फिलीस्तीनियों के मध्य स्थित विभाजन पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता , अरब इजरायल संघर्ष का अकादमिक और पत्रकारिक विवरण देने के क्रम में जोनाथन स्कैंजर ने इस ओर संकेत किया है। इसके बजाय प्रचार की आधिकारिक और अनुचित दलीय दलील की ओर ही अधिक झुकाव रहता है। उद्धरण के लिये फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्गनाइजेशन का पूर्व कर्मचारी राशिद खलीदी इस समय कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहा है। एक " समान फिलीस्तीनी पहचान अस्तित्वमान है" । सभी फिलीस्तीनी एक हैं इसी के साथ पूर्णविराम और यहीं कहानी समाप्त हो जाती है।
यह अत्यंत साधारणीकरण और इतिहास से परे की समझ बाहरी लोगों द्वारा फिलीस्तीनियों को देखने को भारी मात्रा में प्रभावित करती है और इस प्रक्रिया में अन्य प्रकार की कुछ अलग व्याख्या को पूरी तरह नजरांदाज कर दिया जाता है और इस पूरे संघर्ष को एकपक्षीय रूप से देखा जाता है जिसमें कि 1948 से पूर्व का समय, समग्र अरबवाद के प्रभावी दिनों , फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्गनाइजेशन और विशेष रूप से 20 वर्षों 1987 से 2007 के मध्य के समय पर विशेष चर्चा नहीं होती जिसका अध्ययन स्कैंजर ने इन पृष्ठों में किया है। जैसा कि वे कहते हैं, " एक ओर जहाँ अमेरिका के मुख्यधारा मे मीडिया ने फिलीस्तीनियों और इजरायल के मध्य हिंसा को खूब दिखाया है तो वहीं " फिलीस्तीन के लिये अन्य संघर्ष" जो कि हमास और फतह के मध्य हुआ उसे अमेरिका में या तो दिखाया ही नहीं गया या अत्यंत कम दिखाया गया"।
अनेक विविधतायें फिलीस्तीनियों को विभाजित करती हैं मुस्लिम और ईसाई, शहरी और ग्रामीण, स्थायी रूप से रहने वाले या घुमंतू, अमीर और गरीब तथा प्रादेशिक । आधुनिक मध्य पूर्व के अत्यंत प्रतिभाशाली इतिहासकार स्कैंजर यहाँ फिलीस्तीनियों के मध्य दो विशेष तनावों के स्वभाव , सीमा और महत्व की चर्चा करते हैं जो कि मुख्य रूप से हमास और फतह के मध्य का संघर्ष है और जिसका कि अत्यंत तात्कालिक और अधिक राजनीतिक महत्व है और इसके साथ ही यह पश्चिमी तट और गाजा के मध्य विरोधाभास को लेकर भी इसका महत्व है।
हमास बनाम फतह ने दोनों गुटों के सम्बंधों का इतिहास 1987 में हमास के उद्भव और गाजा में 2007में हमास की विजय से देखा है , इसके उपरांत इस शत्रुवत और नाजुक सम्बंधों के परिणामों का सर्वेक्षण किया है। संक्षेप में स्कैंजर ने साथ ही इस समयावधि में फतह के कमजोर होने और हमास के शक्तिशाली होने को भी भाँपा है। 2008 तक फतह के नेता महमूद अब्बास काफी कमजोर हो गये , " रामल्लाह के मुकाता परिसर के राष्ट्रपति से अधिक नहीं" जबकि हमास " का गाजा पर अधिकार हो गया" और पश्चिमीतट में सत्ता पर नियंत्रण की धमकी दी, सैकडों राकेट इजरायल में भेजे और यहाँ तक कि मिस्र की सरकार को भी चुनौती दी।
भाग्य में आये इस नाटकीय परिवर्तन का कारण अनेक तत्व रहे लेकिन इन सबमें जो सबसे महत्वपूर्ण कारण रहा कि जहाँ यासिर अराफात का फतह सभी फिलीस्तीनियों के लिये सभी कुछ था तो वहीं हमास कहीं अधिक व्यस्थित आंदोलन है जो कि स्थाई स्वरूप और विशेष उद्देश्य के साथ है। बार बार स्कैंजर ने दिखाया है कि किस प्रकार हमास के अनुशासन और उद्देश्य ने भ्रष्ट और असंगठित फतह पर बढत बनाई ।
फिलीस्तीनियों का आत्मविनाश चाहे उसकी उपेक्षा की जाये या नहीं अमेरिका की विदेश नीति की सबसे बडी चिंता है। 1993 से जबसे वाशिंगटन ने यासिर अराफात , फतह , फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गनाइजेशन , फिलीस्तीन अथारिटी के पीछे अपनी शक्ति लगाई और आशा के विपरीत यह आशा की कि लम्बे समय तक सोवियत संघ के साथ रहने वाला क्रांतिकारी आन्दोलन ऐसा स्वरूप ग्रहण कर लेगा कि वह अच्छे प्रशासन और यथास्थिति की एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
