पिछले सप्ताह बराक ओबामा की घटनाओं से भरी पचास घण्टों की इजरायल यात्रा को लेकर आ रहे समाचारों के मध्य अमेरिका की नीति में हुए एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं दिया गया। वह यह कि इस बात की माँग की गयी कि फिलीस्तीनी इजरायल को एक यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार कर लें। इस पर हमास नेता सलाह बरदाविल ने टिप्पणी करते हुए इसे , "फिलीस्तीनी मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सबसे खतरनाक बयान बताया" ।
पहले कुछ पृष्ठभूमि : इजरायल के निर्माण से जुडे दस्तावेजों के अनुसार इसे यहूदी राज्य बनाने का उद्देश्य था। आधुनिक इजरायलवाद या जायोनिज्म का प्रभावी रूप से आरम्भ 1896 में थियोडोर हर्ल्ज की पुस्तक Der Judenstaat ( " यहूदी राज्य") से हुआ। 1917 के बाल्फोर घोषणापत्र ने भी " यहूदी लोगों के लिये एक राष्ट्र" का समर्थन किया। 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के प्रस्ताव 181 के अनुसार फिलीस्तीन को दो भागों में विभाजित करते हुए यहूदी राज्य का उल्लेख 30 बार किया गया है। 1948 के इजरायल की स्थापना के घोषणापत्र में यहूदी राज्य का उल्लेख 5 बार किया गया है, "हम..... यह घोषित करते हैं एरेज इजरायल में यहूदी राज्य की स्थापना की जाती है जिसे इजरायल राज्य के रूप में जाना जायेगा"
इसी जबर्दस्त सम्बन्ध के चलते 1970 में जब अरब इजरायल कूटनीति अत्यंत गम्भीर स्तर पर आरम्भ हुई तो यहूदी राज्य की अभिव्यक्ति आम तौर पर परिदृश्य से लुप्त हो गयी क्योंकि सभी ने सामान्य तौर पर यह कल्पना कर ली कि इजरायल की कूटनीतिक स्वीकृति का अर्थ इसे यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार करना है। अभी हाल के वर्षों में इजरायलवासियों को आभास हुआ कि ऐसा नहीं है जब इजरायली अरब ने इजरायल को तो स्वीकार कर लिया परंतु इसके यहूदी स्वरूप को अस्वीकार कर दिया। उदाहरण के लिये 2006 में हायफा के मोसावा केंद्र ने एक महत्वपूर्ण प्रकाशन The Future Vision of Palestinian Arabs in Israel में प्रस्तावित किया कि यह देश धार्मिक रूप से तटस्थ राज्य हो चुका है और एक संयुक्त ग़ृह । संक्षेप में इजरायली अरब इजरायल को फिलीस्तीन का ही विकल्प भर मानते हैं।
इस भाषाई परिवर्तन के प्रति जागरूक होते हुए इजरायल के लिये अरब स्वीकार्यता ही पर्याप्त नहीं है ; इजरायल और उनके मित्रों को लगता है कि उन्हें अरब पर दबाव डालना होगा कि वे स्पष्ट शब्दों में इजरायल को यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार करें। 2007 में इजरायल के प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने घोषणा की कि जब तक फिलीस्तीनी ऐसा नहीं करते कूटनीति अधर में लटक जायेगी: उन्होंने जोर देते हुए कहा, " मैं यहूदी राज्य के मुद्दे पर किसी भी प्रकार समझौता करने को तैयार नहीं हूँ" ।
फिलीस्तीन अथारिटी ने तत्काल और सर्वसम्मति से इस माँग को अस्वीकार कर दिया। इसके प्रमुख महमूद अब्बास ने उत्तर दिया: " हम यह स्वीकार करने को तैयार हैं कि इजरायल में यहूदी रहते हैं और अन्य लोग भी रहते हैं इससे अधिक हम कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं" ।
2009 में ओलमर्ट के स्थान पर बिन्यामिन नेतन्याहू प्रधानमंत्री हुए तो उन्होंने किसी भी गम्भीर बातचीत की पूर्व शर्त के रूप में इस माँग को दुहराया: " इजरायल की अपेक्षा है कि फिलीस्तीनी दो राज्य या दो जन जैसे किसी मुद्दे पर चर्चा करने से पूर्व इजरायल को यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार करें" । इस माँग़ को न केवल फिलीस्तीनियों ने अस्वीकार किया वरन इस विचार का उपहास किया। अब्बास ने कहा " यहूदी राज्य क्या है" हम इसे " इजरायल राज्य कहते हैं" आप स्वयं को जो चाहे कह सकते हैं।परंतु हमें यह स्वीकार नहीं है ....... हमारा यह कार्य नहीं है ..... कि राज्य को परिभाषित करें और यह बतायें कि इसमें क्या शामिल होता है। आप स्वयं को इजरायलवादी गणतंत्र कहें, हिब्रू , राष्ट्रीय, समाजवादी जो चाहे कहें, मुझे इसकी परवाह नहीं है"
अभी छह सप्ताह पूर्व ही अब्बास ने पुनः यहूदी राज्य की कल्पना को खंडित किया। फिलीस्तीन की ओर से यहूदी राज्य की इतनी जोरदार अस्वीकार्यता और कुछ नहीं हो सकती।
जार्ज डब्ल्यू बुश और ओबामा सहित अमेरिकी राजनेताओं ने 2008 से ही समय समय पर इजरायल को यहूदी राज्य के रूप में सम्बोधित किया है, हालाँकि साथ ही उन्होंने फिलीस्तीन से ऐसा करने की माँग नहीं की। 2011 में ओबामा ने घोषणा करते हुए वास्तविक कूटनीति के उद्देश्य को रेखाँकित किया, " दो जन के लिये दो राज्य: यहूदी राज्य के रूप में इजरायल तथा यहूदी लोगों के लिये गृहभूमि और फिलीस्तीनी लोगों के लिये और गृह भूमि के रूप में फिलीस्तीन राज्य"
इसके बाद पिछले सप्ताह के जेरूसलम भाषण में अचानक ओबामा ने अप्रत्याशित रूप से पूरे तौर पर इजरायल की माँग स्वीकार कर ली, " फिलीस्तीनियों को यह स्वीकार करना होगा कि इजरायल यहूदी राज्य होगा"
यह वाक्य नये क्षितिज तैयार करता है और सरलता से इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।इससे एक शानदार नीति बनती है कि बिना ऐसी स्वीकार्यता के फिलीस्तीन द्वारा इजरायल को स्वीकार करने का कोई अर्थ नहीं है और यही संकेत देता है कि भविष्य का राज्य इजरायल होगा जिस पर उनका नियंत्रण हो न कि फिलीस्तीन बस।
ओबामा की यात्रा में न केवल नीतिगत परिवर्तन की घोषणा की गई ( एक और बात कही गयी कि फिलीस्तीनी बातचीत के लिये कोई पूर्व शर्त न रखें) इसका अपने आप में काफी महत्व है क्योंकि यह फिलीस्तीनी आम सहमति से पूरी तरह विपरीत है। बरदाविल ने अतिशयोक्तिपूर्ण कहा कि . " इससे प्रतीत होता है कि ओबामा ने समस्त अरब की ओर अपनी पीठ कर ली है" परंतु वे दस शब्द वास्तव में इस बात की तैयारी की ओर संकेत करते हैं कि संघर्ष के मूल बिंदु को निपटाने को तैयार हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अरब इजरायल कूटनीति के सम्बंध में उनका यह महत्वपूर्ण , सर्वाधिक रचनात्मक योगदान होगा।