अभी हाल में तुर्की की सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से संकेत मिलता है कि यह रूस और चीन जैसे अधिनायकवादी राज्यों के लिये नाटो क्लब के लोकतांत्रिक देशों को धोखा देने की तैयारी कर रहा है।
निम्नलिखित साक्ष्य प्रस्तुत हैं:
2007 के आरम्भ से ही अंकारा ने शंघाई सहयोग संगठन Shanghai Cooperation Organisation का अतिथि सदस्य बनने का असफल प्रयास किया है ( जिसे कि संक्षिप्त रूप से एस सी ओ या अनौपचारिक रूप से शंघाई पाँच के नाम से जाना जाता है) । 1996 में रूस और चीन की सरकारों द्वारा इसे तीन पूर्व सोवियत मध्य और एशिया की अन्य ( 2011 में चौथा) सरकारों के साथ गठित किया गया। एस सी ओ की ओर पश्चिम ने अधिक ध्यान नहीं दिया है हालाँकि सुरक्षा और अन्य विषयों में इसकी भारी महत्वाकाँक्षा है, इसके साथ ही गैस कार्टेल gas cartelस्थापित करने की सम्भावना तो है ही । इसके अतिरिक्त यह पश्चिमी माडल का विकल्प भी प्रस्तुत करता है फिर वह नाटो से लेकर लोकतंत्र हो या फिर अमेरिकी डालर को एक आरक्षित करेंसी से विस्थापित करना हो। तीन पूर्ववर्ती अस्वीकृति के उपरांत अंकारा ने 2011 में " संवाद सहभागी" का स्तर प्राप्त करने के अनुरोध किया। जून 2012 में इसे अनुमोदन मिल गया।
एक माह उपरांत तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से कहते सुना गया कि, " आइये हमें शंघाई पाँच में पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करें तो हम यूरोपीय संघ की अपनी सदस्यता के सम्बंध में पुनर्विचार कर सकते हैं" । एरडोगन ने यूरोपीय संघ में शामिल होने के तुर्की के प्रयास को रोके जाने के बाद इस विचार को 25 जनवरी को पुनः दुहराया । 7.5 करोड लोगों के प्रधानमंत्री के नाते उन्होंने इसकी व्याख्या करते हुए कहा, " हमें अन्य विकल्पों की ओर भी देखना चाहिये यही कारण है कि मैंने श्रीमान पुतिन से उस दिन कहा कि , " हमें शंघाई पाँच में शामिल करें और हम यूरोपीय संघ को अलविदा कह देंगे" रोकने का सवाल कहाँ आता है? उन्होंने जोडा कि , " एस सी ओ कहीं अधिक बेहतर है, यह यूरोपीय संघ से अधिक शक्तिशाली है और इसके सदस्यों के मूल्यों के हम भी साझीदार हैं" ।
31 जनवरी को विदेश मंत्रालय ने एस सी ओ में "पर्यवेक्षक राज्य" का उच्च श्रेणी का दर्जा प्राप्त करने की योजना की घोषणा की। 3 फरवरी को एरडोगन ने पहले की बात को पुनः दुहराया और कहा, " हम नये विकल्पों की खोज करेंगे" और शंघाई ग्रुप की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रशंसा की साथ ही यूरोप के लोगों की "इस्लामोफोबिया" की निंदा की। 4 फरवरी को राष्ट्रपति अब्दुल्ला गुल पीछे हट गये और घोषणा की कि, " एस सी ओ यूरोपीय संघ का विकल्प नहीं है ...... तुर्की यूरोपीय संघ की श्रेणी को चाहता है और उसे लागू करना चाहता है"
यह सब आखिर है क्या?