अनेक अवधारणागत भूलों के साथ इस आशा में यह भी अंतर्निहित था कि हमास और फतह के मध्य 1987 से फिलीस्तीन की सडकों पर चल रही प्रतिस्पर्धा पर भी कम ध्यान दिया गया , एक ऐसी प्रतिस्पर्धा जिसके चलते फतह स्वयं को इस रूप में प्रदर्शित नहीं कर सकता था कि वह इजरायल के प्रति नरम है और इस कारण इजरायलवाद विरोध में हमास से भी कहीं आगे है। यह देखते हुए कि फतह बारी बारी से इजरायल की सरकारों के साथ बातचीत कर रहा था और उसे इजरायल और पश्चिमी मीडिया में हल्का शोर करना था साथ ही संगठन को धरातल पर कहीं अधिक तीव्र विरोध करना होता था। अमेरिका( इजरायल) के नीतिनिर्धारकों ने जिसे संयोग बताकर अधिक महत्व नहीं दिया उसका अधिक गहरा परिणाम हुआ , यह कहना पर्याप्त होगा कि 1993 के अंतिम दिनों से फिलीस्तीन की जनता द्वारा इजरायल को एक यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार करने की सम्भावना काफी कम होती गयी और इस हद तक कि अब यह कुल राजनीति का पाँचवा भाग ही रह गयी है।
स्कैंजर ने इसे भी अभिलेखित किया है कि अमेरिका की विदेश नीति द्वारा फतह और हमास के फितना ( आन्तरिक संघर्ष के लिये अरबी शब्द) पर अधिक ध्यान न दिये जाने का क्या प्रभाव हुआ है। इसका एक परिणाम तो यह हुआ कि जनवरी 2006 के चुनावों तक फिलीस्तीनी जनता के मन को जाना नहीं जा सका और वाशिंगटन उन्हें प्रसन्न करने में ही लगा रहा।
इस बात की अपेक्षा रही कि प्रिय फतह को विजय प्राप्त होगी परंतु जब चुनाव हुए तो फतह पर हमास की शानदार विजय सभी के लिये स्तब्ध करने वाला परिणाम रहा। स्कैंजर के अनुसार 2007 के आरम्भ में फतह और हमास के मध्य संघर्ष की अपेक्षाकृत कमजोर रिपोर्टिंग के चलते हमास द्वारा जून में गाजा पर विजय प्राप्त कर लेना बुश प्रशासन के लिये एक और स्तब्ध कर देने वाली घटना रही। संक्षेप में जो लोग अमेरिका के हितों के लिये उत्तरदायी थे उन्होंने हमास के सत्ता में आने से सम्बंधित दो प्रमुख घटनाक्रमों को न तो देखा और न ही इसके बारे में कोई अनुमान लगा पाये। इन मुद्दों की इतनी सीमित समझ के चलते नीतिगत भूलें होना स्वाभविक है।
ऐसा क्यों? फिलीस्तीनियों के परस्पर मतभेद की सीमा और उसके महत्व को देखते हुए इस विषय की इतनी उपेक्षा क्यों हुई है? स्कैंजर इस संवेदनशील विषय से स्वयं को अलग रखते हैं जो शायद बुद्धिमत्तापूर्ण भी है, परन्तु कोई शोधकर्ता इनसे क्यों अलग है इसका कारण भी दिया जाना चाहिये। इससे यह सिद्ध होता है कि कुछ अकादमिक लोग सही मायने में फिलीस्तीन के बारे में रुचि रखते हैं। नहीं तो अधिकतर इस छोटी और अस्पष्ट जनसंख्या के लोगों पर विशाल स्तर पर ध्यान देते हैं क्योंकि इससे उन्हें इजरायल की छवि धूमिल करने का हथियार प्राप्त होता है।
जो संगठन इजरायल के सभी कदमों की आलोचना करने का आशय रखते हैं वे एक तरीके से फिलीस्तीनियों की अल्प शिकायतों के स्वामी बन गये हैं। वे पश्चिमी तट की बस्तियों और परिवहन परिपाटी को अभिलेखित करने से लेकर गाजा में जल और विद्युत ग्रिड के साथ ही जेरूसलम के पवित्र स्थल तक पहुँचने में होने वाली बाधा को लेकर चिंतित रहते हैं। जो लोग इजरायल को बुरे रूप में चित्रित करना चाहते हैं वे फिलीस्तीनियों के मध्य अनेक आरोपों को लगाकर जैसे सामूहिक मृत्यु दण्ड, उत्पीडन , अस्पताल की सुविधा से वंचित रखना उनके मध्य लोकप्रिय हो जाते हैं लेकिन इनके मध्य फिलीस्तीनियों की वास्तविक चिंताओं को लेकर भ्रमित नहीं होना चाहिये। और न ही इस आधार पर फिलीस्तीनी जीवन को समझा जा सकता है।
विशेष रूप से यह बात मुझे प्रसन्न करती है कि लेखक ने अपने अध्ययन के लिये कुछ आरम्भिक शोध मिडिल ईस्ट फोरम के साथ किये हैं जिस शोध संस्थान को मैं निर्देशित करता हूँ , विशेष रूप से फतह बनाम हमास , तुलनात्मक फिलीस्तीनी विप्लव तथा गाजा और पश्चिमी तट विभाजन। यह अंतिम बहस अध्याय 11 में विस्तारपूर्वक दी गयी है जो कि " दो फिलीस्तीनियों" के मध्य बढते मतभेद पर उपयोगी पुनरीक्षण है , एक ऐसा विषय जिस पर कि अंग्रेजी में शायद ही कुछ लिखा गया है केवल जोनाथन स्कैंजर को छोडकर।
अरब इजरायल संघर्ष पर अधिकाँश पुस्तकें धरातल को उल्लिखित नहीं करतीं। हमास बनाम फतह एक महत्वपूर्ण विषय पर मौलिक व्याख्या प्रस्तुत करती है।