इस माह के आरम्भ में तुर्की एयरलाइंस के भोजन की सूची में यात्रियों के लिये सुनिश्चित किया गया कि भोजन को चुनने में " सूअर का माँस" नहीं रहे। इस सूची में गम्भीर रूप से चुने हुए एल्कोहल पेय रहे जिसमें कि शैम्पेन, व्हिस्की, जिन, वोदका, राकी ,शराब , बीयर ,लिकर और कोगनाक थे। इस प्रकार एक साथ अस्वाभाविक रूप से इस्लामी कानून शरिया को अपनाने औ उसकी उपेक्षा करना आज के तुर्की के सार्वजनिक जीवन में अद्बुत रूप से जटिल ढंग से इस्लाम की भूमिका का कहीं न कहीं प्रतीक भी है साथ ही यह जस्टिस एंड डेवलेपमेंट पार्टी (जिसे तुर्की में संक्षेप में एकेपी कहते हैं) को समझने की चुनौती भी प्रस्तुत करता है जिसने कि तुर्की की राष्ट्रीय सरकार पर 2002 से ही नियंत्रण स्थापित कर रखा है।
तुर्की के विषय में राजनीतिक बहस इसी ओर जाती है कि क्या एकेपी इस्लामवादी है या नहीं। उदाहरण के लिये वर्ष 2007 में मैंने प्रश्न किया था कि " एकेपी नेतृत्व की मंशा या आशय क्या है? क्या इसने गुप्त इस्लामवादी कार्यक्रम को अपने साथ रखा है और अपने इस्लामवादी लक्ष्य को छुपाना सीख रहा है? या फिर इसने वास्तव में उन उद्देश्यों का परित्याग कर दिया है और सेक्युलरिज्म को अपना लिया है?"
इस्ताम्बूल में हाल के वार्तालाप में मैंने सुना कि अनेक विचारों के तुर्क प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन को लेकर एक आमसहमति पर पहुँच चुके हैं और वे उनकी इस्लामी आकाँक्षाओं से अधिक उनकी राष्ट्रवादी और तानाशाही प्रवृत्तियों को लेकर चिंतित हैं।
उनका मानना है कि तुर्की में देश के सेक्युलर और लोकतांत्रिक स्वरूप को देखते हुए पूरी तरह शरिया को लागू कर पाना सहज लक्ष्य नहीं है क्योंकि यही स्वरूप इसे अन्य मुस्लिम बहुल देशों से अलग करता है ( अल्बानिया, कोसोवो और क्रिर्गिजिया को छोडकर)। इस वास्तविकता को स्वीकार कर एकेपी ने अपनी जनसंख्या पर अधिक सच्चे, परम्परावादी , पवित्र , धार्मिक और नैतिक होने का दबाव डालकर कहीं अधिक जनसमर्थन बढाया है। जैसे कि इसने रमजान पर उपवास रखने को प्रेरित किया है, साथ ही महिला गरिमा (ढंकने को ) को भी बढाया है , एल्कोहल को हतोत्सहित किया है, व्यभिचार को आपराधिक बनाने का प्रयास किया है , मजहबी विद्यालयों की संख्या बढायी है , पब्लिक विद्यालयों में इस्लाम को पाठ्यक्रम में स्थान दिया है और विश्वविद्यालयों में प्रवेश परीक्षाओं में इस्लाम के सम्बन्ध में प्रश्नों को बढाया है। तुर्की एयरलाइन्स के संदर्भ में देखें तो सूअर का माँस पहले ही जा चुका है और यह समय की बात है कि कब एल्कोहल भी लुप्त हो जाता है।
मेरे मध्यस्थों ने बताया कि इस्लामी प्रथा लक्ष्य है न कि इस्लामी कानून। हाथ काटना, बुर्का, गुलामी और जिहाद के दर्शन नहीं होते और वह भी पिछले एक दशक में आर्थिक विकास ने ऐसे इस्लामिक मानसिकता के मध्य वर्ग को विकसित किया है जो कि सउदी शैली के इस्लाम को अस्वीकार करता है। एक विपक्षी नेता ने पाया कि इस्ताम्बूल के पाँच जिले " अफगानिस्तान" की भाँति दिखते हैं परंतु ये केवल अपवाद हैं। मैंने सुना कि एकेपी अतातुर्क के मजहब विरोधी भाव को परिवर्तित करना चाहता है और इस क्रम में उस राज्य को कमतर नहीं करना चाहता जो कि परा अतातुर्क स्थिति को स्थापित करने की आकाँक्षा