पिछले साठ वर्षों में इजरायल किसी भी देश की अपेक्षा कहीं अधिक अपने ढंग से जिया है।
इसका उत्कर्ष - जब दो हजार वर्ष पुराने राज्य की पुनर्स्थापना 1948 में हुई , 1967 में बेहद असंतुलित सैन्य विजय प्राप्त की , 1976 में आश्चर्यजनक रूप से बंधकों को छुडाया गया और इसने इच्छा शक्ति और भावना को विजयी बनाया जिसने कि सभ्य विश्व को प्रेरित किया। इसके लिये कम अच्छा अवसर तब रहा जब इसने स्वतः ही अपने ऊपर अपमान को प्रक्षेपित किया , वर्ष 2000 में लेबनान से एकतरफा वापसी तथा जोसेफ गुम्बद को खाली करना , 2005 में गाजा से वापसी, 2006 में हिजबुल्लाह के हाथों पराजय और पिछ्ले सप्ताह हिजबुल्लाह के साथ कैदियों की रिहाई का लेन देन ।
कोई भी बाहरी व्यक्ति इस विरोधाभाष पर आश्चर्य ही व्यक्त कर सकता है। कैसे प्रेरक विजय की पटकथा लिखने वाले स्वयं अपने ऊपर ऐसा अपमान थोप सकते हैं, और इस बात से अनजान रह सकते हैं कि उनके कार्य का अन्य स्थान पर क्या प्रभाव हो सकता है?
इस बारे में पहला संकेत तो तिथियाँ हैं । उत्कर्ष का समय राज्य के पहले तीन दशक रहे जबकि निम्नतर समय वर्ष 2000 के बाद से आरम्भ हुआ है। कुछ बहुत बडा परिवर्तन आ चुका है। आरम्भ में जो राज्य आर्थिक दृष्टि से घाटे में था परंतु रणनीतिक रूप से मेधावी था अब पूरी तरह उलट चुका है। पिछ्ले वर्षों के मेधावी गुप्तचर, सैन्य प्रतिभा और राजनीतिक भारी भरकम व्यक्तित्व अब तकनीक पर आश्रित हो चुके हैं और राज्य को भ्रष्ट और अल्पकालिक सोच के लोगों के हाथों में छोड दिया है।
29 जून की कैबिनेट बैठक को कोई किस प्रकार आँकें जब कि 25 में से 22 मंत्रियों ने एकस्वर में पाँच जीवित अरब आतंकवादियों जिसमें कि 45 वर्षीय मानसिक विक्षिप्त और इजरायल की जेलों में बंद सबसे खूँखार आतंकवादी समीर कुंतर भी शामिल था सहित 200 अन्य सदस्यों को छोडा गया। इसके बदले इजरायल को हिजबुल्लाह द्वारा मारे गये अपने दो सैनिकों के शव प्राप्त हुए। यहाँ तक कि वाशिंगटन पोस्ट ने भी इस निर्णय पर आश्चर्य जताया।
इजरायल के प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने इस सौदे का समर्थन इस आधार पर किया कि इससे " इस दुखद श्रृंखला का अंत हो जायेगा" उनका संकेत युद्ध में मारे गये लोगों के शरीर को प्राप्त करना और बंधक बने लोगों के परिवारों को संतुष्ट करने की ओर था। आपस में दोनों ही सम्मानजनक उद्देश्य थे परंतु किस कीमत पर? प्राथमिकताओं को इस प्रकार तोडने मरोडने से दिखाई देता है कि किस प्रकार एक सशक्त रणनीतिक देश कहीं भावुक देश के रूप में पतनशील हो गया है , जहाँ कि सिद्धांतहीन राजनीति के चलते स्वतः पर थोपे गये अभिमान ने तर्क का स्थान ले लिया है। इजरायल के लोग शक्ति संतुलन और तुष्टीकरण दोनों से ही परेशान हो चुके हैं और अपना मार्ग भटक गये हैं।
