एनट बर्को ने पिछले पन्द्रह वर्ष जेल में आतंकवदियों से साक्षात्कार में व्यतीत किये हैं और इस विषय पर सभी शोधकर्ताओं के मध्य अतुलनीय अधिकार प्राप्त किया है और किसी भी अन्य की अपेक्षा उन्होंने साक्षात्कार देने वालों को कहीं अधिक व्यक्त होने का अवसर दिया है। इसके परिणामों को व्यक्तियों के अध्ययन , परिस्थिति , आशय की श्रृंखला के साथ प्रकाशित किया गया है जिससे कि ऐसे रहस्यमय विषय को सार्वजनिक रूप से लोगों के समक्ष जाँच के लिये रखा जा सका है।
जेल में बंद पुरुष पर ध्यान देने के उपरांत डा. बर्को ने अपना ध्यान पुस्तक में महिला और बच्चों पर दिया है। भिन्नतायें काफी हैं जैसा कि कोई भी अपेक्षा कर सकता है , विशेष रूप से ऐसे मुस्लिम समाज में जहाँ कि महिलायें लाभ की स्थिति में नहीं हैं। महिला के जीवन पर सेक्स का जो आक्षेप रहता है उसका आतंकवाद में उसके लिप्त होने पर परिणाम रहता है। अध्याय 7 में दिखाया गया है कि महिला " उसके सम्बंध में" जन्नत में लगातार स्वप्न देखती है। अध्याय 8 और 15 में स्थापित किया गया है कि महिलाओं में यह परिपाटी पायी गयी है कि वे आतंकवादी मिशन पर जाने से पूर्व उन्हें भेजने वाले के साथ यौन क्रिया में संलिप्त होती हैं। अध्याय 11 इस उल्लेखनीय तथ्य को प्रदर्शित करता है कि काफी संख्या में फिलीस्तीनी महिलायें अपने घर से अधिक इजरायल के जेल को प्राथमिकता देती हैं और इसका कारण घर पर उनके साथ होने वाला बुरा व्यवहार है और कुछ तो इजरायल के लोगों पर आक्रमण का बहाना करती हैं ताकि उन्हें अपना घर छोडकर इजरायल की जेल में जाने को मिले। अध्याय 14 में दिखाया गया है कि महिलायें हिंसा के द्वारा अपने प्रति यौन असम्मान से बच पाती हैं।
डा बर्को जो कि इजरायल में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रतिरोध संस्थान में कार्य करती हैं यह भडकाऊ प्रश्न करती हैं कि , " कोई महिला जो कि आत्मघाती हमला करती है वह एक फुर्त बम है या मूर्ख बम है?" । दूसरे शब्दों में ,क्या इन महिलाओं को पता होता है कि वे क्या कर रही हैं और क्या वे प्रभावी हैं? प्रथम प्रश्न के उत्तर में वह व्यापक स्तर पर आतंकवादियों को देखती हैं जिसमें कि काफी पढे लिखे से शीर्ष स्तर के राजनीतिक से लेकर अशिक्षित मूर्ख तक शामिल हैं। जहाँ तक उनकी सक्षमता की बात है तो कुछ उच्च स्तर के बम धमाकों को छोड दिया जाये तो सामान्य तौर पर महिलाओं का कार्य निम्नस्तरीय ही रहता है और जिसमें कि वे इजरायलवालों को गम्भीर क्षति पहुँचाये बिना स्वयं को मार लेती हैं।
पुस्तक में काफी सूचना है जो कि अधिकाँश बातचीत को आधार बनाकर रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत की गयी है। अन्य लोग अपना निष्कर्ष निकालने के लिये डा. बर्को के मूल्यवान कार्य का लाभ उठा सकते हैं। इन पृष्ठों से जो कुछ कथानक निकलकर आता है उसमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- आतंकवाद में महिलाओं की उपयोगिता ( पुरुषों की अपेक्षा कम संदेह होने के कारण ) और उनकी खराब परिणाम देने की क्षमता ( विचारधारा के स्तर पर कम निष्ठा) के मध्य विरोधाभास है।
- जो महिला अपने जीवन का त्याग करती है उसकी प्रशंसा और इस बात का संदेह कि उसके आत्मघाती कृत्य के पीछे कहीं न कहीं यौनिक अपराध का भाव है इन दोनों का तनाव रहता है। जैसा कि एक फिलीस्तीनी पत्रकार ने इसे इस रूप में रखा कि जब एक महिला एक आतंकवादी आक्रमण करती है तो अन्य लोग मजाक करते हैं "कि यौन रूप से संतुष्ट न होने के कारण उसने ऐसा किया"
