अपने परमाणु आधारभूत ढाँचे पर इजरायल के आक्रमण पर ईरानी कैसी प्रतिक्रिया करेंगे? इस भविष्यवाणी का उत्तर काफी मह्त्व रखता है, इससे केवल जेरूसलम का निर्णय प्रभावित नहीं होता वरन इसका मह्त्व इस बात को लेकर भी है कि अन्य राज्य किस प्रकार इजरायल के आक्रमण को रोकने का प्रयास करते हैं?
आम तौर पर विश्लेषक संतुलन और घेरने की नीति के समर्थन में सबसे अच्छी भविष्यवाणी करते दिखते हैं ( कुछ टिप्प्णीकार तो काफी दूर तक जाकर ईरान की परमाणु क्षमता का स्वागत भी करते हैं) और इस बात की भविष्यवाणी करते हैं कि आक्रमण से अभी तक का सबसे घातक परिणाम सामने आयेगा। उनकी दृष्टि में तेहरान प्रतिक्रिया में जो कुछ भी सम्भव होगा वह करेगा जैसे कि, अपहरण, आतंकवाद, मिसाइल से आक्रमण , नौसेना परिवहन से संघर्ष तथा होर्मुज के जलडमरू को बंद करना आदि। इन सभी आकलन में दो तथ्यों की अवहेलना की गयी है: इससे पूर्व भी शत्रु देशों द्वारा परमाणु हथियार विकसित करने पर आक्रमण करने इजरायल द्वारा आक्रमण करने पर कोई जवाबी कार्रवाई नहीं हुई चाहे वह इराक में 1981 या सीरिया में 2007 में आक्रमण हो :और 1979 से लेकर अभी तक इस्लामी गणतंत्र ईरान की समीक्षा करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि " परमाणु हथियार को रोकने के लिये किये जाने वाले आक्रमण की प्रतिक्रिया अत्यंत नपी तुली और विनाशक नहीं होगी" ।
ये शब्द वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फार नियर ईस्टर्न पोलिसी के माइकल आइसनदात और माइकल नाइट्स के हैं जो कि अपने अध्ययन Beyond Worst-Case Analysis: Iran's Likely Responses to an Israeli Preventive Strike में इस आक्रमण के सम्भावित दृश्यों के प्रति दिशानिर्देशित कर रहे हैं। पिछ्ले तीन दशक के तेहरान के व्यवहार का सर्वेक्षण करने के उपरांत उन्हें यह पूर्वाभास होता है कि प्रमुख रूप से तीन सिद्धांत हैं जो कि इजरायल के आक्रमण के बाद भी तेहरान की प्रतिक्रिया पर भारी पडेंगे। जैसा व्यवहार किया जा रहा है बदले में उसी प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा, अपनी ओर से शत्रु न बनाने को लेकर सतर्कता तथा इजरायल ( या अमेरिका) के अन्य आक्रमणों से बचने की इच्छा।
दूसरे शब्दों में मुल्लाओं के पास प्रतिक्रिया की क्षमता सीमित होगी जिसमें कि सैन्य कमजोरी तथा अधिक बाहरी शत्रु न बनाने की तात्कालिक आवश्यकता। इन दिशानिर्देशों के आधार पर आइसनदात और नाइट्स ईरान की सम्भावित प्रतिक्रिया को कुल आठ स्वरूपों में देख पाते हैं और इन सभी को इस विकल्प के साथ देखा जाना चाहिये कि मसीहाई मानसिकता के इस्लामवादी परमाणु हथियार पर नियंत्रण स्थापित करने वाले हैं।
- इजरायली, यहूदी और अमेरिकी निशानों पर आतंकवादी आक्रमण सम्भव है लेकिन सीमित विनाश करेगा।
- अमेरिका के नागरिकों का अपहरण विशेष रूप से इराक में इसकी सम्भावना है लेकिन इसका परिणाम भी सीमित होगा जैसा कि 1980 में लेबनान में हुआ था।
- इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकावासियों पर आक्रमण इसकी सम्भावना अधिक है विशेष रूप से छ्द्म रूप से लेकिन इससे भी सीमित क्षति होगी।
