इंटरैक्शन प्रकाशन द्वारा प्रस्तुत किये गये सातवीं कक्षा के तीन सप्ताह के पाठ्यक्रम Islam: A Simulation of Islamic History and Culture, 610-1100, में जो कुछ कहा गया है उसे पढें " क्रूसेड या प्राचीन जिहाद के समय मुस्लिम योद्धा बनें"। समस्त अमेरिका में कक्षाओं में जहाँ भी छात्रों ने इन निर्देशों का पालन किया उन्हें लगा कि वे " ईसाई क्रूसेडर" तथा अन्य " काफिरों" के विरुद्ध छद्म जिहाद का अभ्यास कर रहे हैं । विजय प्राप्त करने के उपरांत हमारे छद्म मुस्लिम योद्धाओं को "अल्लाह की प्रशंसा" करनी चाहिये।
क्या यह अमेरिका के पब्लिक विद्यालयों में एक कानूनी गतिविधि है? प्रकाशन का कहना है कि उन्होंने छात्रों से केवल यह आग्रह किया था कि वे इस्लाम को जानकर "इस्लामी संस्कृति का सम्मान करें"। परंतु मिकिंयांग स्थित एक जनहित कानूनी फर्म जिसका नाम थामस मोर ला सेंटर है वह इस तर्क से असहमत है और पिछले सप्ताह उसने संघीय वाद के द्वारा कैलिफोर्निया में बायरोन जिले में एक विद्यालय में इस्लाम के सम्बंध में प्रकाशन की अन्य सामग्री का प्रयोग करने पर रोक लगाने की माँग की है।
इन्टरैक्शन शाखा के पास और भी कुछ विवादास्पद चीजें हैं। इसने छात्रों को मुस्लिम नाम ( अब्दुल्लाह, करीमा) धारण करने को कहा । इसने उनसे इस्लामी कपडे पहनने को कहा : बालिकाओं के लिये इसका अर्थ लम्बी आस्तीन का वेश तथा स्कार्फ के द्वारा सर ढँकना। जो छात्र इस्लामी कपडे नहीं पहनना चाहते उन्हें कक्षा में चुपचाप पीछे बैठना होगा ताकि वे पश्चिमी होने के चलते दंडित होते दिखें।
इंटरैक्शन ने अनेक इस्लामी गतिविधियों का आह्वान किया : जूते निकालना, हाथ धोना, प्रार्थना के लिये फर्श पर बैठना और अरबी हस्तलेख का अभ्यास करना।
छात्रों को कुरान पढना है, इससे याद करना , इसके लिये शीर्षक पेज तैयार करना और इसकी आयतों को इस पर बैनर के रूप में लिखना। वे इस्लाम के मूल पाँच स्तम्भों पर कार्य करें जिसमें कि जकात भी शामिल है तथा वे तीर्थयात्रा के लिये मक्का भी जायें। उन्हें मक्का की "पवित्र काबा" की प्रतिकृति या अन्य पवित्र भवन की प्रतिकृति भी बनानी है ।
यह प्रक्रिया चलती ही जाती है। सातवीं कक्षा के छात्र स्वच्छ आस्था की भाषा बोलें, एक दूसरे का अभिवादन करते हुए साथी मुस्लिम को " अस्लाम वाले कुम" कहें और " ईश्वर की इच्छा" "सभी चीजों पर अल्लाह का अधिकार है" जैसे वाक्याँशों का प्रयोग करें।
उन्हें उग्रवादी इस्लामी युद्ध का नारा " अल्लाहू अकबर" का उद्घोष करना है। यहाँ तक कि उन्हें मुस्लिम आदतें भी अपनानी हैं ; " परम्परागत मुस्लिम भाव भंगिमा जिसके अनुसार अपने दाहिने हाथ को धीरे धीरे दिल तक ले जाकर गम्भीरता का प्रदर्शन करना"
