जरा विरोधाभास देखें लगभग सभी सरकारें इस बात से सहमत हैं कि इराक का तानाशाह सद्दाम हुसैन एक भयावह दानव है और इस बात की सम्भावना से भी भयभीत हैं कि कहीं वह परमाणु हथियार न प्राप्त कर ले। फिर भी वही सरकारें बडे जोर शोर से इस बात का संकेत दे रही हैं कि सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने के किसी भी अमेरिकी नीत सैन्य प्रयास को वे अमान्य करती हैं।
जर्मनी के चांसलर गेरहार्ड श्रोडर ने इसे " खतरनाक खेल बताया" और उनके अनुसार सद्दाम की ओर से कोई भी तात्कालिक खतरा नहीं है और वाशिंग़टन उसके ऊपर आक्रमण को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकता। अमेरिका के विश्व भर के सहयोगी इस बात से सहमत हैं।
परंतु वे पूरी तरह गलत हैं। सद्दाम तत्काल में ही एक खतरा है, और अमेरिकी सरकार के पास उसे पहले ही रोकने के पर्याप्त कारण हैं। ये निम्नलिखित हैं:
रिकार्ड. सद्दाम का लगातार आक्रामकता का इतिहास रहा है। उसने 1980 में ईरान पर आक्रमण किया । उसने 1990 में कुवैत पर आक्रमण किया। उसने 1991 में सउदी अरब और इजरायल पर मिसाइल से आक्रमण किया। उसने 1992 से ही लगातार अमेरिका और ब्रिटिश एयरक्राफ्ट पर नो फ्लाई जोन में गोले दागे। उसने कुर्द के क्षेत्रीय एंक्लेव पर 1996 में आक्रमण किया।
उसके आतंकवाद के साथ भी अनेक सम्पर्क हैं। 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर बम से आक्रमण करने वाले गुट के एक सदस्य अब्दुल रहमान यासिन को इराक ने छुपाया। इसने फिलीस्तीन के कुख्यात आतंकवादी अबू निदाल की भी मेजबानी की। इसने हमास के बम हमलावरों के परिवार के सदस्यों को 10,000 अमेरिकी डालर देकर प्रोत्साहित किया। उसके आतंकवादियों ने पूर्व राष्ट्रपति एच डब्ल्यू बुश की हत्या करने का प्रयास किया और साथ ही कुवैत के अमीर का भी। 11 सितम्बर के मिशन से पूर्व एक इराकी कूटनयिक ने अल कायदा के मोहम्मद अट्टा से भेंट की।
युद्ध आरम्भ करना: अवैध हथियार को विकसित करने और अन्तरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना करने का सद्दाम का इतिहास रहा है।
कुवैत पर आक्रमण करने के सात माह उपरांत फरवरी 1991 में उसने संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को स्वीकार करने का समझौता किया। उसने प्रस्ताव 687 को स्वीकार किया जिसके अनुसार इराक के जनसंहारक हथियारों को " नष्ट करना , हटाना या पूरी तरह नुकसान न पहुँचा सकने की स्थिति में करना था" और इसके जाँचकर्ताओं को इराक में प्रवेश की अनुमति थी।
बाद में सद्दाम ने जाँचकर्ताओं से " चूहे बिल्ली का खेल खेला" और उनसे सूचनाओं को छुपाया या सामग्री छुपाई। 1998 में एक अमेरिकी रिपोर्ट ने पाया कि " इराक ने एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की कि 1980 के अंत में किस प्रकार बाल प्वाइंट के लिये आदेश दिया गया था" परंतु इसने अपने मिसाइल में प्रयुक्त होने वाले युद्धक शीर्ष के बारे में महत्वपूर्ण सूचना छुपा ली जो कि रासायनिक और जैविक अभिकर्ताओं को छोडने में समर्थ था"
यही नहीं, पिछले सात वर्षों में जाँचकर्ताओं ने कम से कम 27,000 रासायनिक बम , मारक खोल और राकेट नष्ट किये हैं , साथ ही 500 टन और हजारों टन रासायनिक चीजें। उन्होंने इराक के अधिकाँश परमाणु कार्यक्रम को निष्क्रिय कर दिया है जो कि पहले था और माना जा रहा था और जो कि प्रस्ताव 687 की लगातार अवहेलना था।
इसके बाद अगस्त 1998 में सद्दाम ने सही ही क्लिंटन के मस्तिष्क को भाँप लिया और आगे की जाँच के लिये दरवाजे बंद कर दिये और उसे सही ही लगा कि उसे इस एकतरफा वचन भंग करने के लिये कोई कीमत नहीं चुकानी होगी।
खतरे. इस बात में कोई शक नहीं है कि पिछले चार वर्षों का उपयोग सद्दाम ने जनसंहारक हथियारों के निर्माण के लिये किया है । एक इराकी सिविल इंजीनियर और हाल में अलग हुए अदनान सईद अल हैदेरी ने डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी को बताया है कि समस्त इराक में आठ स्थानों पर सद्दाम रासायनिक और जैविक हथियार बना रहा है। सद्दाम के परमाणु हथियार विकास कार्यक्रम के पूर्व परमाणु विज्ञानी खिधिर हम्जा के अनुसार तथा एक अन्य अलग हुए इराकी के अनुसार अनुमान है कि "इराक के पास 12 टन यूरेनियम और 1.3 टन कम समृद्ध यूरेनियम है" और उनका जोर देकर कहना है कि 2005 तक सद्दाम के पास " तीन से पाँच परमाणु हथियार होंगे "
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व हथियार जाँचकर्ता रिचर्ड बटलर का कहना है कि यह पूरी तरह मूर्खता है कि यदि यह सोचा जाता है कि सद्दाम लम्बी दूरी की मिसाइल , परमाणु , रासायनिक और जैविक हथियार पर जोरदार ढंग से कार्य नहीं कर रहा है। यदि सद्दाम के हाथ परमाणु हथियार आ गये तो वह उनका समुचित उपयोग करेगा। वह सत्तासीन एकमात्र शासक है जिसने कि जनसंहारक हथियारों का पहले ही उपयोग किया है और अपनी ही ईरानी और कुर्द जनता के ऊपर जहरीली गैस का प्रयोग कर चुका है।
राष्ट्रपति बुश ने ठीक ही कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को "बुरी स्थिति आने से पूर्व ही उसका मुकाबला करना चाहिये" । सद्दाम के हथियारों को नष्ट करने और उसकी आगे की आक्रामकता को रोकने के लिये सैन्य अभियान ही एकमात्र विकल्प है और जितना शीघ्र यह आरम्भ हो उतना ही हम सबके लिये बेहतर है।