रखता है न कि अतातुर्क विरोधी व्यवस्था। उदाहरण के लिये यह वर्तमान कानूनी व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है न कि कोई नई इस्लामी कानून व्यवस्था स्थापित करना चाहता है। स्तम्भकार मुस्तफा अकयोल का तो कहना है कि एकेपी सेक्युलरिज्म को समाप्त नहीं करना चाहता वरन इसकी उदारवादी व्याख्या करना चाहता है। उनके अनुसार एकेपी 623 वर्ष पुराने ओटोमन राज्य को आत्मसात करता है जिसे कि अतातुर्क ने 1922 में समाप्त कर दिया था और इस क्रम में यह उसकी इस्लामी अभिरुचि और बाल्कन तथा मध्य पूर्व में प्रभाव की सराहना करता है।
इस नव ओटोमन अभिरुचि को प्रधानमंत्री की आकँक्षाओं में देखा जा सकता है जब वे अनधिकृत खलीफा के रूप में सेवा करना चाहते हैं और इस क्रम में उन्होंने यूरोप से मध्य पूर्व की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया है( जहाँ कि वे अरब की सडकों पर नायक नहीं बन पा रहे हैं) साथ ही एकेपी का आर्थिक और राजनीतिक फार्मूला भी वे अन्य मुस्लिम देशों को प्रदान करना चाहते हैं विशेष रूप से मिस्र को। ( एरडोगन ने उस देश की हाल की यात्रा में काफी जोर देकर सेक्युलरिज्म के पक्ष में तर्क दिया और मिस्र के गले पर शरिया थोपने के मुस्लिम ब्रदरहुड और मोहम्मद मोर्सी के प्रयासों पर अवाक रह गये) इसके अतिरिक्त अंकारा ने ईरान के शासन को प्रतिबंध से बचाने में सहायता की , सीरिया के बशर अल असद के विरुद्ध सुन्नी विरोध को प्रायोजित किया, इजरायल के साथ एक सम्मानजनक और शोरगुल भरी मुठभेड की, साइप्रस को इसके भूगर्भ गैस को लेकर उसे धमकी दी और बांग्लादेश के एक इस्लामी नेता के परीक्षण में भी हस्तक्षेप किया।
मध्य 2011 में राज्य के गम्भीर स्तम्भों विशेष रूप से सेना के अधिकारियों के साथ जो दाँवपेंच अपनाया गया उसके बाद से एकेपी ने काफी अधिनायकवादी स्वरूप अपना लिया है और वह भी इस हद तक कि कुछ तुर्क इस्लामीकरण से अधिक तानाशाही को लेकर चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि एरडोगन पर सत्ता का नशा चढ गया है जो कि षडयंत्रकारी सिद्दांतों और बातचीत के टेप के द्वारा के आधार पर अपने विरोधियों को जेल में डाल रहे हैं, अनेक दिखावे के परीक्षण कराये, एक टेलीविजन वस्त्राभरण सोप ओपेरा को दबाया , अपनी व्यक्तिगत रुचि देश पर थोप रहे हैं ,सेमेटिक विरोध को बढावा दे रहे हैं ,राजनीतिक आलोचना को दबा रहे हैं , अपने विरुद्ध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को दबाने के लिये बल प्रयोग को न्यायसंगत ठहराते हैं, मीडिया कम्पनियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं,न्यायपलिका पर नजर रखी है, शक्तियों के विभाजन की अवधारणा को ध्वस्त कर रहे हैं। स्तम्भकार बुराक बेकदिल ने उनकी खिल्ली उडाते हुए उन्हें " तुर्की का निर्वाचित मुख्य सामाजिक अभियांत्रिक( इंजीनियर) बताया है। अन्य लोग उन्हें तुर्की का व्लादिमिर पुतिन मानते हैं जो कि अहंकारी अर्ध लोकतांत्रिक हैं और अनेक दशकों तक सत्ता में रहने वाले हैं।
मध्य 2011 में ही सेना की निगरानी से मुक्त होने के बाद मुझे लगता है कि एरडोगन अधिक तानाशाही शक्तियाँ प्राप्त कर लेंगे ( या फिर अपने उत्तराधिकारी के लिये) ताकि अपने स्वप्न को पूर्ण कर सकें और शरिया को लागू कर सकें