प्रायः तीन दशकों से वामपंथी अतिवादियों ने अमेरिकी अकादमिक जगत पर नियंत्रण स्थापित कर रखा है और "शब्दों के नये नियमन" , " पराआधुनिकता" , " नस्ल . लिंग और स्तर" को लेकर जटिल पर दिखने में कम हानिकारक अवधारणा का प्रचार किया है और ऐसा करते हुए अमेरिका , इसकी सरकार और इसके सहयोगियों के विरुद्ध भी प्रचार किया है।
केवल ये विचार ही हानिकारक नहीं हैं। कक्षाओं में और कैम्पस में हाल में जो क्रांतिकारी सिद्धांत प्रदर्शित किये जाते हैं उनके घातक परिणाम हो सकते हैं। विशेष रूप ये अरब इजरायल संघर्ष के मामले में दिखाई देते हैं।
वर्ष 2002 में अमेरिका के प्रोफेसरों ने जो कुछ कदम उठाये हैं उन पर विचार करें:
* कोलम्बिया विश्वविद्यालय: ईरान के विशेषज्ञ हामिद दबाशी ने जेनिन में इजरायल के सैन्य दाँवपेंच ( भविष्य के आत्मघाती आक्रमणों को रोकने के लिये) की तुलना नाजी के नरसंहार से की। जब एक छात्र ने एक घोर इजरायल विरोधी कार्यक्रम के चलते अपनी कक्षा को स्थगित करने का विरोध किया तो प्रोफेसर ने व्यंग्यात्मक रूप से मुस्कराते हुए उत्तर दिया, " यदि फिलीस्तीन के नरसंहार के पीडितों के साथ खडे होने के लिये कक्षा स्थगित करने से आपको समस्या हुई है तो मैं क्षमा चाहता हूँ" ।
कोलम्बिया से ही जार्डन के विशेषज्ञ जोसेफ मसाद ने उसी इजरायल विरोधी रैली में वक्तव्य दिया और इजरायल को, " यहूदी सर्वोच्चता के भाव वाला और नस्लवादी राज्य घोषित किया" और उन्होंने कहा कि, " इसे डराया जाना चाहिये" । यह सब " इजरायलवाद और यहूदी सर्वोच्चता" के भडकाऊ शीर्षक तथा ऐसे कोर्स के बाद है जिसमें कि इजरायल विरोध को बढावा दिया जाता है।
*सनी बिंघामटन : राजनीति विज्ञान विभाग के राबर्ट ओस्टरगार्ड ने अपने पाठ्यक्रम को इजरायल विरोधी आधार के रूप में परिवर्तित कर दिया है। एक आगंतुक व्याख्याता अली मज़रुई ने एक व्याख्यान दिया जिसे कि एक छात्र ने "45 मिनट की इजरायल की आलोचना बताया" जिसमें कि इजरायलवाद की तुलना फासीवाद से की गयी, इजरायल को दक्षिण अफ्रीका के समकक्ष नस्लभेदी बताया गया और प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की तुलना हिटलर से की गयी।
*केंट राज्य विश्वविद्यालय , ओहियो: इतिहास विभाग के जूलियो सीजर पिनो ने फिलीस्तीनी आत्मघाती बम आक्रमणकारी के साहस की प्रशंसा की और अल्लाह से आह्वान किया कि, " जन्नत में इसका स्थान प्रोन्नत करें"
*ओरेगोन विश्वविद्यालय: समाजशास्त्र विभाग के डगलस कार्ड ने " सामाजिक भेदभाव" नामक पाठ्यक्रम में इजरायल को , "आतंकवादी राज्य" बताया और इजरायलवासियों को " शिशुओं का हत्यारा" कहा और इस बात पर जोर दिया कि अंतिम परीक्षा में छात्र इस बात से सहमत हों कि इजरायल ने भूमि चुराई है ।एक छात्र का कहना है कि कार्ड प्रत्येक अवसर पर इजरायल और यहूदियों के विरुद्ध बोलते हैं।
