उग्रवादी इस्लाम समस्त विश्व में सर्वत्र उच्च स्तर को प्राप्त कर रहा है सिवाय उस देश के जिसने कि इसे सबसे अधिक लम्बे समय तक देखा है और इसे बेहतर जानता है। ईरान में यह रक्षात्मक स्थिति में है और सम्भवतः पराभव की ओर है।
इस परिस्थिति के सम्भावित परिणाम हो सकते हैं। ऐसा इस तथ्य के कारण है कि ( सउदी अरब के अपवाद की स्थिति को यदि छोड दें) उग्रवादी इस्लाम ने सर्वप्रथम 1979 में ईरान में सत्ता प्राप्त की, जब अयातोला खोमैनी ने शाह को सत्ता से हटा दिया। 23 वर्षों के उपरांत खोमैनी के आक्रामक और अधिनायकवादी प्रकल्प ने ईरानवासियों का मोहभंग कर रखा है जो कि सामान्य जीवन के वापस लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
जनसंख्या ऐसे शासन से स्वतंत्रता चाहती है जो कि व्यक्तिगत रूप से उन्हें दबाती है , राजनीतिक रूप से तानाशाह है , आर्थिक रूप से उन्हें अवसाद की स्थिति में पहुँचाता है और सांस्कृतिक रूप से अलग थलग करता है। जैसे तालिबान के शासन में अफगानिस्तान विनाशकारी स्थिति का सामना कर रहा है और ( जैसा कि जार्जटाउन विश्वविद्यालय के राब सोभानी ने पाया है) ईरान के लोग "बुराई को जानते हैं जब वे इसे निकट से देखते हैं" ।
प्रायः प्रतिदिन ईरान के लोग समाचार पत्रों में, छात्र संस्थानों में , फुटबाल स्टेडियम या अन्य स्थलों पर अपनी मुक्ति की इच्छा को व्यक्त करते हैं। अधिक उल्लेखनीय यह है कि यह मोहभंग कुलीन शासक वर्ग तक भी पहुँच गया है जिसकी अभिव्यक्ति इस माह के आरम्भ में अयातोला जलालुद्दीन ताहेरी के त्यागपत्र के पत्र के प्रकाशन से हुई।
प्रायः 90 वर्षीय यह शक्तिशाली व्यक्ति उस संस्थान का हिस्सा रहा है जिसने कि शाह को सत्ता से हटाया था , इन्होंने शासन की असहिष्णुता को स्थापित करने में भूमिका निभाई और शुक्रवार की प्रार्थना के नेता के ( बिशप के समानांतर) रूप में ऐतिहासिक इसाफाहान शाहर में अपना स्थान बनाया।
परंतु उनके लिये अब बहुत हो गया।
उन्होंने अपने त्यागपत्र को काव्यात्मक रूप से व्यक्त किया उन्होंने देखा, " अच्छाई के पुष्प कुचले जा रहे हैं और आध्यात्मिकता व मूल्य गिर रहे हैं" और यह उन लोगों द्वारा हो रहा है, "जिन्होंने कि सत्ता के मगरमच्छ के दाँत तीव्र कर दिये हैं" । अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो उन्हें लगता है कि इस्लामी गणतंत्र ने , " कपट, उपेक्षा , कमजोरी , गरीबी और गरीबी को ही बढाया है"
ताहेरी का त्यागपत्र उस समय आया कि जब शासन के विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुए और इसके चलते 140 प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद उन्हें ईरान की संसद के आधे से अधिक उपों की स्वीकर्यता प्राप्त हो गयी।
इसी के साथ समर्थन के अन्य संकेतों को देखकर राष्ट्रपति बुश को भी अस्वाभाविक बयान देना पडा जिसमें कि उन्होंने ईरान को सलाह दी कि, " सरकार अपने लोगों की सुने" । इस घोषणा ने सरकार को सकते में डाल दिया जिसके बाद ताहेरी ने एक और बयान जारी किया और अपनी आलोचना को थोडा नरम किया।
इन सभी के अनेक परिणाम हैं।
· ईरान का भविष्य: अँगूठे के नियम के अनुसार जब किसी शासन की आँखें ही इसके विरुद्ध हो जायें तो सरकार खतरे में होती है। ताहेरी द्वारा इस्लामी गणतंत्र को अस्वीकार करना पोलैण्ड में दो दशक पहले की स्थिति का स्मरण कराता है जबकि " मजदूरों का स्वर्ग माने जाने वाले स्थान पर मजदूरों ने कम्युनिस्ट राज्य को अस्वीकार कर दिया जो कि उनके लाभ का दावा करता था।
इस्लामी गणतंत्र समाप्त होने की कगार पर नहीं है क्योंकि शासक जितने ईरानियों को सम्भव होगा मारकर सत्ता में बने रहेंगे। फिर भी अधिकाँश जनसंख्या और कुछ हद तक नेतृत्व यदि वर्तमान अधिकार से असंतुष्ट है तो इसका अर्थ है कि शासन में परिवर्तन केवल समय की बात है।
· लोकतंत्र: 1979 में प्रायः वह स्थिति प्राप्त करने के बाद जिसे वे चाहते थे( शाह का न रहना) ईरान के लोगों को लगा कि उनका अपने भाग्य और उत्तरदायित्व पर पूर्ण नियंत्रण हो गया।
यह ऐसा घटनाक्रम था जो कि अधिकाँश अरब भाषी जनसंख्या के लिये अनजान था और इसके चलते अनेक जबर्दस्त और आश्चर्यजनक चीजें हुईं और ईरान की समस्त राजनीति काफी परिपक्व हो गयी। इसने अपनी पसंद की ओर देखा और काफी उत्साह से लोकतंत्र के पक्ष में आयी और साथ ही अत्यंत सतर्क विदेश नीति के पक्ष में भी।
ईरान की राजनीति की परिपक्वता और अरब राजनीति की अपरिपक्वता के मध्य विरोधाभास शायद अधिक है । यह सत्य है कि दोनों में तानाशाही शासन का प्रभाव है परंतु ईरान के लोग अंधकार से अपना मार्ग तलाश सकते हैं। यह बात ध्यान देने की है कि कुछ समय पूर्व तक 1978-79 की विनाशकारी क्रांति को एक आरम्भ और आवश्यकता माना जाता था।
*इस्लाम : ईरान के लोगों ने इस्लाम के बारे में इस रूप में सोचना आरम्भ कर दिया है कि वह नरम और गैर उग्रवादी प्रभाव में आये।
बीते दशकों में उग्रवादी इस्लाम से पीडित मुसलमान अब इस अधिनायकवाद की चमक से अप्रभावित हैं और इसके वैकल्पिक दृष्टिकोण को खोजने की चुनौती के लिये तैयार हो रहे हैं।
कुल मिलाकर ईरान अपने स्वभाव के विपरीत ही सही बाहरी विश्व को अच्छे समाचार की झलक देने की भूमिका में आ रहा है। उग्रवादी इस्लाम का संकट जाने वाला नहीं है परंतु कम से कम उस देश में इसका अंत दिखाई दे रहा है।