इसी प्रकार पवित्र भाव के अनुसार पाठ्यक्रम में इस्लामी आस्था को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसने घोषणा की कि काबा को " मूल रूप से आदम ने बनवाया था" " जिसे कालांतर में अब्राहम और उनके पुत्र इस्माइल ने पुनः निर्मित कराया" । क्या यह सत्य है? यह इस्लाम की मान्यता है और इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। इसके आगे इंटरैक्शन का कहना है कि वर्ष 610 में " जब पैगम्बर मोहम्मद ने एक गुफा में ध्यान लगाया ..... तो देवदूत गैब्रियल उनके पास आया और उन्हें ईश्वर का संदेश दिया" ( हाँ यही संदेश बडे अक्षरों में एम है) । पाठ्यक्रम कुछ अवसरों पर " हम" मुस्लिम का संदर्भ देना भूल जाता है और इससे छात्र प्रश्न करते हैं कि क्या उन्हें" पैगम्बर मोहम्मद या गाड की पूजा करनी चाहिये या फिर दोनों की"
थामस मोर ला सेंटर पूरी तरह सही है: इस पाठ्यक्रम से सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की पूरी तरह अवहेलना होती है जिसके अनुसार पब्लिक स्कूल धर्म के बारे में कोई बात इस शर्त पर पढा सकते हैं कि वे इसे बढावा नहीं देंगे। इंटरैक्शन खुले आम इस्लामी आस्था को बढावा दे रहा है और यह पब्लिक स्कूल के आचरण के विपरीत है। सेंटर की ओर से रिचर्ड थाम्पसन ने माना है कि बायरोन जिले के विद्यालय ने " संविधान की रेखा को पार किया है कि जब इसने 12 वर्षीय बच्चों को किसी विशेष धर्म के कर्मकाण्ड , उपासना में शामिल किया"
इस्लाम: प्रच्छन्न क्रिया को इस्लाम के लिये भर्ती के रूप में प्रयोग किया गया जिसके अंतर्गत बच्चों को अनेक सप्ताह तक मुस्लिम व्यक्तित्व स्वीकार करना पडा जो कि एक प्रकार से उन्हें इस्लाम में मतांतरित करने के लिये आमन्त्रित करने के बराबर है। शिक्षा व्यवस्था ने ऐसा होने दिया क्योंकि वे गैर पश्चिमी संस्कृति को पश्चिमी संस्कृति पर विशेषधिकार प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये क्या यह इसी प्रकार कभी ईसाइयत को आगे बढायेगी ( " उदाहरण के लिये " क्रूसेड के समय ईसाई योद्धा बनो")
उग्रवादी इस्लामी लाबिंग ग्रुप चाहते हैं कि इस्लाम को सही धर्म के रूप में पढाया न कि अकादमिक विषय के रूप में। वे इस विशेषाधिकार का लाभ उठाते हैं और विद्यालय व्यवस्था पर दबाव डालते हैं साथ ही पाठ्यक्रम तैयार करने वाले लेखकों पर भी। यह आश्चर्य नहीं कि इंटरैक्शन प्रकाशन ने दो उग्रवादी इस्लामी संगठनों को उनके सुझावों के लिये उनके नाम सहित उन्हें धन्यवाद दिया ( इस्लामिक एजूकेशन एंड इंफारमेशन सेंटर तथा काउंसिल आन इस्लामिक एजूकेशन) ।
अमेरिका और अन्य पश्चिमी लोगों के समक्ष विकल्प है: वे इस बात पर जोर दे सकते हैं कि विद्यालयों में इस्लाम को भी अन्य धर्मों की भाँति वस्तुनिष्ठ रूप से पढाया जाये, या फिर वे इस मामले की भाँति इस्लाम के अनुयायियों को अनुमति दें कि वे इस्लाम की सामग्री का प्रयोग धर्मांतरण के लिये करें। इसका उत्तर पश्चिम में उग्रवादी इस्लाम के भविष्य से जुडा है।