कैबिनेट के निर्णय से भी अधिक डरावना यह था कि न तो विपक्षी लिकुड और न ही किसी अन्य अग्रणी इजरायली संस्था ने कोई आक्रोश प्रदर्शित किया वरन सामान्य तौर पर (कुछ अपवादों को छोड दें तो) चुप बैठे रहे। इनकी अनुपस्थिति से पता चलता है और जैसा कि एक जनमत सर्वेक्षण से पता चलता है इस अदला बदली को इजरायल की जनता ने 1 के मुकाबले 2 के अनुपात से समर्थन दिया। संक्षेप में यह समस्या आधिकारिक वर्ग से होकर सामान्य जनसंख्या को भी समेटे हुए है।
वहीं दूसरी ओर बच्चों के हत्यारे कुंतर का जिस शर्मनाक रूप से लेबनान में राष्ट्रीय नायक के तौर पर स्वागत हुआ जहाँ कि सरकार ने उसके आगमन पर उत्सव के चलते सारे कार्य बंद कर दिये , साथ ही जिस प्रकार फिलीस्तीनी अथारिटी ने उसे नायक की संज्ञा दी उससे स्पष्ट हो जाता है कि किस गहराई तक लेबनान इजरायल के प्रति शत्रुता का भाव रखता है और इससे कोई भी व्यथित हो सकता है जो कि अरब की आत्मा से जुडा है।
इस सौदे के अनेक नकारात्मक परिणाम हैं। इससे अरब के आतंकवादियों को बल मिलेगा कि वे इजरायल के अधिक से अधिक सैनिकों को बदी बनायें और फिर उनकी हत्या कर दें। इससे लेबनान में हिजबुल्लाह का कद बढ जायेगा और यह हिजबुल्लाह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान करेगा। इससे हमास को भी बल मिलेगा और इसके साथ इजरायल के बंदियों का सौदा अधिक कठिन हो जायेगा। अंत में वैसे तो यह घटना ईरान के परमाणु मुद्दे के मुकाबले छोटी दिखती है परंतु दोनों आपस में जुडी हैं।
इस घटनाक्रम पर अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों ने शीर्षक प्रकाशित किया " इजरायल का शोक और हिजबुल्लाह का उल्लास" इससे पुष्ट होता है कि गलत ही सही मध्य पूर्व में यह भाव है कि इजरायल को नष्ट किया जा सकता है। हाल के लेन देन से पहले से ही मसीहाई मानसिकता के ईरानी नेतृत्व को अपने हथियार चमकाने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। इससे भी बुरा यह है कि जैसा स्टीवेन प्लाट ने लिखा भी है, " यहूदी बच्चों के नरसंहारक की लडाकू सैनिकों से तुलना कर उनकी अदला बदली कर यह दिखा दिया है यहूदी नस्ल हीनता से ग्रस्त वे पूरी तरह विनाश से बचना चाहते हैं।
जो लोग इजरायल की सुरक्षा और कल्याण को लेकर चिंतित हैं उनके लिये मेरा दो समाधान है। पहला, इजरायल अब भी एक शक्तिशाली देश है जो कि भूल सहन कर सकता है और यह अनुमान लगा सकते हैं या कहें कि भविष्यवाणी की जा सकती है कि ईरान के साथ परमाणु अदला बदली में भी यह बच सकता है जबकि ईरान नहीं।
दूसरा, कुंतर प्रसंग का एक आश्चर्यजनक सुखांत भी है। एक वरिष्ठ इजरायल अधिकारी ने डेविड बेडिन से कहा कि " अब जेल से बाहर जाने के बाद कुंतर को समाप्त होने से बचाने का दायित्व इजरायल का नहीं है , लेबनान में आने के बाद वह निशाने पर आ गया है। इजरायल उसे पायेगा तो मार देगा और सारा खाता बंद हो जायेगा"। एक और वरिष्ठ अधिकारी ने जोडा , " हम इस व्यक्ति को यह नहीं सोचने देंगे कि वह 4 वर्षीय बालिका की हत्या कर बिना दंड के जा सकता है"
अंतिम विजय किसकी होगी हिजबुल्लाह की या इजरायल की?