- कुछ मामलों में बेचैन परिस्थितियाँ महिलाओं को कुछ बेचैन कदम उठाने को प्रेरित करती हैं ताकि वे अपनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से मुक्ति प्राप्त कर सकें। आत्मघाती हमले के लिये तैयार एक ने इसे इस प्रकार कहा, "उन लडकियों का चिंतन यह नहीं होता कि वे जेल जायेंगी वरन उनका चिंतन होता है कि वे मर जायेंगी। उन्हें लगता है कि जिस प्रकार का जीवन वे व्यतीत कर रही हैं उससे बेहतर तो मौत है" ।
- अन्य मामलों में जेल में बन्द महिलायें जेल को सुरक्षित स्थान समझती हैं जहाँ कि उन्हें बलात विवाह, अनुचित व्यवहार के आरोप या घरेलू हिंसा से मुक्ति मिलेगी। जेल जाने के लिये वे सैनिकों को चाकू मारती हैं ,हवा में चाकू फेंकती हैं या फिर इजरायल के सैनिक के ऊपर तेजाब फेंक देती हैं।
- आतंकवादी इजरायलवालों को मानव से कम समझते हैं परंतु अनेक अपराधी काफी समय जेल में व्यतीत करने के उपरांत सम्मान करने लगते हैं और सम्मान प्राप्त करते हैं और उनका व्यवहार परिवर्तित हो जाता है। उन्हें लगता है कि अरब की अपेक्षा उनका ध्यान यहूदी अधिक रखते हैं।
- इन कारणों से डा. बर्को को लगता है कि " काफी बडी मात्रा में जेल में बन्द महिलायें घर वापस जाने से अधिक इजरायल की जेलों में रहना पसंद करती हैं। जैसा कि एक ने कहा, " मैं जेल में रहूँगी यहाँ ये लोग मेरी सहायता करते हैं"
- जेल में आनेवाले अधिकतर टूटे परिवारों से आते हैं या फिर ऐसे परिवारों से जहाँ कि शक्तिशाली या सुरक्षा करने वाला पुरुष नहीं है।
- फिलीस्तीन के इस पूरे विचार को कि महिलाओं ने युद्ध छेड रखा है और वे जेल जाती हैं को झटका लगता है। हमास के उपप्रमुख के सजावटपूर्ण शब्दों में, " यदि कोई महिला लम्बे समय तक जेल में है तो वह पुरुष बन जाती है" ( अर्थ है कि वह गलत ढंग़ से समझाये जाने वाले स्वतंत्रता को स्वीकार कर लेती है)
- इसी प्रकार फिलीस्तीनी महिला सुरक्षा कारावासियों से भी दूरी बनाकर रखते हैं , " वह एक नायिका है परंतु मैं अपने पुत्र या भाई को कभी भी ऐसी महिला से विवाह नहीं करने दूँगा"
जाते जाते डा. बर्को इजरायल की जेलों में महिला सुरक्षा कारावासियों की परिस्थितियों का भी वर्णन करती हैं। सम्भवतः सबसे आश्चर्यजनक यह है कि उनमें से अधिकाँश इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि फिलीस्तीन अथारिटी या हमास के साथ बदले के समझौते में वे मुक्त हो सकेंगी। ऐसा लगता है कि यह केवल इजरायल की सरकार का मत नहीं है वरन स्थापित तथ्य है कि महिला आतंकवादी पुरुषों की अपेक्षा दुबारा आतंकवाद में कम लिप्त होती हैं।
अंत में डा. बर्को का अध्ययन आतंकवाद प्रतिरोध की कलाओं की ओर संकेत करता है। उदाहरण के लिये महिला के नग्न शरीर के प्रति काफी गहरी संवेदना देखी गयी है फिर वह कितने ही भागों में विभक्त हो गयी हो ("यदि कोई महिला अपने समस्त माँस को उडा दे तो उसका पूरा माँस देखा जायेगा और यह अत्यंत कठिन स्थिति उत्पन्न करता है" ) इससे पता चलता है इजरायल और अन्य अधिकारी मुस्लिम आत्मघाती महिला बम को उसके बचे हुए नग्न भाग और विशेष रूप से यौनांगों का चित्र वितरित कर इसे रोक सकते हैं। (यही कला पुरुष आत्मघाती हमलावर के मामले में भी प्रयोग हो सकती है)
एनट बर्को ने इस अरोचक विषय को भी जिस संवेदना के साथ स्पर्श किया है उससे इजरायल की महिला शत्रुओं की मानसिकता और वैश्विक सामाजिकता पर ध्यान जाता है। जो लोग भी आतंकवाद प्रतिरोध में लगे हैं उन्हें मुस्लिम महिलाओं के सम्बन्ध में लाभ होगा फिर उनका स्थान कोई भी हो।