अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध 2001 में नहीं आरम्भ हुआ । इसका आरम्भ नवम्बर 1979 को हो गया था।
ईरान में अयातोला के सत्ता पर नियंत्रण करते ही इसका आरम्भ हो गया था जिसके तत्काल बाद उन्होंने " अमेरिका की मौत" का नारा लगाया था और निश्चित रूप से इसके तत्काल बाद अमेरिकावासियों पर आक्रमण आरम्भ हो गये। नवम्बर 1979में एक उग्रवादी इस्लामी भीड ने ईरान की राजधानी तेहरान में अमेरिका के दूतावास पर नियंत्रण कर लिया और 52 अमेरिकियों को बंधक बना लिया और अगले 444 दिनों तक इन्हें बंधक बनाकर रखा।
बंधकों को मुक्त कराने के लिये अप्रैल 1980 में जो टीम गयी उसमें से आठ लोग मारे गये और वे अब तक की उग्रवादी इस्लाम की अनेक अमेरिकी मौतों में से पहले थे।
- [नवम्बर 1979: इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास में दो लोग मारे गये।
- अप्रैल 1983: बेरूत में अमेरिकी दूतावास में 63 लोग मारे गये।
- अक्टूबर 1983: बेरूत की अमेरिकी मरीन बैरक में 241 लोग मारे गये।
- दिसम्बर 1983: कुवैत में अमेरिकी दूतावास में पाँच लोग मारे गये।
- जनवरी 1894: बेरूत में अमेरिकी विश्वविद्यालय का प्रमुख मारा गया।
- अप्रैल 1984: स्पेन में अमेरिकी एयर बेस के निकट 18 लोग मारे गये।
- सितम्बर 1894: बेरूत में अमेरिकी दूतावास में पुनः 16 लोग मारे गये।
- दिसम्बर 1984: तेहरान में विमान अपहरण में दो लोग मारे गये।
- जून 1895: बेरूत में विमान अपहरण में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई।
कुछ समय तक रुके रहने के बाद आक्रमण पुनः आरम्भ हुए : सउदी अरब में 1995 और 1999 में क्रमशःपाँच और 19 लोग मारे गये, अगस्त 1998 में कीनिया और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों में 224 लोग मारे गये और अक्टूबर 2000 में यू एस एस कोल में यमन में 17 लोग मारे गये।
इसी के साथ अमेरिकी धरती पर भी उग्रवादी इस्लाम का आक्रमण जारी रहा।
- जुलाई 1980: एक ईरानी विद्रोही वाशिंगटन डी सी क्षेत्र में मारा गया ।
- अगस्त 1983:इस्लाम के अहमदिया सम्प्रदाय का नेता कांटन मिच में मारा गया।
- अगस्त 1984: टकोमा वाश के बाहरी क्षेत्र में तीन भारतीय मारे गये।
- सितम्बर 1986: आगस्टा गा में एक डाक्टर मारा गया।
- जनवरी 1990: टुक्सोन आरिज़ में मिस्र का एक स्वतंत्र चिंतक मारा गया।
- नवम्बर 1990: न्यूयार्क में एक यहूदी नेता मारा गया।
- फरवरी 1991: न्यूयार्क में मिस्र का एक इस्लामवादी मारा गया।
- जनवरी 1993: लांग्ले वा में सीआईए एजेंसी के मुख्यालय से बाहर सीआईए के स्टाफ के दो सदस्यों की हत्या की गयी।
- फरवरी 1993: वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में छह लोगों की हत्या हो गयी।
- मार्च 1994: आर्थोडाक्स यहूदी बच्चे की हत्या ब्रूकलिन पुल पर की गयी।
- फरवरी 1997: एम्पायर स्टेट भवन पर डेनमार्क के पर्यटक की हत्या की गयी।
- अक्टूबर 1999:न्यूयार्क सिटी के निकट इजिप्ट एयर फ्लाइट के 217 यात्रियों की हत्या की गयी।
कुल मिलाकर सितम्बर 2001 से पूर्व उग्रवादी इस्लाम के आक्रमण में 800 लोगों को अपनी जान से हाथ से धोना पडा जो कि वियतनाम युद्ध के पश्चात कभी भी किसी शत्रु के द्वारा मारे गये लोगों से अधिक है। ( इस सूची में उग्रवादी इस्लामी आतंकवादियों द्वारा इजरायल में मारे गये एक दर्जन अमेरिकी लोगों की मौत को नहीं जोडा गया है)
इन हत्याओं पर शायद ही ध्यान दिया जाता है। एक वर्ष पूर्व के घटनाक्रम से ही अमेरिका के लोग यह जान सके कि " अमेरिका को मौत" वास्तव में उस संघर्ष का शोर है जो कि इस युग का सबसे खतरनाक शत्रु है और वह है उग्रवादी इस्लाम।
यदि आत्मपरीक्षण करें तो भूल तब हुई जब ईरानियों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर आक्रमण किया और उनका कोई प्रतिरोध नहीं हुआ ।
रोचक बात तो यह है कि नवम्बर 1979 के दिन दूतावास में उपस्थित एक मरीन सार्जेंट का भी यही आकलन है। जैसे ही उग्रवादी इस्लामी भीड ने दूतावास पर आक्रमण किया रोडनी वी सिकमैन ने आदेशों का पालन किया और न ही स्वयं को और न ही दूतावास को बचाया। परिणामस्वरूप उन्हें बंधक बना लिया गया और यह कहानी सुनाने के लिये जीवित रहने दिया गया (वे अब एनहेउसर बच के लिये कार्य करते हैं)
अब आत्मपरीक्षण के अंतर्गत वह यह मानते हैं कि निष्क्रियता एक भूल थी। मरीन को अपने लिये सुनिश्चित किये गये दायित्व का पालन करना चाहिये था। " यदि हमने उन पर गोली चलाई होती तो हम केवल एक घंटे ही ठहर पाते" परंतु यदि ऐसा किया होता तो उन्होंने इतिहास को बदल दिया होता।
यदि वे दृढता से जमे रहते तो इससे एक कठोर संदेश जाता कि अमेरिका पर आक्रमण नहीं हो सकता और कोई दण्ड से बच नहीं सकता। लेकिन इसके विपरीत दूतावास के समर्पण ने विरोधी संदेश दिया कि अमेरिकावासियों के साथ कुछ भी किया जा सकता है। सिकमैन ने सही ही निष्कर्ष निकाला है कि " यदि आप पीछे मुड्कर देखें तो इसका आरम्भ 1979 में हुआ और अब यह केवल अधिक फैला है"
इस पर शताब्दी के सबसे बडे भूरणनीतिकार राबर्ट स्ट्राज हूप ने भी सहमति जताई है। इस वर्ष 98 वर्ष की अवस्था में दिवंगत होने से पूर्व स्ट्राज हूप ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध को लेकर अपने अंतिम शब्द लिखे , " मैंने एक लम्बा जीवन जिया है और बार बार बुराई पर अच्छाई की विजय देखी है हालाँकि इसके लिये कीमत अधिक चुकानी पडी है । इस बार हम पहले ही विजय की कीमत चुका चुके हैं । अब हमारे ऊपर है कि हम विजय प्राप्त करें"