जब एक राज्य के गैर राज्य शत्रु से लडने की बात आती है तो सामान्य तौर पर यही माना जाता है कि राज्य को असफल होना ही है।
1968 में राबर्ट एफ केनेडी ने माना था कि वियतनाम में विजय सम्भवतः हमारी पहुँच से दूर है और एक शांतिपूर्ण समाधान की बात की थी। 1983 में विश्लेषक शहराम चुबिन ने लिखा कि सोवियत अफगानिस्तान में एक विजय न हो सकने वाले युद्ध में उलझ गये हैं। 1992 में अमेरिकी अधिकारी बोस्निया में सदियों पुराने संघर्ष में उलझने से बचते रहे। 2002 में सेवानिवृत्त अमेरिकी जनरल वेस्ले क्लार्क ने अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रयास को विजय न हो सकने वाले रूप में चित्रित किया। 2004 में राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के बारे में कहा, " मुझे नहीं लगता कि आप इसे जीत सकते हैं" । 2007 में विनोगार्ड कमीशन ने हिज्बुल्लाह के विरुद्ध इजरायल के युद्ध को न जीत सकने वाला बताया।
कुछ अधिक उदाहरण के बजाय हाल के युद्ध को लें तो गठबन्धन सेना के इराक में प्रयास को एक निश्चित पराजय के रूप में देखा गया विशेष रूप से 2004 से 2006 के काल में। भूतपूर्व विदेश मंत्री हेनरी ए किसिंगर ,ब्रिटेन के पूर्व मंत्री टोनी बेन तथा अमेरिका के पूर्व विशेष दूत जेम्स डोबिंस सभी ने इसे न जीत सकने वाला बताया । बेकर हैमिल्टन इराक स्टडी ग्रुप रिपोर्ट ने भी इसे ही प्रतिध्वनित किया। सैन्य विश्लेषक डेविड हैकवर्थ उन लोगों में थे जिन्होंने कि इराक की तुलना वियतनाम से की , " वियतनाम की ही भाँति इराक भी घुसने के लिये तो आसान था परंतु अब इसमें से निकलना काफी कठिन दिख रहा है"
" न जीत सकने वाले युद्ध" की सूची बढती ही जा रही है और इसमें अन्य भी शामिल होते जा रहे हैं उदाहरण के लिये श्रीलंका और नेपाल में आतंकवाद प्रतिरोध। इजरायल के सेवा निवृत्त मेजर जनरल याकोव एमिडरोर ने इन सभी विश्लेषणों पर ध्यान देते हुए कहा कि ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि , विद्रोह या उग्रवाद प्रतिरोध अभियान आवश्यक रूप से दीर्घकालिक संघर्ष में परिवर्तित हो जाते हैं जो कि अपरिहार्य रूप से अपना राजनीतिक समर्थन खो देते हैं"
हालाँकि एमिडरोर इस अनुमान से सहमत नहीं हैं। अभी हाल में जेरूसलम सेन्टर फार पब्लिक अफेयर्स द्वारा प्रकाशित अध्ययन Winning Counterinsurgency War: The Israeli Experience में उन्होंने अत्यंत विश्वासपूर्वक तर्क दिया है कि राज्य गैर राज्य तत्वों को पराजित कर सकते हैं।
इस बहस का बहुत महत्व है, क्योंकि यदि निराशावादी सही हैं तो पश्चिमी शक्तियों को उन सभी तत्कालीन और भविष्य के संघर्षों में पराजित होना होगा जिसमें कि परम्परागत शक्तियाँ ( अर्थात विमान, जहाज और टैंक) शामिल नहीं हैं। विश्व भर में और पश्चिम के भीतर भी विद्रोह या उग्रवाद की सफलता की सम्भावना के चलते भविष्य काफी क्षीण प्रतीत होता है। अमेरिका में भी इजरायल की भाँति इंतिफादा की सम्भावना मात्र से कोई भी सिहर सकता है। संयोगवश अभी आस्ट्रेलिया से पिछले सप्ताह ही समाचार आया है कि उस देश में भारी मात्रा में जंगल में आग लगाने की बात " जंगज जिहाद" एक इस्लामवादी गुट ने की है।