एस सी ओ के साथ जाने में अनेक बाधायें हैं: यदि अंकारा बशर अल असद को सत्ता से हटाने के प्रयास में अग्रणी है तो एस सी ओ पूरी शक्ति से सीरिया के इस घिरे नेता के साथ खडा है। नाटो की सेनायें रूस में बनी सीरिया की मिसाइलों से देश के देशभक्त लोगों की रक्षा के लिये अभी आई हैं।इससे भी बडी बात यह है कि एस सी ओ के सभी छह सदस्य इस्लामवाद के घोर विरोधी हैं जिसका कि एरडोगन पालन करते हैं। सम्भवतः यही कारण है कि एरडोगन ने एस सी ओ सदस्यता की बात करते हुए यूरोपीय संघ पर दबाव डालने का प्रयास किया है या फिर अपने समर्थकों के मध्य एक सांकेतिक लफ्फाजी की है।
दोनों ही सम्भावनायें हो सकती हैं। परंतु इस छह माह लम्बे नैन मटक्के को मैं तीन कारणों से गम्भीरता से लेता हूँ । एरडोगन का सीधे सपाट बात का रिकार्ड रहा है, जिसके चलते स्तम्भकार सेदात एरगिन ने 25 जनवरी के उनके बयान को विदेश नीति में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण दावा करार दिया।
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दूसरा, जैसा कि तुर्की के स्तम्भकार काद्री गुर्सेल ने संकेत किया, " यूरोपीय संघ की श्रेणी में लोकतंत्र , मानवाधिकार , संघों के अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार , अर्थ का समान वितरण ,तुर्की के लिये विविधता और सहभागिता आते हैं" एस सी ओ देशों के समूह के रूप में तानाशाहों के अधीन है और तानाशाहों की ओर से इस ग्रुप में शामिल होने के लिये इनमें से किसी भी श्रेणी की माँग नहीं की जायेगी" । यूरोपीय संघ के विपरीत शंघाई सदस्य एरडोगन पर उदार होने का दबाव नहीं बनायेंगे वरन उनके भीतर की तानाशाही वृत्ति को प्रोत्साहन देंगे जिसके लिये अनेक तुर्क अभी से भयभीत हैं।
तीसरा, एस सी ओ उनकी उस इस्लामवादी भावना के अनुरूप है जिसमें कि वे पश्चिम की अवहेलना कर सकें और इसके विकल्प की कल्पना कर सकें। एस सी ओ अपनी रूसी और चीनी की आधिकारिक भाषा के साथ गहराई से पश्चिम विरोधी डी एन ए से युक्त है और इसकी बैठकों में पश्चिम विरोधी भाव रहते हैं। उदाहरण के लिये 2011 में जब ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमेदीनेजाद ने इसे सम्बोधित किया तो 11 सितम्बर को अमेरिका पर हुए आक्रमण को लेकर " अफगानिस्तान और इराक में लाखों को मारने और घायल करने के लिये आक्रमण करने के बहाने के रूप में इसे अमेरिकी सरकार का ही कार्य बताकर" षडयंत्रकारी अवधारणा को आगे बढाया और किसी ने भी इसे अस्वीकार नहीं किया। अनेक लोगों ने जिसमें कि मिस्र के विश्लेषक गलाल नसार भी शामिल हैं यह आशा रखी कि एस सी ओ अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को इनके पक्ष में ला सकता है। इसके विपरीत एक जापानी अधिकारी ने पाया है कि, " एस सी ओ अमेरिकी गठबंधन का विरोधी गुट बन रहा है। यह हमारे मूल्यों का साझीदार नहीं है"
तुर्की द्वारा शंघाई ग्रुप में शामिल होने का कदम उत्तरी एटलाँटिक संधि संगठन ( नाटो) की सदस्यता को लेकर उसकी अनिश्चितता का परिचायक है जिसके प्रतीक के रूप में 2010 में चीन और तुर्की ने संयुक्त वायु सेना अभ्यास भी किया था। इस वास्तविकता के बाद एरडोगन का तुर्की अब पश्चिम का विश्वसनीय साथी नहीं रह गया है वरन यह इसके भीतरखाने में एक जासूस की भाँति है । यदि इसे नाटो से निकाला न जाये तो फिलहाल इसे निलम्बित कर दिया जाये।