* यू सी बर्कली: अंग्रेजी विभाग के स्नेहल शिंगवी जो कि " फिलीस्तीन में छात्र न्याय" के नेता भी हैं उन्होंने " फिलीस्तीनी प्रतिरोध की राजनीति और कविता" नामक पाठ्यक्रम की घोषणा की और परम्परावादियों को कुख्यात चेतावनी दी कि वे अन्य सेक्शन में चले जायें।
संक्षेप में अध्यापक नियमित तौर पर खुले आम राजनीति कर रहे हैं और छात्रों पर अवधारणा लादने के लिये अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। कुछ अवसरों पर वे इसे स्वीकार भी करते हैं जैसा कि एंड्रिउ रोज का मामला है कि जब 1990 में प्रिंसटन अंगेजी प्रोफेसर ने बढचढकर कहा कि वह "शासक वर्ग के बच्चों" को कट्टरपंथी बनाने के लिये अपनी स्थिति का प्रयोग कर रहा है।
यह कोई आश्चर्य नहीं है कि कुछ लोग इसकी व्याख्या इस रूप में करते हैं कि यह सब यहूदी और इजरायल समर्थक छात्रों को प्रताडित करने के प्रयास का परिणाम है। परिणाम : मौखिक और शारीरिक आक्रमण।
* सैन फ्रांसिस्को राज्य विश्वविद्यालय में इजरायल विरोधी छात्रों ने इजरायल के पक्ष में मार्च कर रहे छात्रों पर शारीरिक रूप से प्रहार किया और उन्हें, " मरो तुम नस्ली सूअर" कहा और " हिटलर को अपना कार्य पूरा कर लेना चाहिये था" और यही कारण था कि विद्यालय के प्रधानाध्यापक को कहना पडा कि अपने 14 वर्षों के कार्यकाल में कैम्पस में घटी किसी घटना पर इतने दुखी और नाराज कभी नहीं हुए थे।
यहाँ तक कि इस घटना के उपरांत भी फिलीस्तीन समर्थक छात्र वेब पेज पर यहूदी नरसंहार को नहीं मानने पर आमादा रहे और यहूदियों को कर्मकाण्डिक हत्या का आरोपी बनाते रहे।
* बर्कली में इजरायल विरोधी छात्रों ने एक कक्षा के भवन पर कब्जा कर लिया जिसके चलते 79 लोगों की गिरफ्तारी हुई और उसमें से एक पर पुलिस अधिकारी को चबाने का आरोप लगा।
*बोल्डर में कोलोरेडो विश्वविद्यालय में छात्रों ने इजरायल के ध्वज को क्षति पहुँचाई और कैम्पस के प्रमुख आने जाने के मार्ग पर सेमेटिक विरोधी नारे लगाये।
इलिनोयस विश्वविद्यालय में इजरायल का ध्वज फहरा रहे एक भवन पर पत्थर मारे जिससे कि सामने की खिडकी टूट गयी।
यद्यपि जो प्रोफेसर मध्य पूर्व के पाठ्यक्रम पढाते हैं वे कैम्पस में ऐसी स्थिति के लिये उत्तरदायी हैं परंतु अन्य लोग भी इस ओर से आँखें मूँदे हैं। मध्य पूर्व के विशेषज्ञों द्वारा इस प्रकार कट्टरपंथ बढाने के प्रयास का विरोध छात्रों, प्रशासकों, अभिभावकों, अन्य विभागों, शिक्षा विभाग के अधिकारियों तथा राज्य के विधायकों को भी करना चाहिये।
समय आ गया है कि जब सभी लोगों को मिलकर प्रयास करना चाहिये कि विश्वविद्यालय सभ्यता के वाहक बनें। ऐसा अतिवाद और भयभीत करने के प्रयास के इस वातावरण को परिवर्तित करके ही किया जा सकता है। इसका आरम्भ मध्य पूर्व की विद्वता की आड में वामपंथी कार्यकर्ता बनने के प्रयास की निंदा से ही हो सकता है।