जेरूसलम स्थित टेम्पल माउंट (जो कि यहूदियों के लिये पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान है और ईसाई और मुसलमानों के लिये भी पवित्रता का भाव रखता है) शीघ्र ही आंशिक मात्रा में गिर सकता है।
ऐसा दिखाई देने के बाद भी 35 एकड का टेम्पल माउंट पठार प्राकृतिक निर्मिति नहीं है वरन मानव निर्मित स्थल है जो कि सदियों पहले एक दूसरे के ऊपर चट्टान रखककर बनाया गया था । इसके एक ओर दीवार में गुफा कर दी गयी क्योंकि 1990 के दशक के बाद से टेम्पल माउंट पर फिलीस्तीन अथारिटी का प्रशासनिक नियंत्रण हो गया और उसके बाद से इसमें अनेक निर्माणगत परिवर्तन आ चुके हैं जिनका उद्देश्य इस स्थल पर मुस्लिम दावे को मजबूत बनाना है।
विशेष रूप से फिलीस्तीन अथारिटी ने इसके दक्षिणी छोर के बहुचर्चित स्थान को जिसे कि सोलोमन्स स्टेबल्स कहते हैं उसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। इन परिवर्तनों के चलते दक्षिणी दीवार कमजोर हो गयी और अब 227 वर्ग गज का क्षेत्र अब 28 इंच के वृत्त का सीमित क्षेत्र बनकर रह गया है।
फिलीस्तीन अथारिटी ने इसे लेकर कोई चिंता नहीं जताई है , टेम्पल माउंट की देखरेख करने वाले इस्लामिक रिलिजस अथारिटी ( वक्फ) के निदेशक अदनान हुसैनी का कहना है कि " यह घेरा 70 के दशक से ही हमारी देखरेख में है और इन 30 वर्षों में न तो यह बढा है और न ही इसे कहीं अलग ले जाया गया है"। "यह स्थिर है और हमें नहीं लगता कि कोई गम्भीर स्थिति है" ।
जो इजरायवलवासी अधिक जानते हैं वे इससे भिन्न मत रखते हैं। 2001 में इजरायल के एंटीक्यूटीज अथारिटी ने चेतावनी दी थी कि यदि इस वृत्त को सही ढंग से नहीं देखा गया तो इसके चलते टेम्पल माउंट को ऐसी क्षति होगी जिसे ठीक नहीं किया जा सकेगा। आज उनकी चेतावनी गम्भीर स्थिति में पहुँच चुकी है। इजरायल एंटीक्यूटीज अथारिटी के प्रमुख शुका डोर्फमान के अनुसार इस दीवार के गिरने का खतरा है। जेरूसलम के मेयर एहुद ओलमर्ट का कहना है कि " यह गिर जायेगी" । हिब्रू विश्वविद्यालय के पुरातात्विक ईलाट मजार ने चेतावनी दी है कि यह " गिर जायेगी"। आज सबसे केंद्रीय प्रश्न है कि क्या यह उन हजारों लोगों के ऊपर गिर जायेगी जो कि प्रार्थना करने आते हैं या फिर यह रुक रुक कर गिरेगी" ।
सत्य से हमारा सामना तो नवम्बर में होगा। यह रमजान की छुट्टियों का समय है कि जब हजारों मुस्लिम श्रद्धालु सोलोमन्स स्टेबल्स की मस्जिद पर एकत्र होंगे। उनके भार और उनकी गतिविधि से दक्षिणी दीवार पर जो प्रभाव होगा उससे गज लम्बी चट्टान पर इतना तीव्र प्रभाव होगा कि वह उन पर गिर सकती है और उनमें से अनेक की मौत हो सकती है।
जेरूसलम में पहले की घटनाओं की देखते हुए जिसमें कि 1969 के अल अक्सा मस्जिद के दंगे, 1996 में सुरंग को खोलने से हुआ विवाद देखते हुए वे मानते हैं कि इससे जेरूसलम में बडे स्तर पर लडाई हो सकती है और एक गर्मगर्म अंतरराष्ट्रीय संकट खडा हो सकता है। यदि चीजें वास्तव में बुरे रूप में सामने आती हैं और इससे यूरोप में हिंसा का दौर आरम्भ हो सकता है और पूर्ण रूपेण अरब इजरायल युद्ध भी आरम्भ हो सकता है। इसके चलते इराक में चल रहा युद्ध भी जटिल स्थिति में जा सकता है , आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में गतिरोध आ सकता है और तेल तथा गैस के दाम बढ सकते हैं। सबसे बुरा तो यह है कि तीनों एकेश्वरवादी धर्मों में मसीहावाद के दिन समाप्त हो सकते हैं और जिसके क्या परिणाम होंगे इसकी कल्पना करना भी कठिन है।
संक्षेप में इस प्राचीन दीवार की ढाँचागत अखण्डता को बनाये रखना एक गम्भीर कार्य है। फिर भी इजरायल की सभी सरकारों ने चाहे वे लेबर हों या लिकुड उन्होंने अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं किया है और बेचैन भविष्यवाणियों को अनसुना किया है।
इस उपेक्षा के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला, 1969 और 1996 की स्मृतियाँ इस बात के लिये पर्याप्त हैं कि कोई भी इजरायल का नेता जेरूसलम के पवित्र स्थल से दूर ही रहना चाहता है। दूसरा, यह एक स्थापित परम्परा रही है कि प्रशासनिक संस्थायें जेरूसलम में चाहे वह ओटोमन हो, ब्रिटिश , जोर्डन या इजरायल हो यथास्थिति को बरकरार रखती हैं और पहले के उदाहरण के अनुरूप ही शहर के धर्मिक विवाद से स्वयं को अलग रखते हैं।
इसी प्रकार जब इजरायल ने 1967 में टेम्पल माउंट पर नियंत्रण किया तो वक्फ को अनुमति प्रदान की कि वे इसका प्रभार अपने पास रखें। फिलीस्तीन अथारिटी ने उस न्याय का अपने पक्ष में उपयोग किया और 35 वर्ष पूर्व टेम्पल माउंट पर मुस्लिम दावे को बढाने के लिये प्रयास किया और इसी क्रम में सोलोमन्स स्टेबल्स में मस्जिद का निर्माण कर दिया। अब जब कि वक्फ किसी प्रकार की ढाँचा गत समस्या से इन्कार कर रहा है तो इसका स्पष्ट अर्थ है कि इजरायल अधिकारी इस पर शांत हैं। परंतु इस स्थिति को लम्बे समय तक बनाये नहीं रखा जा सकता। यह विषय कोई सामान्य विवाद नहीं है कि किसी चर्च की सफाई करनी है या फिर इस क्षेत्र में किसे कितना समय व्यतीत करना है, वास्तव में यह एक संकट है जो कि धीरे धीरे स्वरूप ग्रहण कर रहा है।
जैसा कि जेरूसलम पोस्ट ने सही ही अपने सम्पादकीय में लिखा है कि जिस प्रकार इजरायल की सरकार ने अपने दायित्व का त्याग किया है " वह किसी स्कैण्ड्ल से कम नहीं है" और अंत में " इसे समस्त क्षेत्र पर अपनी सम्प्रभुता के लिये सक्रिय होना चाहिये"
समस्त विश्व की सरकारें, यहूदी संगठनों और जिनका भी इजरायल के प्रधानमंत्री पर प्रभाव है उन्हें चाहिये कि वे उन पर दबाव डालें कि वे दीवार की ओर ध्यान दें कि इससे पूर्व यह कहीं अधिक ध्वस्त हो जाये।