एक पाठक ने मुझे फटकारा , " डा. पाइप्स मैं आपकी साहस की कमी से आश्चर्यचकित हूँ" जबकि दूसरे ने कहा कि , " आपके विचार उन लोगों के लिये हैं जो कि परीकथाओं और सांता क्लाज में विश्वास करते हैं" , " आपने इस मामले में निश्चित रूप से हथियार डाल दिये हैं" "मैं आशा करता हूँ कि आपका स्वयं से नियंत्रण समाप्त नहीं हो रहा है" , " पूरी तरह असत्य" या फिर मुझ पर दया करते हुए , " सम्भवतः आपकी आशा आपकी सत्य को स्वीकार करने की क्षमता पर भारी पड रही है"
.ये कुछ उदाहरण हैं उन नकारात्मक टिप्पणियों के जो कि (मेरी वेबसाइट के टिप्पणी भाग पर चिपके हैं) मेरे दो सप्ताह पूर्व लेख my column two weeks ago पर आये हैं जिसमें कि मैंने तर्क दिया था कि इस्लाम बुराई नहीं है। " इस्लाम की तथाकथित बुराई पर जाने के स्थान पर" मैंने लिखा था कि हम सभी को इस सभ्यता को आधुनिक बनाने का प्रयास करना चाहिये। 5 के मुकाबले 1 के औसत से मेरे पाठक असहमत हैं। इन पत्रों के आधार पर तीन मुख्य बिन्दु उभरते हैं।
* इस्लाम सदैव युद्ध की मुद्रा में रहा है. टिप्पणी के रूप में उत्तर देने वाले एक का कहना है कि " अविश्वासियों ( काफिर) के विरुद्ध हिंसक विजय इस्लाम में प्रारम्भ से रही है", जबकि दूसरे का जोर देकर मानना है कि "यह युद्ध ,विजय और जबरन धर्म परिवर्तन पर आधारित है" , एक तीसरे का कहना है कि "600 वर्ष पूर्व मुहम्मद ने जिस युद्ध की घोषणा की थी वह आज तक जारी है"
* उग्रवादी इस्लाम इस्लाम ही है. पाठकों का मानना है कि जिस बुराई को मैंने आधुनिक, कट्टरपंथी स्वप्निल विचारधारा माना है वह सामान्य रूप से समस्त आस्था पर लागू होती है या उसका ही अंग है। मैंने जिसे उग्रवादी इस्लाम कहा है उनके अनुसार " मुझे उसे सही रूप से वास्तविक इस्लाम कहना चाहिये" । एक लेखक ने प्रश्न किया है कि , " जो कुछ वहाबी और अन्य कट्टरपंथी इस्लामी संगठन कर रहे हैं क्या वह मुहम्मद के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है?" उसके बाद उसने ही उत्तर दिया है, " उत्तर यही है कि वे पूरी तरह मुहम्मद के सिद्धांतों के अनुरूप ही व्यवहार कर रहे हैं"
* कुरान की नरम आयतें नष्ट कर दी गयीं. उनका कहना है कि कुरान में परस्पर विरोधी आयतें हैं और उनके बारे में मुस्लिम विद्वानों ने यह किया कि यह निश्चय हुआ कि समय के क्रम से बाद वाली आयतें प्रमुख मानी गयीं और पहले वाली आयतों का महत्व कम कर दिया । विशेष रूप से विरोधाभासी जिस आयत का उद्धरण मैंने दिया ( " आस्था के सम्बन्ध में किसी बल का प्रयोग नहीं होना चाहिये" तथा " हे लोगों, हमने तुम्हें राष्ट्रों और कबीलों में बनाया है ताकि तुम सब एक दूसरे को जान सको") उनका स्थान एक आक्रामक आयत ने ले लिया जिसे मैंने कहा (" प्रकृति पूजकों को जहाँ पाओ उनसे युद्ध करो और उन्हें मार दो, उन्हें बंदी बनाओ, उन्हें सेना सहित घेर लो और उनके लिये घात लगाओ")
यद्यपि मेरा उत्तर यह है कि इस्लाम आज जो कुछ है या बीते कल में जो कुछ रहा हो इसका कोई अर्थ नहीं है और यह आने वाले कल में कुछ अलग होगा। धर्म को आधुनिकता को अपनाना ही पड्ता है ।
यह सम्भव है। एक हाल का उदाहरण है: मई में तुर्की के धार्मिक अधिकारियों ने निर्णय दिया जो कि पूरी तरह इस्लामी परम्परा के विपरीत है कि जिसके अंतर्गत महिलाओं को मासिक धर्म के समय पुरुषों के साथ नमाज की अनुमति होगी साथ ही मस्जिद में सेवा की भी। उच्च धर्म विभाग बोर्ड ने इस विषय में जो निर्णय दिया वह पूरी तरह आधुनिक संदर्भ में था कि पुरुष और महिला बराबर हैं और एक दूसरे के पूरक हैं। अगले माह यही बोर्ड मुस्लिम महिलाओं के गैर मुस्लिम पुरुष के विवाह के नाजुक विषय को देखने जा रहा है और आशा है कि यह पुनः सदियों पुरानी मान्यता के विपरीत निर्णय लेगा।
यदि तुर्की के धर्मशास्त्री इन परिवर्तनों को लागू कर सकते हैं तो अन्य देशों के धर्मशास्त्री ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?और यदि महिलाओं के सम्बन्ध में चलन बदल सकते हैं तो फिर जिहाद और समग्रता में इस्लामी कानून के सम्बंध में ये परिवर्तन क्यों नहीं हो सकते? इस्लाम भी अन्य धर्मों की भाँति आधुनिकता के साथ समन्वय स्थापित कर सकता है।
इसके विपरीत यदि कोई इस्लाम को शास्वत बुराई के रूप में देखता है तो आगे क्या? इससे तो सभी मुस्लिम यहाँ तक कि नरमपंथी भी उग्रवादी इस्लाम की भयावहता की ओर भागते नजर आयेंगे और शास्वत शत्रु बन जायेंगे। और इस आधार पर शून्य नीति का विकल्प होगा। मैंने जिस मार्ग को अपनाया है उसके आधार पर एक लाभगत व्यावहारिक नीति को प्रस्तुत किया गया है ताकि एक बडी वैश्विक समस्या का सामना किया जा सके।
निष्कर्ष रूप में यही विचार है: अमेरिका के लोगों के पास इस्लाम का ज्ञान है जो कि प्रभावित करने लायक है। उग्रवादी इस्लाम के प्रति क्षमाप्रार्थी का भाव रखने वालों के दावे के विपरीत कि अमेरिका के लोग इस सम्बंध में अज्ञानी हैं मेरे पाठक जानते हैं कि वे किस विषय में बात कर रहे हैं। उनकी समालोचना कुछ अवसरों पर काफी ज्ञानवर्धक (जैसे कि कुरान में कुछ विषय समाप्त किये जाने पर) और कुछ अवसरों पर यह अभिव्यक्ति से भरपूर है( अगली बार जब सडक पर या भवन में इजरायल के नागरिक को समाप्त करने से सम्बंधित कोई फिल्म क्लिप देखें जो जरा सोचें कि वास्तव में बुराई कहाँ है" )
निश्चित रूप से ये पाठक परम्परागत अमेरिकी विचारों के अनुरूप नहीं हैं वरन उनका जानकारी भरा इस्लाम विरोध उल्लेखनीय है। भविष्य में इसकी बडी राजनीतिक भूमिका है विशेष रूप से जैसे जैसे पश्चिम में इस्लाम बहस का प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है।