई हित दाँव पर नहीं है।
सामान्य तौर पर मानवीय चिंता के विषय का इतना सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें भी सत्यता , व्यावहारिकता और परिणामों का प्रश्न आता है। शासन विरोधी उग्रवादी जो कि युद्ध भूमि में अग्रसर हो रहे हैं वे भी कुछ उत्पीडन के लिये उत्तरदायी हैं। पश्चिमी मतदाता मानवीय हस्तक्षेप के लिये दी जाने वाली रक्त और कोष की कीमत को सम्भवतः स्वीकार नहीं करेंगे। इसे शीघ्र ही सफल होना होगा वह भी एक वर्ष के भीतर । उत्तराधिकारी सरकार वर्तमान अधिनायकवादी सरकार से भी बुरी सिद्ध हो सकती है (जैसा कि लीबिया के मामले में हुआ) । ये सभी तथ्य एक साथ मानवीय हस्तक्षेप के विरुद्ध तर्क के लिये प्रेरित करते हैं।
विदेश नीति से सम्बंधित लाभ को सर्वोपरि रखा जाना चाहिये क्योंकि पश्चिमी इतने शक्तिशाली और सुरक्षित नहीं हैं कि वे सीरिया की ओर केवल सीरिया की चिंता से देखें इसके स्थान पर उन्हें देश को रणनीतिक रूप से देखना चाहिये और अपनी सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिये।
वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फार नियर ईस्टर्न पोलिसी के राबर्ट साटलोफ ने The New Republic में समीक्षा की है कि क्यों सीरिया में गृह युद्ध अमेरिका के हितों के लिये खतरा उत्पन्न करता है : असद शासन अपने रासायनिक और जैविक हथियारों से अपना नियंत्रण खो सकता है : यह अंकारा के विरुद्ध PKK के उग्रवाद को नये सिरे से आरम्भ कर सकता है: इस पूरे संघर्ष को क्षेत्रीय स्वरूप देने के लिये यह अपनी फिलीस्तीनी जनसंख्या को जार्डन,लेबनान और इजरायल की सीमा पर भेज सकता है , लेबनान के सुन्नी से युद्ध कर लेबनान के गृह युद्ध को तीव्र कर सकता है। इसके उत्तर में सुन्नी जिहादी लडाके सीरिया को एक हिंसक इस्लामवादी आतंकवाद के हिस्से में परिवर्तित कर सकते हैं जो कि नाटो और इजरायल की सीमा से सटा है। अंत में उन्हें इस बात की चिंता है कि लम्बे समय तक चलने वाला संघर्ष इस्लामवादियों को कहीं अधिक अवसर प्रदान करता है जबकि शीघ्रता से संघर्ष समाप्त होने पर उन्हें यह अवसर नहीं मिलता।
इसके उत्तर में मेरा कहना है कि हाँ जनसंहारक हथियार दुष्ट हाथों में जा सकते हैं लेकिन मेरी चिंता उनके इस्लामवादी उत्तराधिकारी सरकार के हाथों में जाने की है। पश्चिम के विरुद्ध तुर्की सरकार के विरुद्ध यदि PKK उग्रवाद बढता है या फिर उस देश में सुन्नी अलेवी तनाव बढता है तो शायद ही इसे पश्चिम की बडी चिंता सिद्ध किया जा सकता हो। फिलीस्तीनियों को निकाले जाने से जार्डन और इजरायल के अस्थिर होने की सम्भावना भी कम है। लेबनान तो पहले से ही पूरी तरह बिखरा और टूटा है और अब 1976 से 91 के मध्य हुए आंतरिक संघर्ष के विपरीत अब यदि ऐसा होता है तो इसका पश्चिमी हितों पर अत्यंत कम प्रभाव होगा। वैश्विक जिहाद प्रयास की क्षमता सीमित है लेकिन क्या अच्छा हो यदि ( ईरान के ईरानियन रेवोल्यूशनरी गार्ड कार्प ) सीरिया में लडते हैं?
अभी समय पश्चिमी हितों के विपरीत है: यदि सीरिया में संघर्ष तत्काल बंद भी हो जाये तो भी मुझे इस बात की सम्भावना नहीं दिखती कि बहु नस्ली और बहुल समर्थक सरकार वहाँ उभर सकती है। चाहे अभी या देर में हो असद और उनकी पत्नी के हटने के बाद इस्लामवादी सत्ता पर नियंत्रण कर लेंगे, सुन्नी प्रतिशोध लेंगे और सीरिया के भीतर क्षेत्रीय तनाव बढ जायेगा।
इसके साथ ही असद शासन को अपदस्थ करने का अर्थ यह नहीं है कि सीरिया में गृह युद्ध तत्काल समाप्त हो जायेगा। इस बात की सम्भावना अधिक है कि असद के शासन के बाद अलावी तथा अन्य ईरान समर्थक तत्व नई सरकार का प्रतिरोध करेंगे। अधिक से अधिक यह होगा जैसा कि गैरी गैम्बिल ने संकेत किया है कि पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेप नयी सरकार के विरोध को सशक्त करेगा और युद्ध को लम्बा खींचेगा। अंत में ( जैसा कि पूर्व में इराक के मामले में हुआ) सीरिया में खिंचने वाला लम्बा संघर्ष अनेक भूराजनीतिक लाभ भी देगा।
- इससे दमिश्क के इजरायल के साथ युद्ध करने या लेबनान पर पुनः नियंत्रण की सम्भावना कम हो जाती है।
- इस बात की सम्भावना बढ जाती है मुल्लाओं के अँगूठे के नीचे रह रहे ईरानी और असद के मुख्य सहयोगी सीरिया के असन्तोष से सबक लें और अपने शासकों के विरुद्ध उठ खडे हों।
- इससे तेहरान के विरुद्ध सुन्नी अरब का आक्रोश अधिक बढेगा विशेष रूप से तब जबकि इस्लामिक रिपब्लिक आफ ईरान सीरिया के लोगों को दबाने के लिये शस्त्र , वित्तीय सहायता और तकनीक उपलब्ध करा रहा है।
- यह गैर मुसलमानों पर से दबाव ह्टाता है जो कि नये विचार का संकेत है, जार्डन के सलाफी नेता अबू मोहम्मद तहावी ने अभी हाल मे कहा है, " अलावी और शिया गठबंधन सुन्नियों के लिये सबसे बडा खतरा है और यहाँ तक कि इजरायल से भी अधिक" ।
- इससे मध्य पूर्व का आक्रोश मास्को और बीजिंग की ओर और बढता है जो कि असद शासन की सहायता कर रहे हैं।
पश्चिमी हित यही कहते हैं कि सीरिया के मामले से अलग रहो।