आखिर तुर्की की सरकार ने सीरिया की असद सरकार के विरुद्ध इतना आक्रामक रुख क्यों अपनाया?
सम्भवतः प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन ने सोचा कि सीरिया में हथियारों से आक्रमण करने से दमिश्क में एक उपग्रह सरकार की स्थापना करने में सफल हो जायेंगे। सम्भवतः उन्होंने यह भी आशा की कि सीरिया के वायुक्षेत्र में तुर्की का युद्धक विमान भेजने से या रूस के रास्ते से आ रहे सीरिया के नागरिक विमान को नीचे उतारने से वे अधिक ऋण लेने से अवश्यंभावी आर्थिक संकट की ओर से लोगों का ध्यान हटा सकेंगे।
एरडोगन का यह व्यवहार पचास वर्ष पूर्व के संदर्भ में सटीक बैठता है। शीत युद्ध के समय अंकारा ने नाटो सदस्य के रूप में वाशिंगटन का साथ दिया जबकि दमिश्क ने मास्को के लिये मध्य पूर्व के क्यूबा के रूप में कार्य किया, एक ऐसा राज्य जो कि समर्पित था। तुर्की और सीरिया के खराब सम्बन्धों के स्थानीय कारण भी है , जिसमें कि सीमा विवाद, जल संसाधन को लेकर असहमति तथा कुर्द आतंकवादी गुट पीकेके को सीरिया का मिलने वाला समर्थन शामिल हैं। दोनों राज्य 1998 में तो युद्ध की स्थिति में आ गये थे जब असद सरकार के समय रहते समर्पण कर देने से सैन्य संघर्ष टल गया।
नये युग का आरम्भ नवम्बर 2002 में हुआ जब एरडोगन की एकेपी ने, एक चतुर इस्लामवादी राजनीतिक दल ने आतंकवाद से बचते हुए वैश्विक खिलाफत की बात की तथा लम्बे समय तक अंकारा पर प्रभाव स्थापित करने वाले केंद्रीय दक्षिणपंथ और वामपंथियों को स्थानांतरित कर दिया। पूरी तरह प्रशासन पर ध्यान देकर और अर्थ व्यस्था की असाधारण उन्नति के चलते एकेपी का जनमत बढता गया और 2002 में जो एक तिहाई था वह 2011 में 1\2 हो गया। इससे एरडोगन को अतातुर्क की क्रांति की उपलब्धियों को समाप्त कर तुर्की में शरिया की स्थापना के अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग मिल गया।
इसके बीज को भाँप कर एकेपी ने वाशिंग़टन की सुरक्षा छतरी को हटा दिया और अपनी ओर से एक स्वतंत्र नव आटोमन कार्यव्यवहार अपनाया ताकि सदियों पूर्व की भाँति क्षेत्रीय शक्ति बना जा सके। इसके लिये सीरिया के साथ दशकों पुरानी शत्रुता को समाप्त करना था तथा अच्छे व्यवसाय व अन्य सम्बंधों के साथ इस पर प्रभाव बढाना था , इसके प्रतीक के रूप में संयुक्त सैन्य अभ्यास आरम्भ हुए, एरडोगन और असद ने एक साथ अपनी छुट्टी मनायी और सही अर्थों में उनके मंत्रियों के सहयोग से एक बैरियर खडा किया गया जिसने कि उनकी परस्पर सीमा को बंद कर रखा था।
जनवरी 2011 में उनकी योजनायें अलग हो गयीं जब सीरिया के लोग चालीस वर्षों के असद के भाई भतीजावाद से आंदोलित हो गये पहले तो अपने उत्पीडक को हटाने का यह प्रयास अहिंसक रहा। एरडोगन ने आरम्भ में असद को रचनात्मक राजनीतिक सुझाव दिये जिन पर कि उन्होंने हिंसक रूप से दबाने के क्रम में कोई ध्यान नहीं दिया। इसकी प्रतिक्रिया में सुन्नी एरडोगन ने भावुकतापूर्वक अलावी असद से किनारा कर लिया और व्यापक सुन्नी विद्रोही सेना को सहायता आरम्भ कर दी। जब संघर्ष अधिक बर्बर, साम्प्रदायिक और इस्लामवादी बनाता गया और सुन्नी अलावी गृह युद्ध का स्वरूप लेता गया जिसमें कि 30,000 की मृत्यु हुई , इससे अधिक घायल हुए और इससे भी अधिक अपने स्थान से हटाये गये तब ऐसी स्थिति में तुर्की में शरण और सहायता अपरिहार्य हो गयी।