एमिडरोर का कहना है कि विद्रोह या उग्रवाद पर विजय सम्भव है परंतु सरलता से नहीं हो सकता। सेना किनती बडी है और परम्परागत युद्ध की भाँति कितने अस्त्र शस्त्र हैं इस पर जोर देने के विपरीत वे बताते हैं कि राजनीतिक स्वभाव की चार शर्तें हैं जिनके आधार पर उग्रवाद या विद्रोह को पराजित किया जा सकता है। इनमें से दो का सम्बंध राज्य से है जहाँ कि राष्ट्रीय नेतृत्व को निश्चित रूप से
- उग्रवाद से लडने में जनसम्पर्क और राजनीतिक चुनौती को स्वीकार करना होगा और उसे समझना होगा।
- गुप्तचर संस्था की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना करनी होगी और इसका समुचित उपयोग करने के लिये सेना की आवश्यकता होगी।
अन्य दो शर्तें आतंकवाद प्रतिरोध क्रियान्वयन के लिये आवश्यक हैं
- आतंकवादियों को गैर आतंकवादी नागरिक जनसंख्या से अलग थलग करें
- उन क्षेत्रों पर नियंत्रण करें और उन्हें अलग थलग करें जहाँ कि आतंकवादी रहते हैं और युद्ध करते हैं।
यदि इन दिशनिर्देशों का पालन किया जाता है तो परिणाम हस्ताक्षर समारोह और विजय परेड तो नहीं होगा वरन कुछ कम होगा जिसे कि एमिडरोर " पर्याप्त विजय" कहते हैं परंतु मैं इसे " पर्याप्त नियंत्रण" कहूँगा। इससे उनका आशय है कि " परिणाम स्वरूप अनेक वर्षों की शांति नहीं आयेगी वरन कुछ बलात शांति आयेगी" , और इसे बचाये रखने के लिये भारी मात्रा में लगातार निवेश करते रहना होगा। उदाहरण के लिये एमिडरोर उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटिश प्रयास और इसी प्रकार के स्पेन के बास्क के सम्बंध में प्रयास को दर्शाते हैं।
एमिडरोर का कहना है कि एक बार इन शर्तों का पालन हो जाये तो इसके उपरांत , " कठिन, जटिल, कुचलनेवाले , नीरस युद्ध का दौर आरम्भ होता है जिसमें कि न तो ध्वज होता है और न ही कोई प्रदर्शन होता है" इस युद्ध में, " परस्पर गुप्तचर सूचनाओं के आधार पर निष्कर्ष निकालना होता है, अत्यंत कठिन परिस्थितियों में छोटी सेनाओं की कार्रवाई घनी जनसंख्या के शहर या अलग थलग के गाँव में करनी होती है जिसमें कि आतंकवादी और निर्दोष नागरिक दोनों शामिल होते हैं और छोटी रणनीतिक सफलता प्राप्त होती है"
इन मूलभूत सिद्धांतों के आधार पर सफलता प्राप्त होती है और पश्चिमी राज्यों ने पिछली सदी में उग्रवाद पर प्रभावशाली विजय प्राप्त की है। अमेरिकी सेना ने दो बार ( 1899 से 1902 , और 1946 से 1954 ) फिलीपींस में उग्रवादियों पर विजय प्राप्त की है, ब्रिटिश ने फिलीस्तीन में ( 1936 से 39) मलाया ( 1952 से 57) , इजरायल ने पश्चिमी तट (2002 में आपरेशन डिफेन्सिव शील्ड) और अभी हाल में इराक में अमेरिकी उभार।
उग्रवाद या विद्रोह प्रतिरोध युद्ध पर विजय प्राप्त की जा सकती है परंतु उनकी भी कुछ अनिवार्यतायें हैं जो कि परम्परागत युद्ध के तरीके से पूरी तरह भिन्न हैं।