कल्पना करिये कि यह 1942 वर्ष का जून हो और एडोल्फ हिटलर द्वारा अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने के कुछ ही महीने बीते हों। हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक विभाग की समिति ने पर्व के अवसर पर होने वाले समारोह में सार्वजनिक व्याख्यान के लिये तीन छात्रों में से एक जर्मन अमेरिकन को चुना हो। उस छात्र से इसे जानबूझकर हिटलर की पुस्तक " मीन कैम्फ" ( मेरा संघर्ष) को ध्वनित करते हुए " अमेरिकन कैम्फ" शीर्षक दिया ताकि वह " कैम्फ" के सकारात्मक पक्ष को उजागर कर सके।
जब इसने विरोध को प्रेरित किया तो हार्वर्ड के डीन ने इसका बचाव करते हुए कहा कि यह विचारपूर्ण व्याख्यान है जो कि कैम्फ को समाज में स्वयं को समझने के लिये और न्याय को बढावा देने के लिये व्यक्तिगत संघर्ष को परिभाषित करता है। डीन ने वादा किया कि , " लोगों को यह व्याख्यान हार्वर्ड के जजों सहित संघर्ष , अविश्वास और अंधकार से भरे विश्व में आशा की एक किरण के समान नजर आयेगा"
इसके बाद छात्रों को हार्वर्ड की जर्मन सोसाइटी जो कि नाजी समर्थक गुट के रूप में जानी जाती है उसका भूतकालिक अध्यक्ष बनना पड्ता है और प्रशासन को इसकी कोई परवाह नहीं है। न ही वह इस बात से विचलित है कि उसने नाजी समर्थक गुट की प्रशंसा की है कि " इसने अच्छा कार्य किया और इसने पेशेवर ढंग से, दया से और लगन से लोगों की सेवा की" , इसके बाद इसके लिये धन भी जुटाया।
निश्चय ही अविश्वसनीयहै? परंतु पिछले सप्ताह हार्वर्ड में यही दृश्य उपस्थित हुआ। मात्र "जर्मन" , "नाजी" और कैम्फ" के स्थान पर " इस्लामी" , उग्रवादी इस्लाम" और " जिहाद" कर दीजिये।
विभागीय लोगों ने 22 वर्षीय जायेद यासिन और हार्वर्ड इस्लामिक सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष को एक व्याख्यान देने के लिये बुलाया। उन्होंने इससे पूर्व होली लैंड फाउंडेशन फार रिलीफ एंड डेवेलपमेंट नामक उग्रवादी इस्लामी गुट की न केवल प्रशंसा की वरन इसके लिये धन भी जुटाया जिसे कि राष्ट्रपति बुश ने बंद कर दिया था।
यासिन ने अपने व्याख्यान का शीर्षक दिया " अमेरिकी जिहाद" जो कि अमेरिका के विरुद्ध ओसामा बिन लादेन के जिहाद को ध्वनित कर रहा था। यासिन ने अपना आशय जताते हुए 32,000 श्रोताओं को समझाने का प्रयास किया कि, " जिहाद कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके लिये किसी को असहज होना पडे"
हाँ तो ऐसा है। आधिकारिक " इनसाइक्लोपीडिया आफ इस्लाम" के अनुसार जिहाद की परिभाषा करते हुए कहा गया है, " इस्लाम के विस्तार के उद्देश्य के साथ सैन्य कार्रवाई" और इसने माना है कि " सिद्दांत रूप में इसका आक्रामक चरित्र है" । लेखक बाट योर ने गैर मुस्लिमों को इसे इतिहास के आधार पर समझाया है कि इसका अर्थ , " युद्ध, अवसाद..... गुलामी और मृत्यु है" । इससे तो यही प्रतीत होता है कि " इससे कोई भी असहज अनुभव करेगा" ।
दुखद यह है कि यह कोई विषयांतर नहीं है परंतु दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम का संकेत है।
उग्रवादी इस्लाम के लिये क्षमाप्रार्थी भाव: जिहाद के विद्रूप स्वरूप को छिपाना हार्वर्ड की सामान्य प्रक्रिया रही है। इस्लामी इतिहास के एक प्रोफेसर ने जिहाद को " बिना शस्त्र का संघर्ष" बताया। हार्वर्ड इस्लामिक सोसाइटी के विभाग सलाहकार ने सही जिहाद की परिभाषा करते हुए कहा कि इससे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है वरन यह समाज के लिये अच्छा है। यह सभी उस परिपाटी का अंग है जिसके अंतर्गत यह बहाना बनाया जा रहा है कि 11 सितम्बर को जो कुछ हुआ उसका इस्लाम के कोई सरोकार नहीं है।
युद्ध के समय तटस्थ. ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान युद्ध में हार्वर्ड तटस्थ है। जैसा कि हार्वर्ड बिजिनेस स्कूल के छात्र पैट कोलिंस ने वाशिंगटन टाइम्स के सम्पादकीय पृष्ठ पर लेख में यह संकेत भी दिया है। हमास का ही उदाहरण लें जबकि राष्ट्रपति बुश ने इसे , "आज विश्व में सर्वाधिक खतरनाक आतंकवादी संगठन कहा है" तो वहीं हार्वर्ड प्रवक्ता से जब पूछा गया कि क्या यह आतंकवादी संगठन है जिसे कि विश्वविद्यालय ने अपने परिसर में धन एकत्र करने की अनुमति दी है तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली।
यहाँ तक कि आज भी उग्रवादी इस्लामी गुटों की विश्वविद्यालय में पहुँच है साथ ही अपनी गतिविधियों को प्रचारित करने की अनुमति भी है। जबकि दूसरी ओर अमेरिकी सैन्य बल के लिये होने वाला कार्यक्रम रिजर्व आफिसर्स ट्रेनिंग कोर्प्स ही ऐसा छात्र संगठन है जिसे कि हार्वर्ड मे प्रवेश की अनुमति नहीं है और न ही अपने कार्य के प्रचार की अनुमति है।
दुर्भाग्य से हार्वर्ड जैसा ही हाल लगभग सभी उत्तर अमेरिकी विश्वविद्यालयों का है। प्रायः सभी मध्य पूर्व विशेषज्ञ जिहाद के बारे में सत्य को छुपाते हैं और प्रायः सभी कैम्पस अमेरिकी युद्ध प्रयासों को हिकारत की नजर से देखते हैं। ( यही बयान कि आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध आरम्भ करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आईना देखो" )
" आप हमारे साथ हैं या हमारे विरुद्ध हैं" : हार्वर्ड तथा अन्य विश्वविद्यालयों को आत्ममंथन करना चाहिये और देखना चाहिये कि वे किस ओर खडे हैं।