आरम्भ में जो एरडोगन की सबसे बडी चाल दिख रही थी वह उनकी पहली बडी भूल में बदल गयी है। सैन्य नेतृत्व को कमजोर करने के लिये उन्होंने जिस प्रकार भयानक षडयंत्रकारी सिद्धांतों का सहारा लिया उसके चलते वे काफी निष्प्रभावी लडाकी शक्ति बन चुके हैं। सीरिया से अनागंतुक शरणार्थी तुर्की की सीमा से शहरों और उससे परे भीड जमा कर चुके हैं। तुर्क सीरिया के प्रति युद्ध नीति की बडे पैमाने पर विरोध कर रहे हैं और विशेष रूप से इसका विरोध अलेवी मजहबी समुदाय की ओर से हो रहा है जो कि तुर्की की जनसंख्या का 15 से 20 प्रतिशत हैं और सीरिया के अलावी से अलग हैं परंतु उनके साथ उनकी शिया विरासत मिलती जुलती है। असद ने बदला लेते हुए पीकेके को पुनर्जीवित कर दिया है जिसकी बढती हिंसा ने एरडोगन के लिये घरेलू समस्या खडी कर दी है। वास्तव में कुर्द लोगों ने प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के उपरांत मध्य पूर्व की स्थापना पर अपना अवसर खो दिया था वे पहली बार तुर्की, सीरिया, इराक और यहाँ तक कि ईरान के भी कुछ भाग की कल्पना के साथ कुर्द राज्य को चित्रित कर पा रहे हैं।
दमिश्क के पास अब भी मास्को के रूप में एक शक्तिशाली संरक्षक उपलब्ध है, जहाँ कि व्लादिमीर पुतिन की सरकार ने अब भी शस्त्र और संयुक्त राष्ट्र संघ के वीटो के रूप में अपनी सहायता प्रदान कर रखी है। इसके साथ ही असद को ईरान की क्रूर और मानवीय सहायता से भी लाभ प्राप्त हो रहा है जो कि मुल्ला शासन के गम्भीर आर्थिक संकट के बाद भी जारी है। इसके विपरीत अंकारा अब भी औपचारिक रूप से नाटो का सदस्य है और इसके प्रसिद्ध धारा 5 का सैद्दांतिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त कर रहा है जिसके अनुसार यदि एक सदस्य देश पर कोई सैन्य आक्रमण होता है तो " इसके लिये आवश्यक रूप से कार्रवाई हो सकती है जिसमें कि सशस्त्र सेना का उपयोग भी शामिल है" , परंतु नाटो के शक्तिशाली सदस्यों ने सीरिया में हस्तक्षेप का कोई आशय नहीं दिखाया है।
एक दशक की सफलता एरडोगन के सर चढ गयी है और इसके चलते वे सीरिया में यह हाल कर बैठे इसके चलते उनकी लोकप्रियता घट सकती है। वे अब भी अपनी भूल से सीख लेकर पीछे हट सकते हैं परंतु अंकारा का बादशाह असद सरकार के विरुद्ध अपने जिहाद को दुगुना कर रहा है और इससे इसके पतन और मुक्त होने की सम्भावना बढ रही है।
अपने आरम्भिक प्रश्न का उत्तर कि तुर्की की शत्रुता एक व्यक्ति की महत्वाकाँक्षा और अहंकार का परिणाम है । पश्चिमी राज्यों को इससे पूरी तरह अलग रहना चाहिये और अपनी योजना अपने हितों के अनुरूप ही बनानी चाहिये।