- इजरायल पर मिसाइल से आक्रमण : इस बात की सम्भावना है कि कुछ मिसाइलें ईरान की ओर से इजरायल की सुरक्षा पंक्ति को भेद सकती हैं और कुछ कम सैकडे में मानवीय क्षति हो सकती है : लेबनान की घरेलू स्थिति को देखते हुए हेजबुल्लाह की ओर से मिसाइलें सीमित मात्रा में ही आयेंगी। इस बात की सम्भावना नहीं है कि हमास इसमें शामिल होगा क्योंकि इसने तेहरान से दूरी बना ली है, सीरिया की सरकार अत्यंत शक्तिशाली विरोधी सेना से अपने जीवन के लिये संघर्ष कर रही है सम्भव है कि इसमें तुर्की की सेना भी सीरिया के विरुद्ध शामिल हो जाये। कुल मिलाकर मिसाइल आक्रमण से विनाशकारी क्षति की सम्भावना नहीं है।
- पडोसी राज्यों पर आक्रमण कर तेहरान अधिक शत्रु नहीं बनाना चाहेगा।
- अमेरिका की नौसेना के साथ संघर्ष :ऐसा भी सम्भव है लेकिन शक्ति संतुलन की स्थिति को देखते हुए इसमें भी सीमित क्षति ही होगी।
- होर्मुज के जलडमरूमध्य को अप्रत्यक्ष रूप से खोद दे: इस बात की भी सम्भावना है जिससे कि ऊर्जा के मूल्य में वृद्धि हो जायेगी।
- होर्मुज जलडमरूमध्य को बन्द करने का प्रयास: इस बात की सम्भावना एकदम नहीं है क्योंकि ऐसा कर पाना कठिन है और ऐसा करना ईरान के हित के लिये अत्यंत घातक है क्योंकि व्यापार के लिये इस देश को भी इस जलडमरूमध्य की आवश्यकता है।
लेखकों ने इजरायल के आक्रमण से उत्पन्न होने वाले तीन अन्य प्रभाव भी गिनाये हैं। यह बात सत्य है कि ईरान के लोग एक साथ अपनी सरकार के पीछे खडे होंगे परन्तु दीर्घगामी रूप में तेहरान की इस बात के लिये आलोचना होगी कि, " उन्होंने परमाणु मामले को ठीक से नहीं हल किया जिसके चलते कि बात सैन्य टकराव तक आ गयी" । किसी भी बाह्य सैन्य आक्रमण पर अरब की सडकों पर लोगों के उतरने की भविष्यवाणी तो सदैव ही की जा सकती है लेकिन ऐसा कभी नहीं होता क्योंकि फारस की खाडी के शियाओं के मध्य उत्पन्न असन्तोष को संतुलित करने के लिये अनेक अरब देश इजरायल के पक्ष में प्रसन्न हो रहे होंगे। जहाँ तक परमाणु अप्रसार संधि को छोड कर प्रत्यक्ष रूप से परमाणु कार्यक्रम को चलाने की बात है तो जितना अधिक ईरान प्रतिक्रिया करेगा उतना ही अधिक उन्हें उस कार्यक्रम को चला पाने में कठिनाई होगी।
कुल मिलाकर ये खतरे सुखद नहीं हैं परंतु विनाशकारी नहीं हैं और इनका प्रबंधन हो सकता है। आइसनदात और नाइट्स इस बात की अपेक्षा करते हैं कि ईरान एक सीमित अवधि के लिये उच्चतम स्तर पर भीषण प्रतिक्रिया देगा जिसके चलते एक निम्न स्तर का दीर्घकालिक संघर्ष होगा जो कि कुछ माह या फिर कुछ वर्ष तक चल सकता है जैसा कि ईरान और इजरायल के मध्य चल ही रहा है। उनका निष्कर्ष है कि इजरायल द्वारा परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिये किया जाने वाला आक्रमण " एक उच्च स्तर का जोखिमभरा कार्य होगा जो कि सीरिया, जार्डन सहित खाडी तक फैल सकता है लेकिन यह इतना विनाशकारी नहीं होगा जैसा कि कुछ लोग मानकर चल रहे हैं"।
इस विश्लेषण से इस बात पर सहमत हुआ जा सकता है कि ईरान को परमाणु सम्पन्न बनने से रोकने के लिये सैन्य आक्रमण के खतरे से ईरान के हाथों में परमाणु हथियार जाने का खतरा कहीं अधिक भयावह है।