इजरायल और फिलीस्तीन के मध्य युद्ध के समय आधे अधूरे मन से तीव्र समाधान के सुझाव गोली से भी तेज रफ्तार से सामने आ रहे हैं।
आइए कुछ प्रमुख योजनाओं की समीक्षा कर लेते हैं।
- एक नया फिलीस्तीनी नेतृत्व : इजरायल के रक्षा मंत्री का विश्वास है कि यासर अराफात को सत्ता से बाहर के देने से एक नया व्यावहारिक और लचीला नेता उनका स्थान ग्रहण करेगा।
- इजरायल की एकतरफा वापसी : इजरायल के एक शक्तिशाली संगठन ने एक नारे को आगे बढाया है, " बस्तियों को छोडो अपने में वापस आओ" अर्थात 1967 की सीमा रेखा से पूरी तरह वापसी । ( यह उसी योजना के समान है जिसे कि सउदी राजकुमार अब्दुल्लाह ने आगे बढाया था और अभी हाल में अरब लीग ने पारित किया है)
- राज्यक्षेत्र की अदला बदली : इजरायल के परिवहन मंत्री ने सुझाव दिया है कि इजरायल के भीतर कुछ अरब बहुल क्षेत्रों को फिलीस्तीन अथारिटी को दे दिया जाये और बदले में उनसे पश्चिमी तट के कुछ यहूदी बहुल क्षेत्रों से उनके दावे को हटाने को कहा जाये।
- एक दीवार: इजरायल की कारों में आजकल एक अति लोकप्रिय स्टिकर देखने को मिलता है कि इजरायल और पश्चिमी तट के पास की सीमा पर 192 मील तक एक विद्युत बाडे को लगाया जाये और यही सुरक्षात्मक बाडा एकमात्र मार्ग है।
- बफर क्षेत्र : प्रधानमंत्री एरियल शेरोन दीवार या बाडे के और विस्तृत संस्करण के पक्षधर हैं और उसमें खाई और बारूदी सुरंग भी चाहते हैं उनके अनुसार, " इससे सुरक्षात्मक अलगाव होगा और इजरायल के सभी नागरिकों की सुरक्षा में यह सहयोग करेगा"
- अमेरिकी सैनिक: न्यूयार्क टाइम्स के थामस फ्रीडमैन का अनुमान है कि , " इजरायल धीरे धीरे पश्चिमी तट और गाजा पट्टी से वापसी कर रहा है और उनके स्थान पर अमेरिका और फिलीस्तीन की संयुक्त सुरक्षा सेना नियुक्त हो जाये" । इसके साथ ही वे चाहते हैं कि " वाशिंगटन को इजरायल के आस पास अनिश्चित काल के लिये जमीन पर सेना तैनात कर देनी चाहिये"
ये सभी विचार इस पूर्वानुमान पर आधारित हैं कि इजरायल के विरुद्ध एक शताब्दी का फिलीस्तीन आक्रामकता या तो इजरायल की रियायत या फिर कुछ चतुर कदम से रुक जायेगी।
इन सुझावों में से किसी ने भी वास्तविक समस्या को सम्बोधित नहीं किया है कि फिलीस्तीनी इस बात पर गहराई से विश्वास करते हैं कि इस प्रकार इजरायल पर ठोंकते रहने से वे इसे पराजित और नष्ट कर सकते हैं।
वैसे अराफात भी इस महत्वाकाँक्षा से जुडे हैं परंतु वे इसका स्रोत नहीं हैं और उन्हें हटाने से यह समाप्त नहीं होगा। पश्चिमी तट से इजरायल की वापसी कमजोरी का संकेत होगा और इससे फिलीस्तीनी माँग को और हवा मिलेगी। दीवार या किसी का क्षेत्र नहीं बनाने से भी कोई लाभ नहीं होगा।( अभी कुछ दिनों पूर्व ही जार्डन के चार आतंकवादियों ने सीमा बाडे का उल्लंघन किया और इसके अंदर खुदाई की) ऐसे गर्मागर्म क्षेत्र में विदेशी सैनिकों को नियुक्त करना तो ऐसा कदम है जो आरम्भ ही नहीं होगा। अमेरिका और यूरोप किसी अन्य के युद्ध के लिये अपने सैनिकों की क्षति को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
ऐसे गलत विचार इसलिये आये हैं कि इजरायल सरकार ने फिलीस्तीन तक पहुँचने का प्रयास किया। जैसा कि लंदन विश्वविद्यालय के एफ्रेम कार्श ने हाल में पाया कि इजरायल सरकार ने फिलीस्तीन अथारिटी को न कि समस्त फिलीस्तीनी राजनीति को शत्रु के रूप में पहचाना है इसी का यह परिणाम है। यह उसी प्रकार है जैसे कि अमेरिका ने 1991 में इराक में और 2001 में अफगानिस्तान में किया था।
इस आधार पर कोई भी तर्क दे सकता है कि इराक और अफगानिस्तान की जनता सद्दाम हुसैन और तालिबान के अत्याचारों का अंग नहीं रही इसलिये वे अमेरिका के शत्रु नहीं हैं , परंतु जब फिलीस्तीन और इजरायल के संघर्ष की बात आती है तो मामला की दूसरा है। प्रत्येक साक्ष्य और प्रत्येक जनमत सर्वेक्षण इसी ओर संकेत करते हैं कि इजरायल पर फिलीस्तीनी आक्रमण को जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है। निश्चित ही ऐसा विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि " सडक" पर लोग नेतृत्व से अधिक इजरायल विरोधी हैं।
दूसरे शब्दों में यह संघर्ष लोगों का परम्परागत संघर्ष है। कर्श के अनुसार ऐसे मामलों में परिणाम इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि " युद्ध के मैदान में क्या परिणाम आता है इससे अधिक राष्ट्रीय मनोबल , संश्लेषण और शक्ति की क्षमता पर निर्भर करता है"
परिणाम स्पष्ट है: यदि इजरायल को स्वयं को सुरक्षित रखना है तो फिलीस्तीन पर व्यापक सैन्य विजय प्राप्त करनी होगी, ताकि फिलीस्तीन इसे समाप्त करने के अपने लक्ष्य को त्याग दें । फिलीस्तीनी आक्रमण को यदि समाप्त करना है तो इसके लिये फिलीस्तीनियों ( सामान्य रूप से अरब भाषियों से) से बातचीत से काम नहीं चलेगा वरन उन्हें विवश करना होगा कि वे निष्कर्ष निकालें कि यहूदी राज्य को नष्ट करने का उनका प्रयास सफल नहीं होगा और उन्हें अपनी यह महत्वाकाँक्षा त्यागनी होगी।
इस समय युद्ध चल रहा है और सभी पर्यवेक्षक इस असुखद स्थिति को स्वीकार नहीं करना चाहते, और इसके स्थान पर अनावश्यक तत्काल लाभ देने वाले तरीके सुझा रहे हैं।
समय आ गया है कि वे तथ्यों का सामना करें और इसका अर्थ है कि फिलीस्तीनी आक्रामकता को रोकने के तरीके ढूँढे जायें।
अमेरिकी सरकार के लिये इसके मायने हैं कि युद्ध विराम जैसे पलट कर क्षति देने वाले प्रयासों के स्थान पर इस बात ध्यान दें कि इजरायल के पडोसी अंततः उसके अस्तित्व को स्वीकार करें।